न ग़ज़ल है न गीत है प्यारे
आपसी बातचीत है प्यारे
आपसी बातचीत है प्यारे
उस्ताद कहाँ और क्यूँ चाहिए ?
ये बतलाने के लिए दो शेर पेश हैं ---
साक़ी-ए-गुलबदन का, अन्दाज़ क़ाफ़िराना
उल्फ़त का भी जताना, दामन का भी बचाना
उल्फ़त का भी जताना, दामन का भी बचाना
और तब -
मेरी ग़ज़ल में वाक़ई, इस बार ऐबे-ज़म* है
लगता है अब पड़ेगा, लुक़्मान** को दिखाना
लगता है अब पड़ेगा, लुक़्मान** को दिखाना
---बवाल
शब्दार्थ :-
* ऐबे ज़म = अश्लीलता का दोष
** लुक़्मान = उस्ताद, इस्लाह देने वाला और एक तरह से हक़ीम लुक़्मान भी जिनके पास हर मर्ज़ की दवा हुआ करती थी ।
** लुक़्मान = उस्ताद, इस्लाह देने वाला और एक तरह से हक़ीम लुक़्मान भी जिनके पास हर मर्ज़ की दवा हुआ करती थी ।
पुण्य तिथि - २७ जुलाई २००२
28 टिप्पणियां:
उस्ताद को हमारा बहुत बहुत सलाम!
उस्ताद के प्रति आदर और विश्वास का यह भाव ही शागिर्द को ऊपर उठाता है।
उस्तादजी को हमारा प्रणाम और आपको भी नमन बवाल भाई.
रामराम.
हमारा बहुत बहुत सलाम...प्रणाम और नमन
दीक्षितपुरा जबलपुर में बचपन के दिनों में मैंने लुकमान जी को देखा और सुना था उन दिनों शहर में लुकमान जी की कव्वालियों की धूम मची होती थी. काश मै अब भी उन्हें जीवंत सुन पाता . आज के दिन आपने अपने गुरुदेव का स्मरण कर उन्हें सच्चे मन से याद कर उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित की है और गुरु शिष्य की परम्परा को कायम बनाये रखा है . ..आप भी सराहना के पात्र है . गुरुदेव आपकी सफलता का मार्ग सदैब प्रशस्त करेंगे . संस्कारधानी के अनूठे कब्बल दादा लुकमान को पुनः हार्दिक श्रद्धासुमन अर्पित करता हूँ . .
मेरी ग़ज़ल में वाक़ई, इस बार ऐबे-ज़म है
लगता है अब पड़ेगा, लुक़्मान को दिखाना
भाई वाह...क्या खूब कहा है...हकीम लुकमान कहीं मिले तो हमें भी बताना...हमें भी दिखाना है उन्हें...
नीरज
बहुत खूब ..
चचा लुकमान को नमन. सुन्दर शेर कहे हैं. गुरु की स्थान तो ईश्वर के भी उपर है.
क्या बात कही है वाकई दोनों उम्दा शेर हैं.......
गुरू जी को मेरा शतशत प्रणाम।
गज़ल में शब्दानुशासन बहुत है - इससे इस विधा से भय लगता है!
वाह साहिब, बहुत ख़ूब!
बहुत बढ़िया साहब!
-----नयी प्रविष्टि
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बड़े भाई नमस्कार,
गुरु तो श्रेष्ठ है ,सर्वोपरि है इस जहाँ में ..आपने अपने गुरु इस तरह से याद किया ,आज-कल का मौसम एसा नही है .... आपके गुरु जी तो मेरे भी हुए ना भाई होने के नाते...इसलिए मेरे तरफ़ से भी इन्हे साक्षात् दंडवत प्रणाम....
आपका
अर्श
जय हो गुरु जी की !
are bhyee aap khushkismat ho . hame to jo lukman mile.........davayian galat huyeen !KHUSH RAHO BAWAL MACHAYE RAHO HAALCHAL LETE DETE RAHO .
क़व्वाले-आज़म तहज़ीबिस्तान
चचा लुक़्मान
जी को मेरा आदाब सलाम
मेरी तरफ़ से उन्हे प्रणाम
बबाल साहब गुरु का स्थान भगवान से भी ऊंचा होता है, क्योकि गुरु ही तो हमे उस भगाव्न से मिलवाता है, वरना हमे है क्या?
धन्यवाद
आपको और आपके उस्तादजी को प्रणाम!
आप के गुरु जी को सादर नमन.
aapko pranaam !
आपको लोहडी और मकर संक्रान्ति की शुभकामनाएँ....
साक़ी-ए-गुलबदन का, अन्दाज़ क़ाफ़िराना
उल्फ़त का भी जताना, दामन का भी बचाना
और तब -
मेरी ग़ज़ल में वाक़ई, इस बार ऐबे-ज़म* है
लगता है अब पड़ेगा, लुक़्मान** को दिखाना
"आपको और आपके उस्तादजी को सादर नमन"
Regards
bahut umda
क्या बात है उस्ताद की आपके बवाल साहब ! बहुत ख़ूब
आप सबका बहुत बहुत आभार !
गुरु ब्रह्मा गुरु विष्णु
बवाल जी
अभिवंदन
चचा लुकमान संस्कारधानी ही नहीं, प्रदेश और देश में भी अपनी शैली के लिए पहचाने जाते थे.उनका सदा लिबास, सरल व्यवहार , उनकी खनकती आवाज़ .. चाहे वो कव्वाली की हो या हिन्दी गीतों की.हमने उन्हें मिलन संस्था के कार्यक्रमों में भी सुना. जबलपुर का तात्कालिक बच्चा- बच्चा उनके नाम से परिचित था.आज भी उन्हें जानने वाले सिद्दत से याद करते हैं और करते रहेंगे.
हमारी उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि
- विजय
आपकी बातों से खिंचा चला आया इस ब्लौग पर....और बड़ी देर से ढ़ेरों पन्ने पढ़ गया हूं.सोच रहा हूं अभी तक तो इस खजाने से क्यों-कर वंचित रहा...बस अब नहीं.
शुक्रगुजार हूं आपका.इस गुरूनिष्ठा का कायल
वाह... बवाल जी वाह....
गुरू महाराज को भी नमन....
साक़ी-ए-गुलबदन का, अन्दाज़ क़ाफ़िराना
उल्फ़त का भी जताना, दामन का भी बचाना
wakai guru ji kamal hain.
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