गुरुवार, 23 दिसंबर 2010

सम्मान समारोह, जबलपुर

चार मित्रों राजेश पाठक,गिरीश बिल्लोरे,बसंत मिश्रा,डा०विजय तिवारी किसलय, ने विगत तेरह वर्ष पूर्व एक कल्पना की थी. वो यह कि हम स्वर्गीय हीरा लाल गुप्त मधुकर जी स्मृति में उनके समकालीन व्यक्तित्वों को सादर आमंत्रित कर उनसे सीमित-साधनों के दौर में होने वाली सफ़ल एवम सुफ़ल साहित्य-साधना एवम पत्रकारिता के अनकहे बिन्दुओं से परिचित होंगे और बस एक कार्यक्रम की कल्पना को आकार दिया मधुकर जी के के जन्म दिवस पर “ स्वर्गीय हीरालाल गुप्त स्मृति समारोह ”के रूप में “और अगले ही वर्ष से शुरु हो गया यह सिलसिला.

बस विनम्र भाव से अपनी बुजुर्ग पीढ़ी से आशीर्वाद लेते ये युवा प्रति वर्ष स्वर्गीय हीरा लाल गुप्त मधुकर जी के समकालीन बुजुर्ग पत्रकार को तथा एक युवा विचारवान सृजन धर्मी पत्रकार को सम्मानित करने लगे. उनसे समझने लगे सीमित साधनों में असीमित सफ़लता के रहस्य .

इसी क्रम में 2008 से अंतरज़ाल के ज़रिये लेखन करने वाले लेखकों की तलाश की गई. जबलपुर के श्रेष्ठ ब्लागर के रूप में 2009 श्री महेंद्र मिश्रा को सम्मानित किया.

श्रेष्ठ ब्लागर के रूप में इस वर्ष 2010 को उड़नतश्तरी यानि समीरलाल को सम्मानित किया जा रहा है.
सतत जारी वैचारिक कार्यक्रम

स्वर्गीय हीरालाल गुप्त स्मृति सम्मान

श्री महेश महेदेल

वरिष्ठ पत्रकार ,स्वतंत्र-मत,जबलपुर
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सव्यसाची प्रमिला देवी बिल्लोरे स्मृति सम्मान 2010

ओम कोहली ,संपादक ,डीज़ि-केबल, जबलपुर
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लिमटि खरे,पत्रकार नई दिल्ली
कृष्ण कुमार खरे ,वरिष्ठ पत्रकार,जबलपुर

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हिन्दी के श्रेष्ठ ब्लागर : समीरलाल,कनाडा ,
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विमोचन :-

श्री सतीश शर्मा की कृति “दिखावा खत्म : मंहगाई खत्म ” का

सतीश शर्मा जी

कार्यक्रम स्थल एवम समय :-

भातखण्डे संगीत महाविद्यालय, मदन महल स्टेशन के पास , जबलपुर मध्यप्रदेश
शुक्रवार 24 दिसम्बर 2010 समय शाम 06:30 बजे से

रविवार, 28 नवंबर 2010

सौवां धमाल: लाल और बवाल

एक अंतराल के बाद जबलपुर पहुँच फिर जमी महफ़िल लाल और बवाल की और यह दौर यूँ ही चलता रहेगा रुबरु जब तक जबलपुर प्रवास जारी है.



कल कुछ मजेदार एवं यादगार समय बीता लाल और बवाल का गिरीश बिल्लोरे जी और सलिल समाधिया जी के साथ, जिसे रिकार्ड कर एक नये प्रयोग की शुरुवात हुई. यह मिलन ऑन लाईन लाईव ब्रॉडकास्ट किया गया भाई बिल्लोरे जी द्वारा:




फिर बैठे लाल और बवाल अपने पुराने चिरपरिचित डेरे पर. कुछ जुगल बंदियों का दौर चला, कुछ बीती बातें..जाने कितनी रात तक महफिल चलती रही. बवाल गाता रहा, लाल सुनाता रहा. बवाल ने गाया एक मुखड़ा लाल के लिखे गीत का. गाया तो और भी बहुत कुछ, मगर अभी रिकार्डिंग सिर्फ मुखड़े की उपलब्ध है, बाकी तो रोज होती ही रहेगी.

