बरसों पहले पाठ्य पुस्तक निगम की स्कूली शिक्षा की हिंदी बाल-भारती में एक टंग-ट्विस्टर कविता हुआ करती थी। बच्चों और मास्साबों-बहनजियों को भी पढने-पढ़ाने में बड़ा मज़ा आया करता था। इंटरनेट पर इस कविता को लोगों ने बतौरे-याद कई जगह प्रस्तुत किया, मगर कहीं भी सही अनुक्रम में और पूरी कविता सुनने या पढने नहीं मिली। इत्तेफ़ाक से हमें वो पुरानी बाल-भारती ही मिल गई जिसमें यह सम्पूर्ण कविता थी। पढ़कर बचपन की यादें ताज़ा हो गईं। सोचा की क्यों ना इसे आप सब से शेयर किया जाए। फिर ये भी लगा के जब शेयर करेंगे तो लोग कहेंगे कि गा के सुनाते तो और आनंद आता। अतः इसे संगीत-बद्ध करके गाया, रिकॉर्ड किया, वीडियो भी बनाया और यूट्यूब एवं अन्य म्यूजिक चैनलों पर रिलीज़ किया। लीजिए आज नाग-पञ्चमी के शुभ अवसर पर आप सबके लिए प्रस्तुत है :- बाल-भारती की वो सम्पूर्ण मशहूर कविता आपके मित्र बवाल हिन्दवी की आवाज़ में :- (नीचे दिए गए लिंकों पर ऑडियो सुनिए एवं वीडियो ज़रूर देखिए, शायद पसंद आए )
नाग-पञ्चमी
(चन्दन चाचा के बाड़े में)
सूरज के आते भोर हुआ, लाठी लेझिम का शोर हुआ ।
यह नाग पंचमी झम्मक-झम, यह ढोल-ढमाका ढम्मक-ढम ।।
मल्लों की जब टोली निकली, यह चर्चा फैली गली-गली ।
कुश्ती है एक अजब ढंग की, कुश्ती है एक ग़ज़ब
रंग की ।
यह पहलवान अम्बाले का, यह पहलवान पटियाले का ।
ये दोनों दूर विदेशों में, लड़ आए हैं परदेशों में ।
उतरेंगे आज अखाड़े में, चंदन चाचा के बाड़े में ।।
सुन समाचार दुनिया धाई, थी रेलपेल आवाजाई ।
देखो ये ठठ के ठठ धाए, अटपट चलते उद्भट आए ।
थी भारी भीड़ अखाड़े में, चन्दन चाचा के बाड़े
में ।।
देखो दो बांके शूर चले, देखो नज़रों के नूर
चले ।
जब झूम झूम कर चलते थे, दो गज-शिशु विचल मचलते थे ।
वे भरी भुजाएँ, भरे वक्ष, वे दाँव-पेंच में कुशल-दक्ष ।
जब मांसपेशियां बल खातीं, तन पर मछलियाँ उछल आतीं ।
कुछ हँसते से मुस्काते से, मस्ती का मान घटाते-से ।
मूँछों पर ताव जमाते से, अलबेले भाव जगाते से ।
वे गौर-सलोने रंग लिये, अरमान विजय का संग लिये ।
दो उतरे मल्ल अखाड़े में, चंदन चाचा के बाड़े में ।।
दोनों की जय बजरंग हुई, तब दर्शक-टोली दंग
हुई ।
दो हाथ मिले दृग चार हुए, तन से मन से तैयार
हुए ।
जब एक पैंतरा हुआ उधर, दूसरा पैंतरा हुआ इधर
।
तालें ठोकीं, हुंकार उठी, अजगर जैसी फुंकार उठी ।
लिपटे भुज से भुज अचल-अटल, दो बबर शेर जुट गए सबल ।
बजता ज्यों ढोल-ढमाका था, भिड़ता बांके से बांका था ।
यों बल से बल था टकराता, था लगता दांव उखड़ जाता ।
जब मारा कलाजंघ कस कर, सब दंग कि वह निकला बच कर ।
बगली उसने मारी डट कर, वह साफ़ बचा तिरछा कट कर ।
दंगल हो रहा अखाड़े में, चंदन चाचा के बाड़े में ।।
दोनों लड़ते थे थम-थम कर, दोनों भिड़ते थे
जम-जम कर ।
हो रहे पेंच जाने-माने, कोई ना गिरा चारों
खानें ।
घिस्से की मार गर्दनों पर, जब जोश चढ़ा
मर्दानों पर ।
फिर खीज बढ़ी फिर जोश बढ़ा, हल्ले-गुल्ले का
लोभ बढ़ा ।
फिर
पकड़-पकड़ फिर उठा-पठक, इसने दाबा वह गया सटक ।
फिर अगल बगल से वार हुए, फिर हाथ-सजग दो-चार
हुए ।
जब यहाँ चली टंगड़ी अंटी, बज गई वहाँ घन-घन घंटी।
भगदड़ मच गई अखाड़े में, चंदन चाचा के बाड़े में॥