शनिवार, 21 जून 2008

नूर तुम कहाँ हो ?

चिट्ठाजगत

साक़िया तेरा पिलाना काम है,
बंदिशे-मिक़दार तौरे-खा़म है !
कितनी पीना ? कब न पीना चाहिए ?
ये तो तय करना हमारा काम है।

-पन्नालाल नूर (नौट मी धिस टाइम)

शुक्रवार, 20 जून 2008

नफ़ा-नुक्सान

चिट्ठाजगत


दास्ताँ नुक्सान की, अब नफ़े में क्या कहूँ ?
इक लुग़त की बात को, इक सफ़े में क्या कहूँ ?


लुग़त = शब्दकोष

गुरुवार, 12 जून 2008

उड़ने वाली चीजों को.......

मुट्ठी में ये भी रखते हैं, उड़ने वाली चीज़ों को !
क्यूँकर नष्ट किया करते हम, इतने प्यारे बीजों को !!


नैतिकता बस छोड़ पढ़ाते, घुड़दौड़न-लड़ना-तरना !
कम्प्यूटर-इंग्लिश-मोबाइल, ड्राइविंग और सर्फिंग करना !!


बचपन में बचपन मुरझाये, ऐसी जुगत लगाते हम !
अदब-क़ाएदा ताक पे रखकर, ज़िन्दा इन्हें बनाते बम !!



इंतिका़म तहज़ीब भी लेगी, देखना इक दिन नस्लों से !
धोना होगा हाथ हमें भी, खड़ी हुई इन फ़स्लों से !!

लाल करें बव्वाल कभी ना, इतना मर्म तो जाने हम !
बहुत हो चुका, चलो चल पड़ें, पालक-धर्म निभाने हम !!

इक तेरी नज़र का (समीर लालजी की पोस्ट पर टिप्पणी)

श्री समीर लाल जी की २६मई की अदभुत पोस्ट पर टिप्पणी लिखने चला तो रक्षंदा जी की उर्दू के बारे में उनकी शिकायत ज़हन में आ गई । दूर करने चले तो ग़ज़ल आगे बढ़ चली ।
गौ़र कीजियेगा :

वाँ ग़मेयार बाकी़ है, इक तेरी नज़र का !
याँ लालाज़ार बाकी़ है, इक तेरी नज़र का !!

साज़ों पे वार हो चुका पर, बेसदा हैं सब !
वो गुंग-तार बाकी़ है, इक तेरी नज़र का !!


मसला मेरी ग़ज़ल का अभी, पुर-असर नहीं !
अभी अश'आर बाक़ी है, इक तेरी नज़र का !!

बेवज़्न बेहवा हो वफ़ा, उड़ती फ़िर रही !
वज़्ने-वका़र बाक़ी है, इक तेरी नज़र का !!

सब शेर सज चुके हैं ग़ज़ल, लबकुशा हुई !
हाँ इश्तिहार बाकी़ है, इक तेरी नज़र का !!

हम पर बवाल कर रही, है सारी कायनात !

पर ऐतबार बाकी़ है, इक तेरी नज़र का !!

(ग़मेयार-महबूब के न मिलने का ग़म), (लालाज़ार- लाल फूलों का बागी़चा), (बेसदा - बेआवाज़), (गुंग-तार -- न बोलने वाला तार), (वज़्ने-वका़र - मान मर्यादा का भार) , (लबकुशा - बोलना )

मंगलवार, 10 जून 2008

मर्ज़ दर्द-ए-दिल...

ये मर्ज़ दर्द-ए-दिल है, गफ़लत में ना बढ़ाएँ !


वोजो हैं हक़ीम लुक़्माँ (लुक़्मान), उनको ज़रा दिखाएँ !!

महकीं हैं ये फ़ज़ाएँ...

अब तक सलीब पर तो, मिलती रही सज़ाएँ !


पर अब सलीब से ही, महकीं हैं ये फ़ज़ाएँ !!

इंसानियत का परचम...

जो नेक राह पर हैं, वो एक राह आएँ !

इंसानियत का परचम, फ़हरा के तो दिखाएँ !!

माँझा ही माँझा...

सद्दी पे काटती हैं, अल्लाह की सज़ाएँ !

माँझा ही माँझा करलें, लेकर के कुछ दुआएँ !!

रग रग में लाल होगा...

रग रग में लाल होगा, जो लहू के रंग पे जाएँ !

बवाल ना मचाएँ, मिल कर ग़ज़ल बनाएँ !!

बवाल मच रहा है....


बवाल मच रहा है, भड़की हैं सब दिशाएँ !

मुक्काबला है इस पे, के कितना लहू बहाएं ?