आपकी तारीफ़ में, जो हम क़सीदे पढ़ चले
तालियों के सिलसिले, तड़ तड़ तड़ा-तड़ तड़ चले
तालियों के सिलसिले, तड़ तड़ तड़ा-तड़ तड़ चले
उल्फ़तों की राह में, जो हम ज़रा सा बढ़ चले
बस, ज़माने भर की नज़रों में, सरासर गड़ चले
हम परिन्दे थे, ज़माना बेरहम सैयाद था
क़ैद में भी पर हमारे, फड़ फड़ा-फड़ फड़ चले
वो झलक थी आपकी, जिस पर मिटा सारा जहाँ
छिप के भी धड़कन हमारी, धड़ धड़ा-धड़ धड़ चले
वो अदब का क़त्ल था, जो सारा आलम लाल था
और ‘बवाल’-ए-बज़्म की तुहमत, वो हम पर मढ़ चले
---बवाल
47 टिप्पणियां:
वो झलक थी आपकी, जिस पर मिटा सारा जहाँ
छिप के भी धड़कन हमारी, धड़ धड़ा-धड़ धड़ चले
बेहतरीन गजल प्रस्तुति . बहुत बहुत बधाई
क्या ऊंचे दर्जे का दर्द है भाई! जय हो!
लाजवाब प्रस्तुति। बहुत-बहुत बधाई
हर शे'र आलातरीन , पुर कशिश हैं सभी... काफिया लाजवाब है कुछ शे'र में नयापन लिए हुए ... अपने बज्म में मेरा सलाम कुबूल फरमाएं बड़े भाई... मक्ता अलग से दाद मांग रहा है ...ढेरो बधाई इस नाचीज की तरफ ...
अर्श
बहुत सुंदर लगा आप का दर्द, अजी आप की यह रचना.
धन्यवाद
वाह भाई वाह, बवाल!!
एक से बढ़कर एक धांसू. मजा आ गया.
जिओ!!
वो अदब का क़त्ल था, जो सारा आलम लाल था
और ‘बवाल’-ए-बज़्म की तुहमत, वो हम पर मढ़ चले
बहुत खूब. बढ़िया बवाल करते हैं आप भी.
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल है। बधाई।
बवाल भाई, एक शैर ही सही। पर रोजाना हो जाए। बज़्म में दीपक जल जाता है। कई कई दिनों की गैर हाजरी खलती है।
बहुत अच्छी लगी ग़ज़ल आपकी बधाई!!
हम परिन्दे थे, ज़माना बेरहम सैयाद था
क़ैद में भी पर हमारे, फड़ फड़ा-फड़ फड़ चले
waah,hamari aur se bhi har sher pe waah waah,aafrin.shandar gazal,maza aagaya padhke.
आप से बात कर के कितनी बडी खुशी हुई, बयां नहीं कर सकता.
आशा है, सिलसिला जारी रहेगा.
chha gaye khann sab
वो अदब का क़त्ल था, जो सारा आलम लाल था
और ‘बवाल’-ए-बज़्म की तुहमत, वो हम पर मढ़ चले
http://voi-2.blogspot.com/
je rahe apan ke chitthe bhai jan
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वाह!क्या बात है।
Aur Aapki Ada Per Ham Bhi Tippani Kar Chale...Waah-Waah
वो अदब का क़त्ल था, जो सारा आलम लाल था
और ‘बवाल’-ए-बज़्म की तुहमत, वो हम पर मढ़ चले
गज़ल का हर शेर ही लाजवाब है मगर ये शेर बहुत पसंद आया शुभकामनायें। एक बात समझ नहीं आयी कि अपने बवाल क्यों लगा रखा है नाम के साथ्
अहा क्या बात है..मजा आ गया आज तो पढ़ कर
क्या तो दिलफ़रेब काफ़िया दिया आपने और फिर उस पर यह कहर ढाते अशआर..
वो झलक थी आपकी, जिस पर मिटा सारा जहाँ
छिप के भी धड़कन हमारी, धड़ धड़ा-धड़ धड़ चले
धड़कनो का इस तरह छिप के भी उजागर होना..दिल की बेइख़्तियारी का जादू.
आपकी तारीफ़ में, जो हम क़सीदे पढ़ चले
तालियों के सिलसिले, तड़ तड़ तड़ा-तड़ तड़ चले
खुद मे उम्दा कसीदाकारी का कमाल है यह शेर..जौक साह्ब पढ़ते तो...
एक एक शेर उम्दा है..दिल ले लिया आपने तो.
बहुत खूब काफिया...एक दम अलग सा...
पढने में एक रवानी है....
सारे शेर आपके जी हम फट फटाफट पढ़ चले
और रही टिपण्णी तो खड़ खड़ा खड़ कर चले
वाह वाह वाह और वाह ..
regards
bahut khoob ustaad......
मस्त बवाल !
वो अदब का क़त्ल था, जो सारा आलम लाल था
और ‘बवाल’-ए-बज़्म की तुहमत, वो हम पर मढ़ चले
wah! bahut khoob..........
