शनिवार, 3 अक्तूबर 2009

तुहमत वो हम पर...............(बवाल)

आपकी तारीफ़ में, जो हम क़सीदे पढ़ चले
तालियों के सिलसिले, तड़ तड़ तड़ा-तड़ तड़ चले

उल्फ़तों की राह में, जो हम ज़रा सा बढ़ चले
बस, ज़माने भर की नज़रों में, सरासर गड़ चले

हम परिन्दे थे, ज़माना बेरहम सैयाद था
क़ैद में भी पर हमारे, फड़ फड़ा-फड़ फड़ चले

वो झलक थी आपकी, जिस पर मिटा सारा जहाँ
छिप के भी धड़कन हमारी, धड़ धड़ा-धड़ धड़ चले

वो अदब का क़त्ल था, जो सारा आलम लाल था
और ‘बवाल’-ए-बज़्म की तुहमत, वो हम पर मढ़ चले

---बवाल

47 टिप्‍पणियां:

समय चक्र ने कहा…

वो झलक थी आपकी, जिस पर मिटा सारा जहाँ
छिप के भी धड़कन हमारी, धड़ धड़ा-धड़ धड़ चले

बेहतरीन गजल प्रस्तुति . बहुत बहुत बधाई

अनूप शुक्ल ने कहा…

क्या ऊंचे दर्जे का दर्द है भाई! जय हो!

Mithilesh dubey ने कहा…

लाजवाब प्रस्तुति। बहुत-बहुत बधाई

"अर्श" ने कहा…

हर शे'र आलातरीन , पुर कशिश हैं सभी... काफिया लाजवाब है कुछ शे'र में नयापन लिए हुए ... अपने बज्म में मेरा सलाम कुबूल फरमाएं बड़े भाई... मक्ता अलग से दाद मांग रहा है ...ढेरो बधाई इस नाचीज की तरफ ...

अर्श

राज भाटिय़ा ने कहा…

बहुत सुंदर लगा आप का दर्द, अजी आप की यह रचना.
धन्यवाद

Udan Tashtari ने कहा…

वाह भाई वाह, बवाल!!

एक से बढ़कर एक धांसू. मजा आ गया.

जिओ!!

अमिताभ मीत ने कहा…

वो अदब का क़त्ल था, जो सारा आलम लाल था
और ‘बवाल’-ए-बज़्म की तुहमत, वो हम पर मढ़ चले

बहुत खूब. बढ़िया बवाल करते हैं आप भी.

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

बहुत खूबसूरत ग़ज़ल है। बधाई।
बवाल भाई, एक शैर ही सही। पर रोजाना हो जाए। बज़्म में दीपक जल जाता है। कई कई दिनों की गैर हाजरी खलती है।

Prem Farukhabadi ने कहा…

बहुत अच्छी लगी ग़ज़ल आपकी बधाई!!

mehek ने कहा…

हम परिन्दे थे, ज़माना बेरहम सैयाद था
क़ैद में भी पर हमारे, फड़ फड़ा-फड़ फड़ चले
waah,hamari aur se bhi har sher pe waah waah,aafrin.shandar gazal,maza aagaya padhke.

दिलीप कवठेकर ने कहा…

आप से बात कर के कितनी बडी खुशी हुई, बयां नहीं कर सकता.

आशा है, सिलसिला जारी रहेगा.

Girish Kumar Billore ने कहा…

chha gaye khann sab

Girish Kumar Billore ने कहा…

वो अदब का क़त्ल था, जो सारा आलम लाल था
और ‘बवाल’-ए-बज़्म की तुहमत, वो हम पर मढ़ चले

Girish Kumar Billore ने कहा…

http://voi-2.blogspot.com/

je rahe apan ke chitthe bhai jan

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Anil Pusadkar ने कहा…

वाह!क्या बात है।

Dileepraaj Nagpal ने कहा…

Aur Aapki Ada Per Ham Bhi Tippani Kar Chale...Waah-Waah

निर्मला कपिला ने कहा…

वो अदब का क़त्ल था, जो सारा आलम लाल था
और ‘बवाल’-ए-बज़्म की तुहमत, वो हम पर मढ़ चले

