शुक्रवार, 26 सितंबर 2008

क़त्लेआम

चारों तरफ़ हो रही घटनाओं के मद्देनज़र ये शेर देखिये-

तेरी अंजुमन में ज़ालिम, अजब एहतिमाम देखा !

कहीं ज़िंदगी की बारिश, कहीं क़त्लेआम देखा !!

-----शकील बदायुनी
एहतिमाम = बंदोबस्त

5 टिप्‍पणियां:

समयचक्र ने कहा…

तेरी अंजुमन में ज़ालिम, अजब एहतिमाम देखाकहीं
ज़िंदगी की बारिश, कहीं क़त्लेआम देखा
बवाल साहब अपने मेरी मन की अभिव्यक्ति को शेरो में जगह
दे दी है.बहुत सामायिक उम्दा शेर.
बधाई

नीरज गोस्वामी ने कहा…

बवाल साहेब एक बेहद उम्दा शेर पढ़वाने के लिए तहे दिल से शुक्रिया....और भी पढ़वईये ना.
नीरज

वीनस केसरी ने कहा…

बेहतरीन

वीनस केसरी

Udan Tashtari ने कहा…

क्या बात है, बहुत उम्दा!!!

एक मेरी जोड़......


दंगो में मरने वालों में, हमने तो बस इन्सान देखा...
कहीं पे राम मरता था, मरा था कहीं रहमान देखा...

seema gupta ने कहा…

" bhut sachee abyeevyktee aaj ke halat pr, sara dard seemt aaya hai is sher mey"

"smejtey thye hum ke sub kuch khuda ke hath hai,
pr ye kya, maut ka bhee faisla inssan-e-hath dekha..."

Regards