आदरणीय लाल साहेब की उड़नतश्तरी ने आलसी काया पर कुतर्कों की बड़ी ही लम्बी शानदार रजाई ओढा दी। मगर जल्दी जल्दी में एक देशी शेर दर्ज होना रह गया। बिज़ी थे तो मुझे आदेश दिया सप्लीमेंट में डाल देना । उसी के अनुपालन में लीजिये -
हाथ पाँव के आलसी और मुँह में मूँछें जाएँ
और मूँछ बिचारी का करै जब हाथ न फेरे जाएँ
-----क्या मालूम ?
बुधवार, 17 सितंबर 2008
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4 टिप्पणियां:
हाथ पाँव के आलसी और मुँह में मूँछें जाएँ
"ha ha ah suplimentry addition sach mey lajvab kr gya"
Regards
अच्छा है।
हाथ पाँव के आलसी और मुँह में मूँछें जाएँ
और मूँछ बिचारी का करै जब हाथ न फेरे जाएँ
-----क्या मालूम ?
Bahut badhiya .
बवाल है भाई.
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