रविवार, 28 नवंबर 2010

सौवां धमाल: लाल और बवाल

एक अंतराल के बाद जबलपुर पहुँच फिर जमी महफ़िल लाल और बवाल की और यह दौर यूँ ही चलता रहेगा रुबरु जब तक जबलपुर प्रवास जारी है.



कल कुछ मजेदार एवं यादगार समय बीता लाल और बवाल का गिरीश बिल्लोरे जी और सलिल समाधिया जी के साथ, जिसे रिकार्ड कर एक नये प्रयोग की शुरुवात हुई. यह मिलन ऑन लाईन लाईव ब्रॉडकास्ट किया गया भाई बिल्लोरे जी द्वारा:




फिर बैठे लाल और बवाल अपने पुराने चिरपरिचित डेरे पर. कुछ जुगल बंदियों का दौर चला, कुछ बीती बातें..जाने कितनी रात तक महफिल चलती रही. बवाल गाता रहा, लाल सुनाता रहा. बवाल ने गाया एक मुखड़ा लाल के लिखे गीत का. गाया तो और भी बहुत कुछ, मगर अभी रिकार्डिंग सिर्फ मुखड़े की उपलब्ध है, बाकी तो रोज होती ही रहेगी.

गीत पढ़िये और फिर बवाल से मुखड़ा सुनिये:

बहता दरिया है लफ़्ज़ों का,
तुम छंदों की कश्ती ले लो !
जब गीत कमल खिल जाएँ तब,
तुम भँवरों की मस्ती ले लो !!


टूटे-फूटे थे शब्द वहाँ,
फिर भी वो गीत रचा लाया !
कोई बहर-वहर की बात न थी,
फिर भी वो ग़ज़ल सजा लाया !!
------परिहासों की उस बस्ती का,
संजीदा हुक्म बजा लाया !!!
उसने सीखा खाकर ठोकर,
तुम सीख यहाँ यूँही ले लो
बहता दरिया है लफ़्ज़ों का,
तुम छंदों की कश्ती ले लो !


ये मज़हब-वज़हब की बातें,
आपस के रिश्ते तोड़ रहीं !
और सहन-शक्तियाँ भी अब तो,
दुनिया भर से मुँह मोड़ रहीं !!
------धर्मों के झूठे गुरुओं की,
तक़रीरें हृदय झंझोड़ रहीं !!!
या दाम चुका कर लो नफ़रत,
या दिल की प्रीत युँही ले लो
बहता दरिया है लफ़्ज़ों का,
तुम छंदों की कश्ती ले लो !


आदर्शों और बलिदानों की,
उसको तो रस्म निभानी है !
हाँ मातृ-मूमि पर न्यौछावर,
होने की वही जवानी है !!
------हृदयों को जिसने जीत लिया,
उसकी ही कोकिल बानी हैं !!!
दिन रोकर काटो या हँसकर,
जो चाहो रीत, यहीं ले लो
बहता दरिया है लफ़्ज़ों का,
तुम छंदों की कश्ती ले लो !

-समीर लाल ’समीर’




और इस तरह इस पोस्ट के साथ आज पूरा हुआ १००वीं पोस्ट का सिलसिला जो अनवरत जारी रहेगा.

आप सबके स्नेह का लाल और बवाल की तरफ से बहुत बहुत आभार.