ख़याल मेरा तुम्हारे ख़्वाबों में जगह पाता तो ग़म न होता,
या बन के क़तरा तुम्हारी पलकों पे जगमगाता तो ग़म न होता ।
कोई मोहब्बत की शम्मा ले कर, इधर से गुज़रा था, सोचता हूँ,
ये ज़िन्दगी रोशनी में उसकी, गुज़ार पाता तो ग़म न होता ।
----पन्नालाल 'नूर'
कौन........
10 वर्ष पहले