बहुत हिम्मत करके डॉक्टर साहेब से छुपते छुपाते ये पोस्ट लिखवा रहा हूँ मित्रों । पिछली आठ अक्टूबर को एक बहुत ही बेहतरीन मार्मिक पोस्ट "ज़ख्मे- दिल"
पढ़ने के बाद टीप करने जा रहा था के दिल में दर्द के साथ अचानक चक्कर आ गया । बाद को वहाँ पाया गया जहाँ
कोई जाना पसंद नहीं करता । एक मशीन पर कुछ ग्राफ निकालने के बाद डॉक्टर साहेब ने चिन्तायुक्त शक्ल बनाते हुए कई टेस्ट करवा डाले । एक टी ऍम टी बाकी रह गया है। मुझे घर भी नहीं जाने दे रहे यार । मेरे एक मित्र हैं बड़े अज़ीज़, उन्हीं के लेप टॉप के द्वारा, उन्हीं से टाइप करवा कर आप तक पहुँचने की कोशिश कर रहा हूँ । मुझे आप सब मुआफ़ कर देना जी, तबियत ही साथ नही दे रही । क्या करुँ ? लाल साहेब, सीमाजी, मीतजी, मिश्राजी, नीरजजी, दिनेशजी, राकेशजी, राज सिंघजी, और सभी प्रिय ब्लोग्गेर्स को मैं मिस कर रहा हूँ। पता नहीं अब तक ब्लॉगजगत में क्या कुछ हो चुका होगा ? मुझे वापस बुला लो यार आप सब लोग। अब ज्यादा बोलने की हिम्मत नहीं पड़ रही है, बस चलते चलते एक शेर कहने का दिल कर रहा है सो पेश है जी ---
या मैंने जल्द कर दी, या तूने देर जाना !तेरा शमा जलाना, औ मेरा जहाँ से जाना !!-----बवाल पता नहीं अब कब सबसे मुलाक़ात होगी ? होगी भी या नहीं ऊपरवाले के हाथ सब है ।