आज गीता के नव-संदेशों की आशा करना मात्र मूर्खता ही साबित होगी. सब अपनी जुगत बैठाल रहे हैं. देश और देशवासियों की रक्षा के पहले कुर्सी की रक्षा सर्वोपरि बनी हुई है. सियासती चालें ऐसी कि सिद्ध प्रमेय को सिद्ध करने के लिए युद्ध रुका हुआ है, जाने क्या सिद्ध करने करने के लिए.
माना कि हमला ही एक मात्र उपाय नहीं है, मगर यह उपाय ही नहीं है, ऐसा भी तो नहीं. और जब कोई अन्य उपाय कारगर नहीं हो पा रहा है तो इसी के अमल से क्यूँ गुरेज़. कहीं बात कुछ और तो नहीं.
गीता का नव संदेश आये या न आये, फिर भी कुछ संदेश देने में क़लम क्यूँ रुके. क़लम की अपनी ताक़त है. गीतों और ग़ज़ल की अपनी ज़ुबान है. समझ अपनी अपनी-कहन अपना अपना.
लीजिए पेश है लाल और बवाल की एक और जुगल बंदी. शायद आपको यह संदेश पसंद आये:
चलो भी यार चलो, तो कमाल हो जाए
ज़माना याद रखे, वो धमाल हो जाए
हसीन शाम का, चेहरा उतर रहा है तो...
...तो पेश महफ़िल में, दिल का हाल हो जाए
न ऐसी बात करो, यार पीछे हटने की !
ख़ज़ाना खोदना हो, और कुदाल खो जाए?
जवाब खोजता, रह जाए ये तमाम आलम
अनासिरों से कुछ, ऐसा सवाल हो जाए
मैं रिंद वो नहीं जो, मय से होश खो जाए
मैं रिंद वो के जो, बिन मय निढाल हो जाए
वो जाने कौन सा ग़म, दिल से लगाये बैठा है
सुना दो ऐसी ग़ज़ल, वो निहाल हो जाए.
ये "लाल" रम्ज़-ओ-इस्लाह है, इसी ख़ातिर
ज़ुबानदाँ ज़माँ, हमख़याल हो जाए
के हामी भर दो चलो, देर ना करो देखो
ना ख़ुशख़िसाल फिर, बरहम "बवाल" हो जाए !!
---समीर लाल और बवाल (जुगलबंद)
शब्दार्थ :-
रिंद = पीनेवाला
मय = शराब
तमाम आलम = ब्रह्माण्ड
रम्ज़ = इशारा, संकेत
इस्लाह = मार्गदर्शन
अनासिर = पंचतत्व, पंचमहाभूत
ज़ुबानदाँ = भाषा का ज्ञाता
ज़माँ = संसार, ज़माना
हमख़याल = मित्र, एक जैसे विचार वाला
ख़ुशख़िसाल = मधुर स्वभाव
बरहम = अप्रसन्न
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20 टिप्पणियां:
mast jugalbandi rahi....
bahut acchi lagi...
वो जाने कौन सा ग़म, दिल से लगाये बैठा है
सुना दो ऐसी ग़ज़ल, वो निहाल हो जाए.
बहुत खूब जुगलबंदी है जी ..बेहतरीन
आईये साथ बैठें. कुछ चाय-पान हो जाये.
हम भी आपसे जुङ कर कुछ निहाल हो जायें
गजल कहने में पाई वो महारत आपने.
सुनकर साधक का मनवा भी, लालम-लाल हो जाये
जवाब खोजता, रह जाए ये तमाम आलम
अनासिरों से कुछ, ऐसा सवाल हो जाए
मैं रिंद वो नहीं जो, मय से होश खो जाए
मैं रिंद वो के जो, बिन मय निढाल हो जाए
लाजवाब. बहुत शुभकामनाएं.
रामराम.
बड़े भाई साहब नमस्कार,
बहोत खूब लिखा है आप दोनों ने मिलकर ,क्या कहूँ कोई शब्द नही है मेरे पास...
बस यही के कमाल ,धमाल हो गया तब
जब की बवाल के साथ लाल हो गया ....
अर्श
भाई वाह...ये तो हरी प्रसाद चौरसिया और पंडित शिव कुमार शर्मा की जुगल बंदी से भी आगे की बात हो गयी...दोनों ने कमाल का धमाल किया है...बधाई.
नीरज
वो जाने कौन सा ग़म, दिल से लगाये बैठा है
सुना दो ऐसी ग़ज़ल, वो निहाल हो जाए.
" ना जाने कितने दिलो की दास्ताँ है इस शेर मे...एक बेशकीमती पेशकश ...."
regards
वाह साहब ख़ूब पढ़ा, बार-बार पढ़ा, आपने इतने दिन बाद जो लिखा
---मेरा पृष्ठ
चाँद, बादल और शाम
ग़ज़ल बेहतरीन है।
कृष्ण नहीं होते अवतरित वे बनते हैं यहीं
बनेगा जरूर
कोई न कोई
हम में से ही
कृष्ण भी, घड़ा पाप का
शायद अभी भरा नहीं है
बहुत जोरदार है भाई पंडित जी . आज दिल से देखा लाल और बबाल जी के धमाल भरी उम्दा पोस्ट. . आनंद आ गया . मचाये रहिये दिल से.
महेंद्र मिश्रा
जबलपुर.
वाह क्या जुगलबन्दी है .
waah waah waah waah waahh wahhh..
aur kya kahun janab. bahut hi umda
अपन अच्छी ग़ज़लें कहना तो नहीं जानते मियाँ बवाल............हाँ मगर पढ़ना जानते हैं.......और दाद देना भी.......बशर्तें हमें खुजली हो जाए.....और खुजली होने पर हम सामने वाले को खूझा (खीझा नहीं कह रहा भाई.....!!)ही देते हैं.........आप तो वाकई बवाल हो..........अब पहले की तरह नेट पर नहीं आता.........नहीं तो बार-बार खुझाता.........भाई वाकई बवाल हो आप.........!!सच यार.....(छोटे हो बड़े.......!!)
पहली बार आपका बवाल देखा. मालूम नहीं था ऐसी जुगलबंदी करते है आप . पंक्तियों ने प्रभावित किया-
"वो जाने कौन सा ग़म, दिल से लगाये बैठा है
सुना दो ऐसी ग़ज़ल, वो निहाल हो जाए."
धन्यवाद.
तारीफ तो कर दें आप लोगों की लेकिन
डर है हया से कहीं रुख ना लाल हो जाए
'चलो भी यार चलो, तो कमाल हो जाए
ज़माना याद रखे, वो धमाल हो जाए'
- यही पंक्तियाँ कृष्ण के अवतार का संकेत देती हैं.
Bade dinon baad hotonpe hansee aa gayee....besaakhtaa...!
Bawalji, aap aur Laal, milke kamaal karte hain !
वाह जी वाह तुसी ते कमाल कीता
दोनों ने मिल के चंगा धमाल कीता
बहुत सुंदर!
Bahoot Khoob .....!!!
आज के युग को कर्मयुग बनाने में आपके विचार सहायक सिद्ध होंगे... ईश्वर से कामना है कि आपकी आवाज़ दूर तक जाए|
कर्म मेरा, भोग मेरा,
धर्म मेरा, रोग मेरा,
क्यों केशव की राह ताके नयन
जब मैं ही ब्रह्मांड , ब्रह्म स्वयं |
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