शुक्रवार, 3 अक्तूबर 2008

जागने-जगाने (उड़नतश्तरी) पर ......

चिर सजग आँखें उनींदी, आज कैसा व्यस्त बाना ?
जाग तुझको दूर जाना ...
-----महादेवी वर्मा

जागते रहिये, ज़माने को जगाते रहिये !
रात क्या, दिन में भी अब गश्त लगाते रहिये !!
----नीरज

और आख़िर में --

हमको तो जागना है तेरे, इंतज़ार में !
आई हो जिसको नींद वो सोये (बहार) में !!
----हाँ मालूम

2 टिप्‍पणियां:

seema gupta ने कहा…

अभी जो धुप निकलने के बाद सोया है, वो सारी रात तुजे याद करके जागा और रोया है"

regards

Udan Tashtari ने कहा…

अभी जो धुप निकलने के बाद सोया है,
वो सारी रात तुजे याद करके जागा और रोया है

--सीमा जी का नहले पर दहला भी गजब रहा, भाई!!