मंगलवार, 10 मई 2011

मातृ दिवस पर भी देर से.......


ढूँढता रब को फिरा हूँ, इस जहाँ से उस जहाँ
भूल बैठा था कि रब का, रुप ही होती है माँ!

आदतन इस बात को भी, देर से जाना है मैने!

-समीर लाल ’समीर’

गुरुवार, 5 मई 2011

मुझसे मूँह मोड़ा नहीं होता.....




बाबू जी ने गर इतनी जायदाद को छोड़ा नहीं होता
मेरे अपने भाई ने कभी,मुझसे मूँह मोड़ा नहीं होता..

जोड़ दे जो मकान में आई ऐसी दरारें भी सीमेन्ट से....
ढूँढता हूँ मैं बेकरार हो, आज ऐसे किसी ठेकेदार को!!!


-समीर लाल ’समीर’