सोमवार, 29 सितंबर 2008
मीतजी के शानदार शेर पर ये शेर देखिये
निगाह वो के जो पैबस्त दिल में हो जाए,
जो चोट खा के पलट आए वो निगाह नहीं !
---नामालूम
रविवार, 28 सितंबर 2008
आदरणीय नीरज गोस्वामी जी की फ़रमाइश और यौमेदिल (ह्रदय दिवस) के मौके पर :
मेरे हमनफ़स मेरे हमनवा,
मुझे दोस्त बनके दगा़ ना दे !
मैं हूँ सोज़े-इश्क़ से जाँ-ब-लब,
मुझे जिंदगी की दुआ ना दे !!
-----शकील बदायुनी
हमनफ़स, हमनवा = मित्र , सखा
सोज़े-इश्क़ = मोहब्बत की आग
जाँ-ब-लब = मरणासन्न
यौमे-दिल (ह्रदय-दिवस) के अवसर पर :
अज़ल से गिरिफ़्तारपैदा हुआ है !
ये दिल क्या मज़ेदार पैदा हुआ है !!
---जुरअत
अज़ल = अनादिकाल
तो फिर --
दिलगिरिफ़्ता ही सही, बज़्म सजा ली जाए !
यादे-जाना से कोई, शाम न खाली जाए !!
---अहमद फ़राज़
दिल गिरिफ़्ता = उदास
यादे-जाना = प्रियतम की याद
शुक्रवार, 26 सितंबर 2008
गुरुवार, 25 सितंबर 2008
समीरलाल, कपिल देव और सीमा गुप्ता की शान में ......
समीरलालजी (उड़नतश्तरी), लेफ्टिनेंट कर्नल कपिल देव और सीमाजी (मेरिभावनाएं) । इन तीनो विभूतियों के सम्मान में सीमाब साहेब का ये शेर पेशेखि़दमत है -----
छू ना पाती है परे- जिब्रील की हवा !
ये किन बुलंदियों पे उड़ा जा रहा हूँ में ???
बुधवार, 24 सितंबर 2008
नामा-ए-आमाल
हुक्म होता है, ख़ुद अपना नामा-ए-आमाल देख !!
------क्या मालूम
नामा-ए-आमाल = कर्मों का लेखा जोखा
सोमवार, 22 सितंबर 2008
इंसान बनाम भगवान् (लाल विथ बवाल)
विगत कुछ दिनों से देश और विदेश में आने वाली बाढ़, तूफ़ान, आतंकवादी गतिविधियों से त्रस्त एवं आक्रोशित जनता ने समीर लाल जी के पास उड़नतश्तरी में भगवान से पूछने के लिए जबरदस्त सवाल भेजे। लाल साहेब उस समय पोएट्री मोड में थे और थोड़े बिज़ी भी, फिर भी जनता का दबाव देखते हुए उन्होंने वहीं से उसे कुछ ऐसे फॉरवर्ड कर दिया - (पढ़िए)
ऐसा क्या कर डाला था इतने सब नादानों ने ?
फिर तुमने क्यों बदल दिया है शहरों को शमशानों में ?
माना भूल किया करता है, तभी तो है इंसानों में !
वरना वो भी बसता होता, तुम संग ही भगवानों में !!
वैसे ही क्या कम दुःख हैं, आज के इन ज़मानों में !
कुछ तो भेद किया होता जी, बूढ़ों और जवानों में !!
------समीर लाल (फॉर जनता बेहाल)
और भगवान ने इंसान को जो जवाब दिया वो लाल-एन-बवाल के ईमेल पर रिसीव हो गया। कंप्यूटर फूटते फूटते बचा भैया। लीजिए भगवान का प्रलय कारी किस्म का जवाब भी पढ़ते जाइए।
बड्डे इसकर बदल रहा हूँ , शहरों को शमशानों में !
(के) नादानों ने मेरी गिनती, कर ली है नादानों में !!
ये तो माना भूल, हुआ करती है तुम इंसानों में !
पर मत भूलो, भोले का है काम यही भगवानों में !!
दुख और सुख तो साथ,चले आए हैं सभी ज़मानों में !
मैं ना करता भेद कभी भी, बूढ़े और जवानों में !!
भेद तुम्हीं करते क़ुरान में, बाइबिल और पुराणो में !
भगवानों को खड़ा किया है, तुमने ही दीवानों में !!