गज़ल का हर शेर ही लाजवाब है मगर ये शेर बहुत पसंद आया शुभकामनायें। एक बात समझ नहीं आयी कि अपने बवाल क्यों लगा रखा है नाम के साथ्

अपूर्व ने कहा…

अहा क्या बात है..मजा आ गया आज तो पढ़ कर
क्या तो दिलफ़रेब काफ़िया दिया आपने और फिर उस पर यह कहर ढाते अशआर..
वो झलक थी आपकी, जिस पर मिटा सारा जहाँ
छिप के भी धड़कन हमारी, धड़ धड़ा-धड़ धड़ चले
धड़कनो का इस तरह छिप के भी उजागर होना..दिल की बेइख़्तियारी का जादू.

आपकी तारीफ़ में, जो हम क़सीदे पढ़ चले
तालियों के सिलसिले, तड़ तड़ तड़ा-तड़ तड़ चले
खुद मे उम्दा कसीदाकारी का कमाल है यह शेर..जौक साह्ब पढ़ते तो...
एक एक शेर उम्दा है..दिल ले लिया आपने तो.

स्वप्न मञ्जूषा ने कहा…

बहुत खूब काफिया...एक दम अलग सा...
पढने में एक रवानी है....
सारे शेर आपके जी हम फट फटाफट पढ़ चले
और रही टिपण्णी तो खड़ खड़ा खड़ कर चले

seema gupta ने कहा…

वाह वाह वाह और वाह ..

regards

दीपक 'मशाल' ने कहा…

bahut khoob ustaad......

Satish Saxena ने कहा…

मस्त बवाल !

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) ने कहा…

वो अदब का क़त्ल था, जो सारा आलम लाल था
और ‘बवाल’-ए-बज़्म की तुहमत, वो हम पर मढ़ चले

wah! bahut khoob..........

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बवाल भाई नमस्कार ....... अपना आर्शीवाद बनाये रखियेगा......mujh par.....

शरद कोकास ने कहा…

‘बवाल’-ए-बज़्म की तुहमत, का जवाब नहीं !!

दर्पण साह ने कहा…

behteri ghazal....

...nayapan likye hue kafiya!!

husn-e-matla sabse behterin tha !!

Murari Pareek ने कहा…

हम परिन्दे थे, ज़माना बेरहम सैयाद था
क़ैद में भी पर हमारे, फड़ फड़ा-फड़ फड़ चले
वाह साहब जीतनी तारीफ की जाएँ "पर" यहाँ पर जो फड़ फड़ा -फड़ फड़ चले | वहाँ आनंद आ गया !!

अपूर्व ने कहा…

देखिये बार बार आना पड़ता है..और पढ़-पढ़ कर जी नही भरता है...फिर तड़-तड़ा-तड़ का जादू..यह तो पूरा बवाल हो गया भाई.
कोई शिकायत नही जो नयी पोस्ट नही दी आपने.. अभी तो बवाल-ए-बज़्म मे यही तुहमत खूब है

निर्मला कपिला ने कहा…

ांअपकी गज़ल ने तो दर्द को भी खूबसूरत कर दिया। लाजवाब

प्रवीण शुक्ल (प्रार्थी) ने कहा…

नमस्कार बबाल जी बहुत ही बेहतरीन गजल है दर्द को जिवंत कर दिया आप ने किसी शायर के दो शेर याद आये है ..
भूख ने बच्चों को पुचकारा तो आँखें खुल गई /
गम निगल कर घूँट भर आंसू पिए फिरते रहे //

कत्लगाहों का बाशिंदा बनके सारी जिंदगी /
हाथ मे गर्दन लिए जब तक जिए फिरते रहे /
सादर
प्रवीण पथिक
9971969084

