शुक्रवार, 8 अप्रैल 2011

कटाक्षे-आज़म डॉ. कुमार विश्वास (जी) के जबलपुर में कार्यक्रम पर उनके ब्रैकेट में सम्मान में...........

बे‍अदबज़बानी, लम्पटता के क़ब्ज़े में ही आलम था

वो साबुत लौट के इसकर गए, के सब्र हमारा क़ाइम था

--- बवाल

15 टिप्‍पणियां:

Girish Kumar Billore ने कहा…

गज़ब ज़ारी रहे मुहिम
मै भी लिख रहा हूं

Smart Indian ने कहा…

... आपहुँ सीतल होय। अब आप भी कह रहे हैं तो बात वाकई हद से आगे जा चुकी है।

अनूप शुक्ल ने कहा…

जब हम कह रहे थे तब आप नहीं समझ रहे थे :)
http://amrendrablog.blogspot.com/2010/08/blog-post.html

http://hindini.com/fursatiya/archives/1612

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

पूरा माजरा पढ़कर देखते हैं...

बेनामी ने कहा…

kuch samajh mein nahi ayay

विजय तिवारी " किसलय " ने कहा…

संस्कारों का सन्देश देने वाली संस्कारधानी जबलपुर में विगत ७ मार्च को एक कमउम्र और ओछी अक्ल के बड़बोले लड़के ने असाहित्यिक उत्पात से जबलपुर के प्रबुद्ध वर्ग और नारी शक्ति को पीड़ित कर स्वयं को शर्मसार करते हुए माँ सरस्वती की प्रदत्त प्रतिभा का भी दुरूपयोग किया है. टीनएज़र्स की तालियाँ बटोरने के चक्कर में वरिष्ठ नेताओं, साहित्यकारों, शिक्षकों एवं कलाप्रेमियों की खिल्लियाँ उड़ाना कविकर्म कदापि कहीं हो सकता... निश्चित रूप से ये किसी के माँ- बाप तो नहीं सिखाते फिर किसके दिए संस्कारों का विकृत स्वरूप कहा जाएगा.
कई रसूखदारों को एक पल और बैठना गवारा नहीं हुआ और वे उठकर बिना कुछ कहे सिर्फ इस लिए चले गए कि मेहमान की गलतियों को भी एक बार माफ़ करना संस्कारधानी के संस्कार हैं. महिलायें द्विअर्थी बातों से सिर छुपाती रहीं. आयोजकों को इसका अंदाजा हो या न हो लेकिन श्रोताओं का एक बहुत बड़ा वर्ग भविष्य में करारा जवाब जरूर देगा. स्वयं जिनसे शिक्षित हुए उन ही शिक्षकों को मनहूसियत का सिला देना हर आम आदमी बदतमीजी के अलावा कुछ और नहीं कहेगा . इस से तो अच्छा ये होता कि आमंत्रण पत्र पर केप्सन होता कि केवल बेवकूफों और तालियाँ बजाने वाले "विशेष वर्ग" हेतु.
विश्वास को खोकर भला कोई सफल हुआ है? अपने ही श्रोताओं का मजाक उड़ाने वाले को कोई कब तक झेलेगा, काश कभी वो स्थिति न आये कि कोई मंच पर ही आकर नीतिगत फैसला कर दे.

Udan Tashtari ने कहा…

आप लोगों ने कार्यक्रम सुना है, मैं वहाँ उपस्थित नहीं था.. जिस कलाकार को आप इतने मन से सुनने गये हों, उसके द्वारा किसी का भी अपमान और उपहास हो तो ऐसे में आपका गुस्सा स्वभाविक है.

आज कुमार की लोकप्रियता का चरम एवं युवावर्ग से उनका जुड़ाव एक गौरव का विषय है किन्तु उसके बाद भी हर बात कहने की अपनी मर्यादायें और सीमा रेखाएँ होती हैं, उसका ध्यान उन्हें देना चाहिये.

कविता का स्तर, चुटुकुले बाजी या अन्य बातचीत पर मैं कुछ नहीं कहना चाहता क्यूँकि इन्हीं सबने कुमार को यह लोकप्रियता दी है कि आज भारत के सबसे मंहगे कवि होने का उन्हें गर्व हासिल हैं और हर जगह उन्हें बुलाया जा रहा है. आज वह एक यूथ आईकान हैं.

जो जनता आज कलाकार को इतना नाम और शोहरत देती है -वही जनता उस कलाकार के व्यवहार के चलते उसे अपनी नजरों से उतार भी सकती है, यह ध्यान हर कलाकार को रहना चाहिये.

एकबार पुनः, न केवल बुजुर्गों का अपितु हर व्यक्ति के सम्मान का ख्याल रखा जाना चाहिये. संस्कृति का ख्याल रखा जाना चाहिये. उपहास या अपमान कभी भी बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिये. अनेकों अन्य तरीके हैं हँसने हँसाने के.

निर्मला कपिला ने कहा…

मैने उन्हें अमेरिका मे सुना था कुछ नान वेज अधिक बोलते हैं --- लेकिन बहुत कुछ अच्छा भी सुनाते हैं समीर जी ने सही कहा स्टेज की एक मर्यादा होती है जिसे बरकरार रखना चाहिये। आभार।

Satish Saxena ने कहा…

शुभकामनायें बवाल साहब आपको !

SANDEEP PANWAR ने कहा…

नमस्कार लगे रहो।

Vivek Jain ने कहा…

बहुत बढ़िया

विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

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saurabh pare ने कहा…

bahut badia baate hai ji