गीत पढ़िये और फिर बवाल से मुखड़ा सुनिये:

बहता दरिया है लफ़्ज़ों का,
तुम छंदों की कश्ती ले लो !
जब गीत कमल खिल जाएँ तब,
तुम भँवरों की मस्ती ले लो !!


टूटे-फूटे थे शब्द वहाँ,
फिर भी वो गीत रचा लाया !
कोई बहर-वहर की बात न थी,
फिर भी वो ग़ज़ल सजा लाया !!
------परिहासों की उस बस्ती का,
संजीदा हुक्म बजा लाया !!!
उसने सीखा खाकर ठोकर,
तुम सीख यहाँ यूँही ले लो
बहता दरिया है लफ़्ज़ों का,
तुम छंदों की कश्ती ले लो !


ये मज़हब-वज़हब की बातें,
आपस के रिश्ते तोड़ रहीं !
और सहन-शक्तियाँ भी अब तो,
दुनिया भर से मुँह मोड़ रहीं !!
------धर्मों के झूठे गुरुओं की,
तक़रीरें हृदय झंझोड़ रहीं !!!
या दाम चुका कर लो नफ़रत,
या दिल की प्रीत युँही ले लो
बहता दरिया है लफ़्ज़ों का,
तुम छंदों की कश्ती ले लो !


आदर्शों और बलिदानों की,
उसको तो रस्म निभानी है !
हाँ मातृ-मूमि पर न्यौछावर,
होने की वही जवानी है !!
------हृदयों को जिसने जीत लिया,
उसकी ही कोकिल बानी हैं !!!
दिन रोकर काटो या हँसकर,
जो चाहो रीत, यहीं ले लो
बहता दरिया है लफ़्ज़ों का,
तुम छंदों की कश्ती ले लो !

-समीर लाल ’समीर’




और इस तरह इस पोस्ट के साथ आज पूरा हुआ १००वीं पोस्ट का सिलसिला जो अनवरत जारी रहेगा.

आप सबके स्नेह का लाल और बवाल की तरफ से बहुत बहुत आभार.

रविवार, 16 मई 2010

जाने क्या वो लिख चले.....................(बवाल)

जाने क्या वो लिख चले और, जाने क्या ये पढ़ चले ...?

हम-क़लम के हर्फ़े-आख़िर, दिल में पुरदम गड़ चले............

--- बवाल


हम-क़लम  = एक जैसा और एक साथ लिखने वाले, मित्र (...., ....., .....)

हर्फ़े-आख़िर = अटल और अंतिम निर्णय, शब्द या बात व्यक्त करते हुए वर्णाक्षर

पुरदम = भर-ताक़त

सोमवार, 1 मार्च 2010

किसिम किसिम की गुलाल................................

किसिम-किसिम की गुलाल लेकर,  हम उड़ चले थे उन्हें लगाने  !




मगर वहाँ से वो उड़ चले थे, तमाम रंगत को ही मिटाने !!



तभी  यकायक से मौसमे-गुल, ने हक़ में अपने जो दी गवाही !



तो हैरत-अँगेज़ रँगे-जन्नत, लगे हमारी ग़ज़ल सजाने !!





आप सभी साहिबान को ईद, होली और हॉकी में हिन्दोस्ताँ की बेहतरीन जीत पर ढेर सारी बधाइयाँ

--- बवाल

शुक्रवार, 12 फ़रवरी 2010

माटी की गागरिया................(बवाल)


दुपहरिया बीत चली,

पनघट पर रीत चली !

पनिहारिन फिर लौटी,

भर रस की सागरिया !

माटी की गागरिया !!


