मिश्रा जी की लेटेस्ट पोस्ट देशप्रेम पर की गई एक बहुत सुंदर विवेचना है।
इस पर इस से ज्यादा क्या कहा जाए ?
प्यासी ज़मीन थी लहू, सारा पिला दिया !
मुझपे वतन का क़र्ज़ था, लो मैंने चुका दिया !!
-क्यामालूम
मंगलवार, 16 सितंबर 2008
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4 टिप्पणियां:
अच्छा शेर पेश किया है.
प्यासी ज़मीन थी लहू, सारा पिला दिया !
मुझपे वतन का क़र्ज़ था, लो मैंने चुका दिया
" beautiful sher, so touching to read"
Regards
शेर सुंदर है।
bahut hi joradaar sher hai .vah babaal sab apke kye kahane . dil mast mast ho gaya . dhanyawad
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