शुक्रवार, 29 अगस्त 2008

और और नूर (उड़नतश्तरी की फ़रमाइश पर)

ख़याल मेरा तुम्हारे ख़्वाबों में जगह पाता तो ग़म न होता,
या बन के क़तरा तुम्हारी पलकों पे जगमगाता तो ग़म न होता ।

कोई मोहब्बत की शम्मा ले कर, इधर से गुज़रा था, सोचता हूँ,
ये ज़िन्दगी रोशनी में उसकी, गुज़ार पाता तो ग़म न होता ।

----पन्नालाल 'नूर'

2 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

वाह!! बहुत उम्दा!! आभार नूर साहब को ऑन डिमांड पेश करने का.

महेन्द्र मिश्र ने कहा…

bahut badhiya babaal sahab noor ji ki rachana ke liye. dhanyawad.