--- पद्मश्री पं. भवानी प्रसाद तिवारी

!!  हमारे उस्ताद लुक़्मान जी के भी उस्ताद और संस्कारधानी के प्रथम महापौर पद्मश्री पं. भवानी प्रसाद तिवारी की पुण्य जयंती १२ जनवरी पर उन्हें

शत् - शत् श्रद्धा-सुमन !!

और

!! आप सबको महाशिवरात्रि पर्व पर ढेर सारी शुभकामनाएँ !!


कचनार सिटी जबलपुर के ७६ फ़ीट ऊँचे शिवजी


भोला नई माने रे नई माने, मचल गए भंगिया (भाँग) पै

सोमवार, 18 जनवरी 2010

मैं जनाज़ा हो चला.............................(बवाल)

दोस्त तेरी महफ़िलों से, जी मेरा,   ले भर गया

मैं जनाज़ा हो चला, ऐलान कर दे,   मर गया



काश, दिल का दर्द तू, पहले बता देता कभी !

क्या मैं तेरे सामने, ज़िंदा नहीं होता अभी  ??

गुरुवार, 14 जनवरी 2010

चचा लुक़्मान ज़िंदाबाद : बवाल का सलाम

कुछ ऐसी तसव्वुर की, महफ़िल सजाएँ

जहाँ हों वहीं से, उन्हें खैंच लाएँ 

क़व्वाले-आज़म तहज़ीबिस्तान

चचा लुक़्मान



हमारे उस्ताद की जयंती

१४ जनवरी १९२५ (मकर संक्राति) पर

उन्हें ‍शत् शत् नमन

(महाप्रयाण :- २७ जुलाई २००२)

पद्मश्री पंडित भवानी प्रसाद तिवारी जी की इन पंक्तियों के साथ

मधुर बीन तेरी स्वरित तार मेरे

बहुत जोड़ता हूँ, नहीं जोड़ पाता

और

हमारे श्रद्धासुमन


चोटों पे चोट खाना, खाकर वो भूल जाना

मुझे मुआफ़ करते करते, अल्लाह बन न जाना


एहले ज़बाँ का मुझको, वो इल्म ना हो शायद

तेरी कहन को लेकिन, हूँ जानता निभाना

---बवाल

मंगलवार, 12 जनवरी 2010

अलसेट में हो गया लेट : नतीजा बवाल की रीमिक्स पहेली २००९ का

आदरणीय एवं प्रिय आत्मीयजनों,
साल २००९ की और बवाल की अब तक की इकलौती “रीमिक्स" पहेली के नतीजे की घोषणा करते हुए हमें अत्यंत हर्ष हो रहा है। हालाँकि यह अपने निर्धारित समय से कई दिन बाद हो पा रही है क्योंकि इसके आयोजक पिछले दिनों ज़रा अलसेट में पड़े हुए थे, और इसीलिए देर के लिए हम आप सब के क्षमाप्रार्थी हैं। अलसेट का तो ऐसा है कि जब जब वो हमें होती है तो अपने साथ साथ हम अपने कुछ प्रियजनों की भी अलसेट करवा देते हैं ताकि उनका हमारा साथ बना रहे। हा हा। देखिए ना पिछले दस-पाँच दिनों में हमारे कितने ही प्रियजनों की अलसेट होती रही। हत्ता कि भैं-भैं रू-रू झटक-पटक तक हुई । मगर हम सदैव उनका साथ देते आए हैं और देते रहेंगे।

खै़र चलिए आगे चलते हैं।
जी हाँ, तो पहेली के जज, बिगब्रदर समीर-लाल जी ने सभी जवाबों का महीनता से अवलोकन करके पहेली का नतीजा घोषित कर दिया है।


हमारे साथ ज़ोरदार तालियों से जीतने वालों का स्वागत कीजिए
जी हाँ तो लीजिए इस रीमिक्स पहेली के

विजेता हैं :