मेरी खिल्ली उड़ा रहा है, इंसान खुली ज़बानों में !
वरना वो भी बस सकता है, हम संग ही भगवानों में !!
------ (भगवान लाजवाल ) द्बारा बवाल
रविवार, 21 सितंबर 2008
इस्लामाबाद की आग का दर्द
वो आग से जला जो नदी के क़रीब था ।
-----मलिक ज़ादा मंज़ूर
बुधवार, 17 सितंबर 2008
आलसी काया .......(उड़नतश्तरी की पोस्ट पर सप्लीमेंट यहाँ से ..)
हाथ पाँव के आलसी और मुँह में मूँछें जाएँ
और मूँछ बिचारी का करै जब हाथ न फेरे जाएँ
-----क्या मालूम ?
मंगलवार, 16 सितंबर 2008
पंडित महेंद्र मिश्रा जी १६ सितम्बर की पोस्ट पर टिप्पणी
इस पर इस से ज्यादा क्या कहा जाए ?
प्यासी ज़मीन थी लहू, सारा पिला दिया !
मुझपे वतन का क़र्ज़ था, लो मैंने चुका दिया !!
-क्यामालूम
कौन कहता है के .........
उनकी शंका समाधान के लिए किसी शायर के ये शेर शायद पसंद आयें -
कौन कहता के, मौत आई तो मर जाऊंगा ?
मैं तो दरिया हूँ, समंदर में उतर जाऊंगा !!
ख़ुद पुकारेगी जो मंज़िल, तो ठहर जाऊंगा !
वरना खु़द्दार मुसाफ़िर हूँ, गुज़र जाऊँगा !!
गुरुवार, 11 सितंबर 2008
सीमाजी (सीमा गुप्ता की बात निराली)
देखिये न ४.९.०८ को हिज्र ऐ यार , ५.९.०८ को मंज़िल, ६.९.०८ को सज़ा, ८.९.०८ को कैसे भूल जाए, ९.९.०८ को फ़र्जे इश्क, १०.९.०८ को दरिया की कहानी, ११.९.०८ को आशनाई । कया बात है ! कया कहना ! बहुत खूब ! फ़िल ख़ूब !
बहुत अदब से सीमाजी आपसे बुरा मानने का इख़तियार हम छीनते हैं और आपकी बेखटके, बेरोकटोक, बगै़र किल्लतो-कसरत, बेतहाशा तारीफ़ करने का इख़तियार हम बिना आपकी इजाज़त हासिल करते हैं। आप हमें मुआफ़ रखें।
ज़माने में उसने बड़ी बात कर ली,
ख़ुद अपने से जिसने मुलाक़ात कर ली।
कानी ला भाऊ नई कानी बिना राहू नई (रजिया का बाप मरा .....)
लोग परेशान हो गए के भैये कहाँ गए ? और हम उस वक्त शोले पिक्चर देख रहे थे जहाँ अमित जी जो के उन दिनों अमिताभ कहलाते थे डायलोग मार रहे थे --- हाँ देखा कुछ नहीं होगा जब फ़लानी चीज़ उतरेगी तो ये भी उतर आएगा । देखा ! उतर आई ना । अरे भाई क्लासिक चीज़ों और हरदिल अज़ीज़ों में यही तो ख़ूबी है । चाहने वालों से दूर रह ही नहीं सकते। छतीसगढ़ में कहावत ही है के कानी ला भाव नई औ कानी बिना रहू नई । याने अब हटाइए । मीठी नींद फ़रमाइए ।
रविवार, 7 सितंबर 2008
जल जाते हैं
जिनको जलना है वो, शबनम से भी जल जाते हैं !
---नामालूम
शनिवार, 6 सितंबर 2008
इंडिया देट इज़ भारत विच इस नॉट हिन्दुस्तान
----क्या कहें दीदावरी किस दर्जा हैरानी में है ?
आजकल खुर्शीद इक जुगनू की दरबानी में है !
खुर्शीद = सूरज
गुरुवार, 4 सितंबर 2008
किस बनाम चुम्बन (सन्दर्भ : समीरलाल जी की पोस्ट २६ अगस्त)
किस किस को किस किया कहाँ कैसे क्या कहें कहानी !
----बवाल
एक चुम्बन ही तुम्हारा, वो असर कर जायेगा !
या तो बन्दा जी उठेगा, या के बस मर जायेगा !!
----बवाल