शशिकान्त ओझा ने कहा…

अहा क्या ग़ज़ब की बात कही बवाल भाई।
वो अदब का क़त्ल था, जो सारा आलम लाल था
और ‘बवाल’-ए-बज़्म की तुहमत, वो हम पर मढ़ चले
कोई जवाब नहीं इस मिसरे का। आपको लोग उस्ताद युँही नहीं कहते।

निर्झर'नीर ने कहा…

हम परिन्दे थे, ज़माना बेरहम सैयाद था
क़ैद में भी पर हमारे, फड़ फड़ा-फड़ फड़ चले

khoob kahi hai.......

ye sher kuch jyada hi kashish bhara laga ..

MEDIA GURU ने कहा…

bahut dino bad dekha ........bahut sundar......
samay ka abhav rahata hai baval sahab......

Science Bloggers Association ने कहा…

आपकी तारीफ में हम भी तालियां बजा रहे हैं।
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Smart Indian ने कहा…

दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं!

RAJ SINH ने कहा…

मान गए उस्ताद ,
गजब किया है . आपकी शान में .......मेरी अपनी अर्ज़ .

गर अदब के कत्ल की तुहमत कोई तुम पर चले
तो होगा वो बव्व्वाल की हर दिल धड़क धड धड चले .

और अपनी शान में किसी और का लिखा हुआ ..........

शायद मुझे निकाल कर पछता रहें हो आप
तेरी बज्म में मैं आ गया हूँ एक बार फिर .
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आप को और 'बवालन ' बहू को दीप पर्व की असंख्य शुभकानाएं.

Girish Kumar Billore ने कहा…

दीप की स्वर्णिम आभा
आपके भाग्य की और कर्म
की द्विआभा.....
युग की सफ़लता की
त्रिवेणी
आपके जीवन से ही आरम्भ हो
मंगल कामना के साथ

योगेन्द्र मौदगिल ने कहा…

क्या बात है.... इसे कहते हैं ला-बवाल रचना... जय हो..

Prem Farukhabadi ने कहा…

Har sher savasher.vaah! Bawaal bhai vaah!!.

वो अदब का क़त्ल था, जो सारा आलम लाल था
और‘बवाल'-ए-बज़्म की तुहमत,वो हम पर मढ़ चले

Arvind Mishra ने कहा…

इस धडा धड गजल पर धकाधक बधाईयाँ !
मुश्किल है आप बीच बीच में गजल कर्म कर जाते हैं पता ही नहीं चलता !

गौतम राजऋषि ने कहा…

अरे वकील साब...ग़ज़ब की ग़ज़ल कह डाली है आपने....आहहा !!! अरे भई मजा अगया!
एकदम अनूठी, एकदम रेयर ग़ज़ल...ओहो!

सरजी, सलाम बजाते हैं इन अभूतपूर्व काफ़ियों पर, इस कमाल की बंदिश पर।
...और आपकी तमाम शुभकामनाओं का असर है कि खूब बेहतर हूं अब!

ग़ज़ल के लिये फिर से जी खोल कर दाद!

शिवम् मिश्रा ने कहा…

वाह - वाह... बहुत खूब ....क्या कहने आपके .........तालियों के सिलसिले, तड़ तड़ तड़ा-तड़ तड़ क्यों ना चले ??

Arvind Mishra ने कहा…

और इधर बवाले दाद का मलहम देकर हम खिसक लिए ......!

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

कल 20/02/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत खूब गजल

रचना दीक्षित ने कहा…

वो अदब का क़त्ल था, जो सारा आलम लाल था
और‘बवाल'-ए-बज़्म की तुहमत,वो हम पर मढ़ चले.

लाजवाब प्रस्तुति. बहुत बहुत बधाई.

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') ने कहा…

हम परिन्दे थे, ज़माना बेरहम सैयाद था
क़ैद में भी पर हमारे, फड़ फड़ा-फड़ फड़ चले

वाह! शानदार ग़ज़ल...

Asha Joglekar ने कहा…

क्या बात है बहुत ही जोरदार ।