हमें, याने मुझे और बवाल को पूरा होश है कि यह कोई वक्त नहीं ब्लॉगपोस्ट करने का। जिस वक्त सब होली के रंग में डूबे हों, भांग की पिनक में अजूबे हों और उस वक्त आप लट्ठ लेकर खड़े हो जायें कि हम लिखे हैं, पढ़ो, कितनी ग़लत बात कई लोग नहीं समझते, आप देख ही रहे हैं यहाँ मगर हम समझते नहीं समझ बैठते हैं
लेकिन समझ कर भी करें क्या?
चुनाव का माहौल है तो नेता टाईप बिना सोचे समझे
उड़न तश्तरी पर घोषणा कर दिये थे कि ११ तारीख को यहाँ अब बुला लिए हैं तो खाली हाथ बैरंग लौटाना हम जबलपुरियों का संस्कार नहीं है। कुछ तो सुनायेंगे-पढ़ायेंगे ही
पुनः जैसा कि वादा था कि बवाल का होलियाना बवाल सुनवायेंगे तो वो कार्यक्रम कल ही आज तो बस पढ़ ही लें, सुनने फिर आ जाइएगा आने जाने में कोई ख़र्च थोड़े ही लगता है। हाँ, मेहनत का सम्मान है और उसके लिए
साधुवाद.
एक वाकियायाद आता है। कारण याद आने का कि एक तो चुनाव सामने हैं और दूसरा आप लोग हमारे ब्लॉग पर आने के लिए मेहनत में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं
जंगल में एक बंदर इस बात से परेशान था कि हर बार शेर ही क्यूँ राजा बने, मैं क्यूँ नहीं? (
अपने ब्लॉगजगत में भी कई ऐसे बंदर हैं)
बस, इस मेनिफेस्टो पर चुनाव लड़ गया और जैसा कि होता है
परिवर्तन का अहसास सुखद होता है भले ही परिवर्तन असहनीय हो, बंदर राजा चुन लिया गया।( उपर प्रदेश में बहन जी भी साक्षात उदाहरण हैं) शेर अपने में मस्त, बिना फिक्र बकरी के बच्चे को उठा ले गया खाने के लिए. बकरी मिमियाती भागी नये राजा बंदर के पास.
बंदर तुरंत साथ चला और जहाँ शेर बच्चे को ले गया था, वहाँ जाकर इस पेड़ से उस पेड़, उस पेड़ से इस पेड़..पसीना पसीना..हैरान परेशान..कूदना शुरु। शेर बिना किसी चिन्ता के बच्चे को मारता रहा और खा गया और फिर घने जंगल में निकल गया. बंदर पेड़ से उतर कर रोती बकरी के पास आया.
बकरी बोली-आप मेरे बच्चे को बचा नहीं पाये!!
बंदर ने उससे कहा कि बच्चा बचा या नहीं बचा, उसे छोड़ो। तुम तो यह देखो कि
क्या मैने मेहनत में कोई कसर छोड़ी??...इस पेड़ से उस पेड़॥उस पेड़ से इस पेड़. पसीना पसीना..हैरान परेशान..भागता रहा तुम्हारे कारण..बकरी भी संतुष्ट हो गई और आँसूं पोंछ कर घर चली गई.
ऐसे ही बंदर राजाओं से भारत चल रहा है और हम हर हादसे पर आँसूं पोंछ कर घर आ जाते हैं अगले हादसे का इन्तजार करते जब यह बंदर फिर कूदेंगे।
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हमारे राजा: बजा दें बाजा |
खैर, जाने दिजिये..होली है, तो मस्त हो लिजिये...
ऐसे ही यहाँ जिन्दगी कटती है..वरना तो जीना मुश्किल हो जाये..हम तो खुद अभी कुछ देर में रंगे हुए ठंडाई पी कर बवाल संग टनाक हो जायेंगे फिर दो एक दिन में ही दिख पायेंगे . तब तक यह रचना पढ़ें और गा कर देखें:
आज सबके रंग ही उड़ जाएँगे
सब हमारे रंग में ही रंग जाएँगे
सरहदों के पार भी हम जाएँगे
रंग अबकी बार उनको आएँगे
क़त्लगाहों को बदलकर बाग़ों में
रंगे-ख़ूँ पर रंगे-गुल चढ़वाएँगे
हिन्दू-मुस्लिम-सिख-ईसाई चार रंग
ख़ूँ के रंग पर एक ही कहलाएँगे
बज़्म की तस्वीर बेरंग है तो क्या
बनके हम ख़ुशरंग फिर छा जाएँगे
हिन्द के रंगों से चुपके-चाप से
गाल दुनिया भर के रंगे जाएँगे
यूँ न पूछें रंग क्या है प्यार का
मुर्दगी को ज़िन्दगी कर जायेंगे
गर वफ़ा में रंग देखें आपका
प्यार को फिर बन्दगी कह जायेंगे
रंग मे भंग घुँट्वा के ये लाल-औ-बवाल
सब पे रंगीला नशा कर जाएँगे
होली महापर्व की बहुत बहुत बधाई एवं मुबारक़बाद !!!