महाराष्ट्र भर में आज दिन भर हुई दुखद घटनाओं पर मासूम जनमानस का, उपद्रविओं और उनके सरपरस्त धृष्टश्री ना'राज' ठाकरे से इतना ही कहना है की -
जो आतिशे ग़म भड़क रही है, तो क्या हुआ मुत्मइन रहो तुम !
क्यूँ ? के ये आँच आई है सिर्फ़ हम पर, तुम्हारा दामन जला नहीं है !!
----आम जनता
आतिशे ग़म = ग़म की आग
मुत्मइन = चिंतामुक्त
मंगलवार, 21 अक्तूबर 2008
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
4 टिप्पणियां:
बिलकुल सही जगह चोट मारी है।
बहुत सटीक दिया है भाई!!
बहुत ही उम्दा
"हमारे दामन पर गर आंच आई है
इस झुलस में वे भी जल जायेंगे"
स्वस्थ होने के बाद आपकी रचना पढ़ी बड़ी
खुशी हुई है . पंडित जी तीन दिनों पहले
मैंने आपके मोबाइल पर आपकी तबियत
जानने के लिए फोन लगाया था पर
मुलाकात न हो सकी . आप स्वस्थ
रहे. ढेरो दीपावली की शुभकामनाओ के साथ
महेंद्र मिश्र.जबलपुर
जो आतिशे ग़म भड़क रही है, तो क्या हुआ मुत्मइन रहो तुम !
क्यूँ ? के ये आँच आई है सिर्फ़ हम पर, तुम्हारा दामन जला नहीं है !!
"wonderful expresion on the day and time"
Regards
एक टिप्पणी भेजें