रविवार, 13 जुलाई 2008

मोम के बाजू

माननीय अमरसिंह साहेब के अथक प्रयासों पर :-

उसे कह दो के ये ऊँचाइयाँ मुश्किल से मिलती हैं,
वो सूरज के सफ़र में मोम के बाज़ू लगाता है !
-राहत इन्दौरी

शनिवार, 12 जुलाई 2008

क़त्ले-आम

आज के राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में देखिये ये शेर -

तंग आ चुके हैं लोग मुसलसल सुकून से,
आलमपनाह शहर में अब, क़त्ले-आम हो !

मुसलसल = लगातार

ख़ुदा का नाम चलता है ...............

पैमाने खनकते हैं, न दौरे-जाम चलता है !
नई दुनिया के रिन्दों में, ख़ुदा का नाम चलता है !!

-शकील बदायूनी

बुधवार, 9 जुलाई 2008

सुनिये बवाल कव्वाल को: उड़न तश्तरी की महफिल में

चलिये, आज आपको मिलवाते हैं हम अपने प्रिय बवाल से. अनोखी प्रतिभा का धनी, विल्क्षण योग्यतायें, कभी सी ए बनने की तमन्ना लिए मेरे पास पढ़ने आता शर्मिला विद्यार्थी और आज मंच से मेरा ही नाम ऊँचा करता यह अद्भुत व्यक्ति...वाकई, गले लगाने योग्य बालक है. मेरा बहुत प्रिय. एक आवाज पर एक पैर पर खड़ा....कव्वाली से पांच साल तक दूरी रखने के बाद, देश के सबसे बेहतर कव्वाल लुकमान का वारिस,,,मेरे कहने पर पुनः कव्वाली की दुनिया में लौट कर चंद प्राईवेट महफिलों से फिर लाईम लाईट में लौट कर आ जाने की कला में पारांगत..वाह वाह, क्या कहने.

इस भारत यात्रा के दौरान मेरे द्वारा आयोजित एक प्राईवेट मेहफिल का आप भी आनन्द लें. कुछ तो आप मेरे ब्लॉग पर ले चुके हैं, कुछ यहाँ भी लें और इनका उत्साह बढ़ाये..निश्चित ही भविष्य में यह आपका मनोरंजन करते रहेंगे::





बताईयेगा जरुर, कैसा लगी यह पेशकश.

मंगलवार, 8 जुलाई 2008

शाम के बाद जाम :- (उड़नतश्तरी) की फ़रमाइश पर

वो ख़रामा चाल आए, शाम हो जाने के बाद !

क़त्ल हो बैठा, नज़र का जाम हो जाने के बाद !!

और क्या क्या हो गया, क्या कीजियेगा पूछकर ?

आम हो जाता है जल्वा, काम हो जाने के बाद !!

-बवाल

आज फिर है ख़स्ता मगर ख़ुद ख़स्ता

सुब्हे-वाइज़ कभी, पैग़ाम से आगे न बढ़ी !

अपनी तौबा भी कभी, शाम से आगे न बढ़ी !!

-विनोद "ख़स्ता"
सुब्हे-वाइज़ = उपदेशक (पंडित, मुल्ला, पादरी, गुरु) का सवेरा
पैगा़म = संदेश
तौबा = न पीने की क़सम

सोमवार, 7 जुलाई 2008

खा़म-ख़याली

इस ख़ाम-ख़याली में, उनसे बड़ी ग़फ़्लत हुई !

नफ़रत का इरादा था, पर हमसे मुहब्बत हुई !!

-बवाल

ख़ाम-ख़याली = ग़लत योजना

तौल

मुसलसल टूटना दिल का मेरा, जारी रहा !

मौत से जीस्त का पलड़ा मगर, भारी रहा !!
-बवाल

मुसलसल = लगातार, जीस्त = जीवन

रविवार, 6 जुलाई 2008

गलबहियाँ

काँग्रेस और समाजवादी पार्टी की अंदाजे-मोहब्बत पर बद्र कितने वाजिब लगते हैं !
देखिये -
मोहब्बतों में दिखावे की दोस्ती न मिला,
अगर गले नहीं मिलता, तो हाथ भी न मिला !!

शुक्रवार, 4 जुलाई 2008

उड़नतश्तरी वाले समीर लाल जी की लेटेस्ट पोस्ट पर टिप्पणि

लाल मदारी डुग-डुग लेकर, खेल दिखाने आता है !
खेल-खेल में बड़ी-बड़ी बातें, कर जाने आता है !
हाँ बतलाने, हाँ गिनवाने, हाँ मिलवाने आता है !

हिक़मत, हिम्मत, हैरत से हँस-रंग सजाने आता है !!

और इनकी आँखों के वास्ते "जोश" से --

ये बात, ये तबस्सुम, ये नाज़, ये निगाहें !
आख़िर तुम्हीं बताओ, क्यूँकर न तुमको चाहें ?

गुरुवार, 3 जुलाई 2008

ख़स्ता ख़स्ता

ख़स्ताजाँ, ख़स्ताजिगर है,

ख़स्तादिल औ ख़स्ताहाल !

जिसको दुनिया कह रही है,

ये ही करता है - बवाल