बुधवार, 14 जनवरी 2009

लुक़्मान को दिखाना ..... (लाल-एन-बवाल)

क़व्वाले-आज़म तहज़ीबिस्तान
चचा लुक़्मान
हमारे उस्ताद की जयंती
१४ जनवरी १९२५ (मकर संक्राति) पर
न ग़ज़ल है न गीत है प्यारे
आपसी बातचीत है प्यारे
उस्ताद कहाँ और क्यूँ चाहिए ?
ये बतलाने के लिए दो शेर पेश हैं ---
साक़ी-ए-गुलबदन का, अन्दाज़ क़ाफ़िराना
उल्फ़त का भी जताना, दामन का भी बचाना
और तब -
मेरी ग़ज़ल में वाक़ई, इस बार ऐबे-ज़म* है
लगता है अब पड़ेगा, लुक़्मान** को दिखाना

---बवाल

शब्दार्थ :-
* ऐबे ज़म = अश्लीलता का दोष
** लुक़्मान = उस्ताद, इस्लाह देने वाला और एक तरह से हक़ीम लुक़्मान भी जिनके पास हर मर्ज़ की दवा हुआ करती थी ।
पुण्य तिथि - २७ जुलाई २००२

28 टिप्‍पणियां:

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

उस्ताद को हमारा बहुत बहुत सलाम!
उस्ताद के प्रति आदर और विश्वास का यह भाव ही शागिर्द को ऊपर उठाता है।

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

उस्तादजी को हमारा प्रणाम और आपको भी नमन बवाल भाई.

रामराम.

समय चक्र ने कहा…

हमारा बहुत बहुत सलाम...प्रणाम और नमन

समय चक्र ने कहा…

दीक्षितपुरा जबलपुर में बचपन के दिनों में मैंने लुकमान जी को देखा और सुना था उन दिनों शहर में लुकमान जी की कव्वालियों की धूम मची होती थी. काश मै अब भी उन्हें जीवंत सुन पाता . आज के दिन आपने अपने गुरुदेव का स्मरण कर उन्हें सच्चे मन से याद कर उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित की है और गुरु शिष्य की परम्परा को कायम बनाये रखा है . ..आप भी सराहना के पात्र है . गुरुदेव आपकी सफलता का मार्ग सदैब प्रशस्त करेंगे . संस्कारधानी के अनूठे कब्बल दादा लुकमान को पुनः हार्दिक श्रद्धासुमन अर्पित करता हूँ . .

नीरज गोस्वामी ने कहा…

मेरी ग़ज़ल में वाक़ई, इस बार ऐबे-ज़म है
लगता है अब पड़ेगा, लुक़्मान को दिखाना
भाई वाह...क्या खूब कहा है...हकीम लुकमान कहीं मिले तो हमें भी बताना...हमें भी दिखाना है उन्हें...
नीरज

रंजू भाटिया ने कहा…

बहुत खूब ..

Udan Tashtari ने कहा…

चचा लुकमान को नमन. सुन्दर शेर कहे हैं. गुरु की स्थान तो ईश्वर के भी उपर है.

!!अक्षय-मन!! ने कहा…

क्या बात कही है वाकई दोनों उम्दा शेर हैं.......

PREETI BARTHWAL ने कहा…

गुरू जी को मेरा शतशत प्रणाम।

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

गज़ल में शब्दानुशासन बहुत है - इससे इस विधा से भय लगता है!

Vinay ने कहा…

वाह साहिब, बहुत ख़ूब!

बहुत बढ़िया साहब!


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"अर्श" ने कहा…

बड़े भाई नमस्कार,
गुरु तो श्रेष्ठ है ,सर्वोपरि है इस जहाँ में ..आपने अपने गुरु इस तरह से याद किया ,आज-कल का मौसम एसा नही है .... आपके गुरु जी तो मेरे भी हुए ना भाई होने के नाते...इसलिए मेरे तरफ़ से भी इन्हे साक्षात् दंडवत प्रणाम....

आपका
अर्श

विवेक सिंह ने कहा…

जय हो गुरु जी की !

RAJ SINH ने कहा…

are bhyee aap khushkismat ho . hame to jo lukman mile.........davayian galat huyeen !KHUSH RAHO BAWAL MACHAYE RAHO HAALCHAL LETE DETE RAHO .

राज भाटिय़ा ने कहा…

क़व्वाले-आज़म तहज़ीबिस्तान
चचा लुक़्मान
जी को मेरा आदाब सलाम
मेरी तरफ़ से उन्हे प्रणाम
बबाल साहब गुरु का स्थान भगवान से भी ऊंचा होता है, क्योकि गुरु ही तो हमे उस भगाव्न से मिलवाता है, वरना हमे है क्या?
धन्यवाद

नितिन | Nitin Vyas ने कहा…

आपको और आपके उस्तादजी को प्रणाम!

Alpana Verma ने कहा…

आप के गुरु जी को सादर नमन.

Satish Saxena ने कहा…

aapko pranaam !

Dev ने कहा…

आपको लोहडी और मकर संक्रान्ति की शुभकामनाएँ....

seema gupta ने कहा…

साक़ी-ए-गुलबदन का, अन्दाज़ क़ाफ़िराना
उल्फ़त का भी जताना, दामन का भी बचाना

और तब -

मेरी ग़ज़ल में वाक़ई, इस बार ऐबे-ज़म* है
लगता है अब पड़ेगा, लुक़्मान** को दिखाना
"आपको और आपके उस्तादजी को सादर नमन"

Regards

makrand ने कहा…

bahut umda

शशिकान्त ओझा ने कहा…

क्या बात है उस्ताद की आपके बवाल साहब ! बहुत ख़ूब

बवाल ने कहा…

आप सबका बहुत बहुत आभार !

BrijmohanShrivastava ने कहा…

गुरु ब्रह्मा गुरु विष्णु

विजय तिवारी " किसलय " ने कहा…

बवाल जी
अभिवंदन

चचा लुकमान संस्कारधानी ही नहीं, प्रदेश और देश में भी अपनी शैली के लिए पहचाने जाते थे.उनका सदा लिबास, सरल व्यवहार , उनकी खनकती आवाज़ .. चाहे वो कव्वाली की हो या हिन्दी गीतों की.हमने उन्हें मिलन संस्था के कार्यक्रमों में भी सुना. जबलपुर का तात्कालिक बच्चा- बच्चा उनके नाम से परिचित था.आज भी उन्हें जानने वाले सिद्दत से याद करते हैं और करते रहेंगे.
हमारी उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि
- विजय

गौतम राजऋषि ने कहा…

आपकी बातों से खिंचा चला आया इस ब्लौग पर....और बड़ी देर से ढ़ेरों पन्ने पढ़ गया हूं.सोच रहा हूं अभी तक तो इस खजाने से क्यों-कर वंचित रहा...बस अब नहीं.

शुक्रगुजार हूं आपका.इस गुरूनिष्ठा का कायल

योगेन्द्र मौदगिल ने कहा…

वाह... बवाल जी वाह....
गुरू महाराज को भी नमन....

shelley ने कहा…

साक़ी-ए-गुलबदन का, अन्दाज़ क़ाफ़िराना
उल्फ़त का भी जताना, दामन का भी बचाना
wakai guru ji kamal hain.