शुक्रवार, 29 अगस्त 2008

और और नूर (उड़नतश्तरी की फ़रमाइश पर)

ख़याल मेरा तुम्हारे ख़्वाबों में जगह पाता तो ग़म न होता,
या बन के क़तरा तुम्हारी पलकों पे जगमगाता तो ग़म न होता ।

कोई मोहब्बत की शम्मा ले कर, इधर से गुज़रा था, सोचता हूँ,
ये ज़िन्दगी रोशनी में उसकी, गुज़ार पाता तो ग़म न होता ।

----पन्नालाल 'नूर'

गुरुवार, 28 अगस्त 2008

नूर फिर नूर

न होगी बेशक, कमी तो पूरी, किसी तरह उम्र भर न होगी !
मगर न आने से क्या तुम्हारे, ये जिंदगी ही बसर न होगी ?

जो ग़म ही देने थे, ऐसे देता, के डूब जाता वुजूद मेरा !
ये चार आँसू दिए हैं इनसे, तो आँख भी नूर तर न होगी !!

----पन्नालाल 'नूर

शनिवार, 2 अगस्त 2008

समीरलाल जिंदाबाद

पूना से एक उत्साहित करने वाली ख़बर भी है जी ।
मायूस ना हूजिये हिन्दी ब्लॉगर बाबू ।
वो ये के आपके हरदिल अज़ीज़ समीर लाल साहेब और उनकी उड़न तश्तरी की तारीफ़ों के पुल यहाँ के एकमात्र हिन्दी दैनिक - आज का आनंद ने अपनी संपादकीय में बांधे हैं जी । वो भी आज ही । मैंने पेपर सहेज कर रख लिया है।
बा आवाज़े बुलंद है परचमे-हिंद !
है ना बोलो बोलो ।

मी बवाल बोलतोय

झाला काय की मी पुणे आलेला २३ जुलै ला । आणि माला कम्पल्सरिली मराठी बोलूं पाहिजेच पाहिजे ।
भाड़ में गेली तुमची हिन्दी आणि त्याचा हिन्दी ब्लॉग जगत । कारण मी राज भाऊ च्या मराठी माणूस मध्ये कन्वर्ट झाला । (राज ठाकरे जो कर रहे हैं ठीक ही कर रहे होंगे)
बाबा ऐ.......... इकड़े या ! नांव काय तुझा ? ऐ सांग रे ताबड़तोड़ । चटाक !!
बोला जय महाराष्ट्र ।
मी सांगीतला जय हिंद ।
तो बोल्या- हे आफ्टर वर्ड्स रे ।
फस्ट जय महारास्ट्र बोला । त्याचे उपरांत हिंद पिन्द।


आगे सब बवाल था और दिल में बस उबाल था ।
मेरे दर्द को समझने वालों, ख़ुद समझ लो जी । कहने की ज़रूरत है क्या ?