न होगी बेशक, कमी तो पूरी, किसी तरह उम्र भर न होगी !
मगर न आने से क्या तुम्हारे, ये जिंदगी ही बसर न होगी ?
जो ग़म ही देने थे, ऐसे देता, के डूब जाता वुजूद मेरा !
ये चार आँसू दिए हैं इनसे, तो आँख भी नूर तर न होगी !!
----पन्नालाल 'नूर
गुरुवार, 28 अगस्त 2008
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4 टिप्पणियां:
वाह जी वाह!! नूर साहब को पढ़कर आनन्द आ गया मगर जी नहीं भरा. और पेश किया जाये. :) आभार.
जो ग़म ही देने थे, ऐसे देता, के डूब जाता वुजूद मेरा !
ये चार आँसू दिए हैं इनसे, तो आँख भी नूर तर न होगी !!
गज़ब भाई, गज़ब !!
मगर न आने से क्या तुम्हारे, ये जिंदगी ही बसर न होगी ?
"sunder abheevyektee"
Regards
बहुत सुन्दर नूर जी
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