बुधवार, 30 दिसंबर 2009

साल २००९ की "रीमिक्स" पहेली : आयोजक बवाल

ये पहेली - वो पहेली, फ़लाँ पहेली - ढिकाँ पहेली, यहाँ पहेली - वहाँ पहेली, आऊ पहेली - म्याऊँ पहेली - उबाऊ पहेली, उड़न पहेली - गिरन पहेली, पूछ पहेली - ताछ पहेली, राज़ पहेली -  फ़ाश पहेली,  इफ़ पहेली - बट पहेली, पहेली - पहेली, अहेली - अहेली, हेली हेली -  एली एली, ली ली - ई ई, ईईईईईईईईईईई.............................................ई ।
बस, बस, बस्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स......।

सुनते सुनते, पढ़ते पढ़ते, भाग लेते लेते, इतनी गड्डम-गड्ड मच गई है कि अब तो हमें भी पहेली पूछने का मन होने लग गया रे भैया। अब तो हम भी पूछेंगे । नई तो पूँछ खैंचेंगे । हा हा।

बस इसी चक्कर में सोचा क्यों ना वो वाली चित्र पहेली पूछी जाए जिसमें दो एक से चित्र बना कर दूसरे वाले में कुछ ग़लतियाँ कर दी जाती हैं और फिर दोनों में अन्तर पूछा जाता है। मगर अलसेट यह हो रही थी कि चित्र अपन से बनते कहाँ हैं ? ख़ुद ही विचित्र जो ठहरे। या जैसे कभी कभी किसी की अच्छी भली तस्वीर को सिल बट्टे पर पिसी हुई अमरूद की चटनी बना कर पूछा जाता है, पईचान कोन ?  पर बचपन में एक दफ़ा दोनों पैर के अँगूठों पर इसी चक्कर में सिल गिरा बैठे थे सो ये आइडिया तत्काल प्रभाव से ड्रॉप कर दिया। इसकी नाक उसकी उसकी नाक पर लगाना तो सबसे रिस्की है। अरे कहीं किसी ऊँची नाक वाले पर नीची नाक लगा दी तो वो तो हम पर मानहानि का मुकद्दमा ही ठोंक डालेगा ना। ना बाबा ना। तौबा तौबा।  खै़र, सोचते रहे सोचते रहे।

अचानक एक विचार कौंधा और हमने आनन-फ़ानन में एक मशहूर ब्लॉगर की एक बहुत ही बेहतरीन रचना चूज (चूज़) की और उसे रीमिक्स (तोड़-मरोड़) बनाने की ठान ली। मगर तुर्रा ये के गीत लिखना अलग बात उसे तोड़ना मरोड़ना, डिफ़रेण्ट। अलग और डिफ़रेण्ट में क्या डिफ़रेन्स है ये तो आप लोग जान ही चुके हैं। है ना ?  मगर ज़रूरत पड़ने पर आदमी फ़िल इन द ब्लैंक्स को भी अपना फ़िल इन द बलैंक्स बना लेता है, आपको विश्‍वास न हो तो चाहे जिससे पूछ लें। हमने भी यही किया और अपने भीतर के बवाल को अपना फ़िल इन द ब्लैंक्स बना कर यह काम सौंप दिया। मगर ससुरा यह बवाल है ना, ये अपने नाम को पहले दिन से ही बट्टा लगाए बैठा है। नाम बवाल है और काम हमेशा उल्टा ही करता है। देखिए ना हमने रचना को तोड़-मरोड़ कर रीमिक्स (जैसा कि आजकल लता जी, आशा जी, किशोर दा, रफ़ी साहब आदि के सदा बहार सुन्दर गानों की बखिया उधेड़ कर किया जा रहा है) बनाने को कहा और उसने ओरीज़नल सुन्दर रचना के शब्दों को न जाने किस तरह उलट पलट कर एक दूसरे ही रूप में सामने रख दिया । अब हम करते भी तो क्या करते जब शब्द भी वही, सेन्ट्रल आइडिया भी वही और बात भी वही तो मान लिया रचना को "रीमिक्स"। हा हा ।

बहरहाल अब आपको इस रीमिक्स पहेली को कुछ यों बूझना है के नीचे दी गई “रीमिक्स” रचना की ओरीज़नल रचना :-

१) किस ब्लॉगर ने लिखी ?

२) किस ब्लॉग पर लिखी ?

३) किस तारीख को लिखी ?

४) रचना की पहली लाइन क्या है ?

तो लीजिए पढ़िए ये रीमिक्स रचना और बूझिए पहेली :-


गीत अधूरे तुम बिन मेरे

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गीत अधूरे, तुम बिन मेरे, साज़ों में कोई तार नहीं !

बिखरी हैं रचनाएँ सारी, शब्दों में कोई सार नहीं !!


भाव हृदय के व्यक्त करूँ क्या ? अन्यमनस्का हूँ मैं अब तो !

बस जज़्बात मचलते रहते, मिलता कहीं करार नहीं !!


तुम अनजानी अभिलाषा हो, या मृगतृष्णा मेरी हो तुम !

झलक दिखाते, नज़र ना आते, सुनते मेरी पुकार नहीं !!


तप्‍ते मन की, बिरहा अगन पर, प्रेम फुहारें बरसा दो अब !

ऐसा मत कह देना के फिर, मिलने के आसार नहीं !!


कम से कम मेरे अन्त से पहले, प्रियतम मिलने को आ जाना !

ये मेरी मनुहार है तुमसे, ये मेरा अधिकार नहीं !!


--- बवाल (रीमिक्सर)


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नोट : रीमिक्स पहेली का उत्तर एवं विजेता का नाम ३१ दिसम्बर २००९ से १ जनवरी २०१० के बीच  प्रकाशित कर ही दिया जावेगा। (नहीं तो लोग क्या कहेंगे) हा हा !