हम सब के प्रिय स्मार्ट इण्डियन जी




इन्होंने पहेली कुछ इस अंदाज़ में बूझी :-

बवाल जी,
पहला इनाम तो गया पहली टिप्पणी में मगर दुसरे का दावा तो किया जा सकता है. यह तो सीमा जी की प्रसिद्ध रचना है. आपके सारे प्रश्नों के जवाब यहाँ पर हैं:
http://mairebhavnayen.blogspot.com/2008/12/blog-post_06.html

अरे भैया, ऐसे तो हम हर परीक्षा पास कर लेते परीक्षा लेने वाले से यह कहकर, कि आपके इन सारे प्रश्‍नों का जवाब हमारे निसाब (कोर्स) की फ़लाँ फ़लाँ पुस्तक में हैं। हा हा। मगर फिर भी आपने यह ज़हमत उठाई और सही जगह पहुँचे इसीलिए ख़िताब हुआ आपके नाम।


प्रजेता हैं:

परम आदरणीया सुश्री सीमा गुप्ता जी




इन्होंने पहेली कुछ इस अंदाज़ में बूझी :-
ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ah ah ah ha ha ha ha .................ha ha ha ha ha ha ha


उनका मतलब यह था कि आप हँसिए मत, बड़ी कठिन पहेली है। उत्तर जो कि मालूम है मगर यदि देती हूँ तो लोग कहेंगे-- आँ ssss ख़ुद का गीत तो कोई भी पहचान जाता। यदि नहीं देती हूँ तो लोग कहेंगे ख़ुद का गीत ही भूल गए। हा हा।


वे विशाल हृदय हैं, इसीलिए बवाल से नाराज़ भी नहीं हुईं कि उनका  इतना सुन्दर गीत क्यों इस तरह तोड़ा-मरोड़ा ?
इसीलिए हमारी जुगलबंदी उनका तहेदिल से आभार प्रकट करती है कि उन्होंने पहेली की रोचकता बनाए रखने में हमें सहयोग दिया।
Rewards

और हमारे हृदय-विजेता हैं सर्वादरणीय-सर्वश्री :-
शशिकांत ओझा जी
समयचक्र वाले महेंद्र मिश्रा जी
राज सिंह जी
दिनेशराय द्विवेदी जी
नीरज गोस्वामी जी
राज भाटिया जी
समीर लाल जी
निर्मला कपिला जी
बेनामी जी
ताऊ रामपुरिया जी
अनूप शुक्ल (फ़ुरसतिया जी)
सुश्री अल्पना वर्मा जी
ज़ाकिर अली रजनीश जी
गिरीश बिल्लोरे ‘मुकुल’ जी
डॉ. मनोज मिश्र जी
मुरारी पारीक जी
अरविंद मिश्रा जी
ललित शर्मा जी
निर्झर’नीर जी
किसलय जी

और ये हैं रीमिक्स पहेली के सही जवाब :-


१) किस ब्लॉगर ने लिखी ?
          सुश्री सीमा गुप्ता


२) किस ब्लॉग पर लिखी ?
      http://mairebhavnayen.blogspot.com/2008/12/blog-post_06.html


३) किस तारीख को लिखी ?
      ६ दिसंबर २००८


४) रचना की पहली लाइन क्या है ?
        हर गीत अधुरा तुम बिन मेरा,


और पूरा ख़ूबसूरत गीत यह है :

हर गीत अधुरा तुम बिन मेरा,
साजों मे भी अब तार नही..
बिखरी हुई रचनाएँ हैं सारी,
शब्दों मे भी वो सार नही...
जज्बातों का उल्लेख करूं क्या ,
भावों मे मिलता करार नही...
तुम अनजानी अभिलाषा मेरी,
क्यूँ सुनते मेरी पुकार नही ...
हर राह पे जैसे पदचाप तुम्हारी ,
रोकूँ कैसे अधिकार नही ...
तर्ष्णा प्यासी एक नज़र को तेरी,
मिलने के मगर आसार नही.....


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