सुब्हे-वाइज़ कभी, पैग़ाम से आगे न बढ़ी !
अपनी तौबा भी कभी, शाम से आगे न बढ़ी !!
-विनोद "ख़स्ता"
सुब्हे-वाइज़ = उपदेशक (पंडित, मुल्ला, पादरी, गुरु) का सवेरा
पैगा़म = संदेश
तौबा = न पीने की क़सम
मंगलवार, 8 जुलाई 2008
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2 टिप्पणियां:
आए हाय!! क्या बात है!! तब शाम के बाद कुछ जाम हो ही जायें.
hello aapko bhi swatantrata diwas or rakhi ki shubh kamnayen
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