सोमवार, 6 अप्रैल 2009

अलग रही है.............(बवाल)

जो बख़्ते-खुफ़्त: सी लग रही है,
वो रफ़्त: रफ़्त: सुलग रही है !
मेरी कहानी ज़माने वालों,
अज़ल से ही कुछ अलग रही है !!
---बवाल
बख़्ते-खुफ़्त: = सोया हुआ भाग्य
रफ़्त: रफ़्त: = आहिस्ता आहिस्ता
अज़ल = अनादिकाल