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बवाल भाई नमस्कार ....... अपना आर्शीवाद बनाये रखियेगा......mujh par.....
‘बवाल’-ए-बज़्म की तुहमत, का जवाब नहीं !!
behteri ghazal....
...nayapan likye hue kafiya!!
husn-e-matla sabse behterin tha !!
हम परिन्दे थे, ज़माना बेरहम सैयाद था
क़ैद में भी पर हमारे, फड़ फड़ा-फड़ फड़ चले
वाह साहब जीतनी तारीफ की जाएँ "पर" यहाँ पर जो फड़ फड़ा -फड़ फड़ चले | वहाँ आनंद आ गया !!
देखिये बार बार आना पड़ता है..और पढ़-पढ़ कर जी नही भरता है...फिर तड़-तड़ा-तड़ का जादू..यह तो पूरा बवाल हो गया भाई.
कोई शिकायत नही जो नयी पोस्ट नही दी आपने.. अभी तो बवाल-ए-बज़्म मे यही तुहमत खूब है
ांअपकी गज़ल ने तो दर्द को भी खूबसूरत कर दिया। लाजवाब
नमस्कार बबाल जी बहुत ही बेहतरीन गजल है दर्द को जिवंत कर दिया आप ने किसी शायर के दो शेर याद आये है ..
भूख ने बच्चों को पुचकारा तो आँखें खुल गई /
गम निगल कर घूँट भर आंसू पिए फिरते रहे //
कत्लगाहों का बाशिंदा बनके सारी जिंदगी /
हाथ मे गर्दन लिए जब तक जिए फिरते रहे /
सादर
प्रवीण पथिक
9971969084
अहा क्या ग़ज़ब की बात कही बवाल भाई।
वो अदब का क़त्ल था, जो सारा आलम लाल था
और ‘बवाल’-ए-बज़्म की तुहमत, वो हम पर मढ़ चले
कोई जवाब नहीं इस मिसरे का। आपको लोग उस्ताद युँही नहीं कहते।
हम परिन्दे थे, ज़माना बेरहम सैयाद था
क़ैद में भी पर हमारे, फड़ फड़ा-फड़ फड़ चले
khoob kahi hai.......
ye sher kuch jyada hi kashish bhara laga ..
bahut dino bad dekha ........bahut sundar......
samay ka abhav rahata hai baval sahab......
आपकी तारीफ में हम भी तालियां बजा रहे हैं।
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दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं!
मान गए उस्ताद ,
गजब किया है . आपकी शान में .......मेरी अपनी अर्ज़ .
गर अदब के कत्ल की तुहमत कोई तुम पर चले
तो होगा वो बव्व्वाल की हर दिल धड़क धड धड चले .
और अपनी शान में किसी और का लिखा हुआ ..........
शायद मुझे निकाल कर पछता रहें हो आप
तेरी बज्म में मैं आ गया हूँ एक बार फिर .
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आप को और 'बवालन ' बहू को दीप पर्व की असंख्य शुभकानाएं.
दीप की स्वर्णिम आभा
आपके भाग्य की और कर्म
की द्विआभा.....
युग की सफ़लता की
त्रिवेणी
आपके जीवन से ही आरम्भ हो
मंगल कामना के साथ
क्या बात है.... इसे कहते हैं ला-बवाल रचना... जय हो..
Har sher savasher.vaah! Bawaal bhai vaah!!.
वो अदब का क़त्ल था, जो सारा आलम लाल था
और‘बवाल'-ए-बज़्म की तुहमत,वो हम पर मढ़ चले
इस धडा धड गजल पर धकाधक बधाईयाँ !
मुश्किल है आप बीच बीच में गजल कर्म कर जाते हैं पता ही नहीं चलता !
अरे वकील साब...ग़ज़ब की ग़ज़ल कह डाली है आपने....आहहा !!! अरे भई मजा अगया!
एकदम अनूठी, एकदम रेयर ग़ज़ल...ओहो!
सरजी, सलाम बजाते हैं इन अभूतपूर्व काफ़ियों पर, इस कमाल की बंदिश पर।
...और आपकी तमाम शुभकामनाओं का असर है कि खूब बेहतर हूं अब!
ग़ज़ल के लिये फिर से जी खोल कर दाद!
वाह - वाह... बहुत खूब ....क्या कहने आपके .........तालियों के सिलसिले, तड़ तड़ तड़ा-तड़ तड़ क्यों ना चले ??
और इधर बवाले दाद का मलहम देकर हम खिसक लिए ......!
कल 20/02/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
बहुत खूब गजल
वो अदब का क़त्ल था, जो सारा आलम लाल था
और‘बवाल'-ए-बज़्म की तुहमत,वो हम पर मढ़ चले.
लाजवाब प्रस्तुति. बहुत बहुत बधाई.
हम परिन्दे थे, ज़माना बेरहम सैयाद था
क़ैद में भी पर हमारे, फड़ फड़ा-फड़ फड़ चले
वाह! शानदार ग़ज़ल...
क्या बात है बहुत ही जोरदार ।
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