मंगलवार, 10 मई 2011

मातृ दिवस पर भी देर से.......


ढूँढता रब को फिरा हूँ, इस जहाँ से उस जहाँ
भूल बैठा था कि रब का, रुप ही होती है माँ!

आदतन इस बात को भी, देर से जाना है मैने!

-समीर लाल ’समीर’

18 टिप्‍पणियां:

chinmay billore ने कहा…

nice thoughts uncle
regards

राकेश खंडेलवाल ने कहा…

देर तो होन्ती नहीं इक पल न यह भ्रम पालिये
ज़िन्दगी का हर कदम माँ का सहारा है लिये

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

बहुत सुंदर पंक्तियाँ हैं....

किलर झपाटा ने कहा…

मातॄ-दिवस तो प्रतिदिन रहता है समीर अंकल। इसलिये देर कैसी ? आप तो वैसे भी माँ के लाड़ले रहे हो। बहुत ही सुन्दर शेर लिखा आपने। आप यह ब्लाग एक शेर में ही सारी दुनियादारी कह देने के लिये ही प्रसिद्ध है लगता है।

आपके ब्लॉग का यह शेर मुझे बहुत पसंद है:-
"उल्फ़तों की राह में, जो हम ज़रा सा बढ़ चले
बस, ज़माने भर की नज़रों में, सरासर गड़ चले"

आज भारतमम्मा की बहुत याद आ गई। वो भारत में और मैं हाँग-काँग में।

निर्मला कपिला ने कहा…

अच्छी बात अक्सर इन्सान को देर से ही समझ आती है। सुन्दर पँक्तियाँ।

RAJPUROHITMANURAJ ने कहा…

अच्छी बात अक्सर इन्सान को देर से ही समझ आती है। सुन्दर पँक्तियाँ।

Dr (Miss) Sharad Singh ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
Dr (Miss) Sharad Singh ने कहा…

मां को समर्पित आपकी भावभीनी पंक्तियों ने मन को छू लिया...

Patali-The-Village ने कहा…

बहुत सुंदर पंक्तियाँ हैं|

समयचक्र ने कहा…

वाह मां को समर्पित जोरदार प्रस्तुति...

SHIKHA KHARE ने कहा…

Hello Sir
aapne shabad ek-dum chun chun kar rkhe hain side dil me utrne wale shabad hain.........MAA TJHE SALAM

Dinesh pareek ने कहा…

बहुत ही सुन्दर लिखा है अपने इस मैं कमी निकलना मेरे बस की बात नहीं है क्यों की मैं तो खुद १ नया ब्लोगर हु
बहुत दिनों से मैं ब्लॉग पे आया हु और फिर इसका मुझे खामियाजा भी भुगतना पड़ा क्यों की जब मैं खुद किसी के ब्लॉग पे नहीं गया तो दुसरे बंधू क्यों आयें गे इस के लिए मैं आप सब भाइयो और बहनों से माफ़ी मागता हु मेरे नहीं आने की भी १ वजह ये रही थी की ३१ मार्च के कुछ काम में में व्यस्त होने की वजह से नहीं आ पाया
पर मैने अपने ब्लॉग पे बहुत सायरी पोस्ट पे पहले ही कर दी थी लेकिन आप भाइयो का सहयोग नहीं मिल पाने की वजह से मैं थोरा दुखी जरुर हुआ हु
धन्यवाद्
दिनेश पारीक
http://kuchtumkahokuchmekahu.blogspot.com/
http://vangaydinesh.blogspot.com/

BrijmohanShrivastava ने कहा…

आपने देर से लिख मै भी देर से आया मगर दुरुस्त आया ।समीरलाल जी की रचना से अवगत कराया धन्यवाद

महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…

बहुत सुंदर, क्या बात

Maheshwari kaneri ने कहा…

माँ से बढ़कर कुछ नहीं...बहुत सुंदर पंक्तियाँ...

Unknown ने कहा…

ek baar kisi ne mere se puchchha kya apane bhagawan dekha hai ?maine kaha ,haa roz dekhata hun,usane kaha-mujhe bhi dikhayo .mai use ek jhopadi m legaya jahan ek budhi ourat leti thi ilaz kar raha tha so roz pata karane jata tha .boli m thik hun,tum to mere liye bhagawan ho,maine kaha -mere liye tum bhagawan ho thodi baat karake m bahar aagaya dost bahar khada tha mujhe dekhate hi gale lag gaya .bola-tun roz ek bhagawan dekhata hai maine aaj do-do bhagawan dekh liye thanx u sir for great posting

NumaN Mishra ने कहा…

Namaskar Bhaiyaa !!
Aapka blog kabile tarif hai !!

बिहारी का चौपाल !! blog hamara hai aapki ek Nazar chahunga !!

www.ekbihari.co.cc

Dhanyabad !!

ATAMPRAKASHKUMAR ने कहा…

ढूढता रबको फिरा इस जहाँ से उस जहाँ तक ,
भूल गया था कि रब का रूप होती हैं माएँ |
क्या बात है वास्तव में जिस ने माँ-बाप कि
सेवा कर ली उन्हें भगवान् मिल गये समझिये |
साधुवाद |आत्म प्रकाश | blog ---http//kumar2291937.blogspot.com