मंगलवार, 29 सितंबर 2009

मेरे सपनों का एग्रिगेटर (बवाल)

हाय,
ये भी कोई बात है मैथिली जी, कि दुनिया भर को अपनी बात कहने का मंच देने वाले होकर भी विजय पर्व पर हार मान बैठे। वो भी इसीलिए माननी पड़ी कि आपकी ब्लॉगवाणी ब्लॉग मंच से हटकर एक युद्ध क मैदान बन पड़ी थी। आज सबसे अधिक पसंद प्राप्त, आज सबसे ज्यादा पढ़े गए, आज सबसे ज्यादा टिप्पणी प्राप्त आदि आदि। मगर आज का सबसे बेहतर चिट्ठा ? वो कहाँ ? चाहे उस पर कोई पसंद, कोई टीप, कोई पठन ना हो। इस चक्कर में कुछ स्तरीय बातें नज़र से छूट जाती थीं। खै़र अब तो मट्की फूट गई। मगर ये मट्की क्यूँ फूटी ?
काश के कोई ऐसा एग्रीगेटर होता के-
१) जो अल्फ़ाबेटिकली अरेंज्ड होता।
२) दिन भर में २४० पोस्टों से ऊपर प्रदर्शित ही ना करता।
३) एक ब्लॉगर को हफ़्ते में एक ही दिन पोस्ट करने देता।
४) ब्लॉग को जिसने भी पढ़ा उसे टिप्पणी कार मानता।
५) पसंद नापसंद के लिए अलग से विशिष्ट टीप की व्यवस्था रहती।
६) सबसे ज़्यादा और सबसे कम का दिल छोटा करने वाला कोई पैमाना ही ना होता।
७) ब्लॉग महज़ ब्लॉग रहता, कोई प्रतियोगिता, पसंद, श्रेष्ठता और पहेली की वस्तु ना रहता।
काश के ऐसा होता ।
काश के ऐसा के ही हो।
आज ब्लॉगवाणी भी शोले के धरम प्राजी जैसे टंकी पर चढ़ चुकी है। लेकिन ये भी सच है के जब गुस्सा उतर जाएगा तब ये भी उतर आएगी। और आप कोई हिन्दी ब्लॉगिंग पर एहसान नहीं कर रहे थे मैथिली जी या सिरिल जी, बल्कि अपना कर्तव्य निभा रहे थे। तो क्या इस यज्ञ में हम आपके साथ नहीं थे। अब भी हैं। कम बैक जी।
फ़ोन बंद कर देने से क्या बात बंद हो जाएगी। ये वो निकली है जो अब दूर तलक जाएगी। दीवार फ़िल्म के उस डायलॉग को याद कीजिए के "जिसने तेरे हाथ पर यह लिख दिया के मेरा बाप चोर है" वो तेरा कौन था ?
पसंद नापसंद के चट्कों से दुनिया नहीं चलती । वो तो चलती है मोहब्बती उसूलों से ।
चलते चलते नीरज के उस गीत को चलिए फिर याद कर लें--
ऎसी क्या बात है चलता हूँ अभी चलता हूँ गीत इक और ज़रा झूम के गा लूँ तो चलूँ ।

मंगलवार, 22 सितंबर 2009

दिल में .............(बवाल)

वाह, क्या दीवान तेरा, नूर सा फबता हुआ !



जिसमें ख़ुद को पा रहा हूँ, तुझसे मैं कटता हुआ !!



ख़ैर दिल की बात दिल तक ही, रखूंगा यार अब !



और कर भी क्या सकूंगा, मोहरा हूँ पिटता हुआ !!



--- बवाल