बड़े भाई को नमस्कार, देर आये दुरुस्त आये ... क्या तेवर क्या नजाकत ,क्या होश मंद आये ...जो शे'र आप पढ़े सबको पसंद आये ....
बहोत बहोत बधाई इस खुबसूरत शे'र के लिए.... और हाँ आपने जो गुरु जी के ब्लॉग पे मेरी तारीफ़ करी है उसके लिए आभार हूँ मगर शर्म से पानी पानी के मैं ऐसा नहीं हूँ ....
31 टिप्पणियां:
सुभान अल्लाह, जनाब बहुत गहरी बात कह दी.
धन्यवाद
Bahut khoob sir ji
और कौन बतायेगा भई!!
बेहतरीन शुरुवात है!!
अगर सच पूछें तो मैं इसका मतलब समझ नहीं पा रहा हूँ , आशा है थोड़ा क्लियर करेंगे !
कैसे था कहाँ था इतने दिन कुछ पता न चला।
फौत समझा था जिसे शेर कहता हुआ मिला ।।
सुभान अल्लाह..बहुत लाजवाब.
पर हुजुर कहां थे इतने दिनों तक? उसका भी हिसाब पेश किया जाये.:)
रामराम.
bahut acchhey...
accha kiya btaa diya ha ha ha ha ha ...
regards
बहुत खूब
आज फौत का मानी पता चला, बहुत शे'र
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विज्ञान । HASH OUT SCIENCE
बहुत बढिया..
गहरे मे छुपी भावनाओं की बेजोड प्रस्तुति अन्दर छुपी भावनायें हमेशा ही ऐसी नज़्में घडती रेहती हैं
वाह वाह क्या बात कही हुज़ूरे-वाला । हम विवेक सिंह जी से यहाँ पूरी तरह इत्तेफ़ाक रखते हैं हा हा ।
के आपके इस ज़बरदस्त शेर का मतलब ज़रूर समझाया जावे .....
रूदादे-फ़ौत क्या अब इस तरह बयाँ होगी ?
के जो अयाँ करे, बवाल की ज़ुबाँ होगी !!
बहुत ही जबरजस्त शेर है बबाल जी
तो श्रीमान जी का गृह नगर आगमन हो गया है . ..
bawaal bhai,
apka sher sava sher se kam nahin.bahut hi sundar
der aayd-durust aayad.
bahut sundar..
भाई जी कमाल है बवाल
कब ला रहें हैं नया माल
वाहवा.. वाहवा...
आप आये बहार आयी
फ़ौत हों आपके दुश्मन मेरे भाई !
लाबवाब शेर। जितनी तारीफ की जाए कम है।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
बस एक आह...!
ये इतने दिनों के लिये कहाँ गुमशुदा थे वकील साब?
बड़े भाई को नमस्कार,
देर आये दुरुस्त आये ... क्या तेवर क्या नजाकत ,क्या होश मंद आये ...जो शे'र आप पढ़े सबको पसंद आये ....
बहोत बहोत बधाई इस खुबसूरत शे'र के लिए....
और हाँ आपने जो गुरु जी के ब्लॉग पे मेरी तारीफ़ करी है उसके लिए आभार हूँ मगर शर्म से पानी पानी के मैं ऐसा नहीं हूँ ....
अर्श
vakil ho isiliye maqtool hokar bhee katil ko katl karte ho aur haath mai shamsheer bhee nahi.
bawal saheb
bahut sundar sher...just amazing ...saara fasana aa gaya ji ..
Aabhar
Vijay
Pls read my new poem : man ki khidki
http://poemsofvijay.blogspot.com/2009/07/window-of-my-heart.html
excellent
sirji laajwab!!
bawaal bhai,
ek sher se man nahin bharta.aur kuchh ho jaye.
bahut sundar....
thanks for visiting my blog
aagaaz ko anjam tak aane to dijiye
bahut khub.
haya
आपकी अदा कमाल....
फ़ौत होकर भी बवाल...
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