गुरुवार, 5 फ़रवरी 2009

जोल्ट फ़्रा॓म जबलपुर ...........!! नर्मदे हर !!

और तो कुछ न हुआ, पी के बहक जाने से
बात मयख़ाने की, बाहर गई मयख़ाने से

शाइर ने यह शेर कहते वक्त कभी भी यह न सोचा होगा के ये इतना अधिक प्रासंगिक बन जाएगा के हर जगह फ़िट बैठेगा। हा हा !
पिछले तीन चार दिनों की ज़ोरदार आल्हा-ऊदली बड़ी ही मज़ेदार रही। क्या कहना ! अहा!
कोई जवाब नहीं है भाई, उन बेहतरीन पोस्टों और चर्चाओं का। बिल्कुल बजा और दुरुस्त। आनन्द भी आया बहुत। न जाने क्या क्या कयास लगाए गए ? हा हा। बच्चे तक ताली वाली पीटने लग गए, पर बात तो बड़ी थी और हाँ बड़ों की भी। लोग कहते पाए गए, लड़े चलो लड़ैयों। हा हा ।
पर लगता है ठीक तरह से WWF की कुश्तियाँ वगैरह नहीं देखते। भई देखना चाहिए वो भी। देखते होते तो यूँ रघुनाथ न होते। हा हा। नूरा कुस्ती का नाम नहीं सुने हैं का ?
अरे भाई ई सब नौटंकी हम सब जबलपुरिया कौनऊ कौनऊ की मौज लए की खातर किए रहे अऊ आप लोग समझत रहे कि आप हम लोगन की मौज लै रहे हो। ऎ बबुआ आल्हा-चिट्ठा तक मार दिए। हाहा। कौनऊ बात नाहीं भाई । जि का दुई बोल मा ही लच गई दुनिया सगरी, ऊ लचकदार की बातन माँ लचक हुईबै करी। द्याखा ई का कहत हैं जबलपुरी झटका (जोल्ट) हा हा ।
मगर हाँ ई तारीफ़ तो आपहू की करै का परी के, लिटरेचरवा बहुत जोरदार जड़ै हौ आप लोगन।
पर ऊ का पीछे ई काहे जड़ बैठे की हम रिस्तेदारी मा, राज ठाकरे के ताऊ मंजे बाऊ मंजे बाल ठाकरे होय गए। ई कौन साजिस है भाई ? औ जब बोल ही दिए थे पार्टनर तो देख लेते। ई का के इत्ता आल्हा सुनाए के बाद भी पोस्ट उठाय लिए औ बाद में रण भी छोड़ कर भाग लिए । चला लौट आब । बहुत बहाय लिहिन टंसुआ । देखो इत्ते प्यार से बुला रहे हैं मान जाब भाई, नहीं तौ फिर हमका मराठी मा समझाय का परी--
"आणि हे काय रे भाऊ, लाज येत नाय का तुमाला ? आपण कोण ? अरे आपण सगड़्या एकच आहे रे पण हे काय सांगीतला तुमि ? राज ठाकरे याँच्या ताऊ मंजे माहिती तुमाला ? शम्भर ट्क्के गाली दिली, जबलपुरी माणूस ला। चल सा॓री मण्ड याच्या बद्दल। ऒके। दिली दिली रे, तू पण आप्ल्या माणूस आणि भाऊ आहेत। पण आज पासून गप्प बसायला पाहिजे। अरे आ॓लरेडी बवाल झालेलाय रे बाबा। हा हा हा।" (बुरा न मानो मौजवा है)
और ब्ला॓गिताँ के प्रिय मित्रों ! माँ नर्मदे के पुत्र और आचार्य विनोबा की संस्कारधानी के लोग क्या ऎसे हो सकते हैं, जैसे समझ लिए गए। ये प्रयोजन तो महज़ परसाई जी के व्यंग की धार और "बात तो चुभेगी" के बीच का अन्तर दर्शाने के लिए था और कुछ भी नहीं। इसे किसी किस्म की साज़िश न समझें और ब्ला॓गिंग का भरपूर आनंद लें। हम सब एक हैं और सब के साथ हैं।
और जबलपुर तो सचमुच डबलपुर है ही, क्योंकि यहाँ का हर बंदा एक नहीं दो के बराबर है। शरीर ही से नहीं दिल से भी हा हा। चलिए जाने दीजिए।

१) साँप का ज़हर और उसका उसके ही ज़हर से उतरना, २) तहज़ीब याने संस्कार ३) आग के क़तरे ४) गाँधी के तीन बन्दर (बुरा मत देखो, बुरा मत सुनो और बुरा मत कहो) से आदमी की तुलना और ५) संग याने साथ और संग याने पत्थर (संगमरमर) याने "जबल" के टूट्ने का दर्द और अपने शहर के लिए जज़्बा । ये सब देखिए आगे नग़्मा-ए-बवाल में।
--- अन्जुमने-ब्ला॓गराने-जबलपूर
(संस्कारधानी के समस्त ब्ला॓गर बंधुओं की ओर से सबको नर्मदे हर)

शहर बनाने के लिए

साज़िश न कहो, ये तो कोशिश है, इक ज़हर का ज़हर झड़ाने के लिए
यहाँ कौन है ? ये बीड़ा उठाने के लिए, इस शहर को शहर बनाने के लिए
तहज़ीब तो है, तरतीब नहीं, जो जहाँ से चला, वो है आज वहीं
है कुदाल तो राह बनाने के लिए, तरक़ीब नहीं है चलाने के लिए
---यहाँ कौन है ये बीड़ा ......
क़िस्मत में ही जिनके, तरसने को है, वो ये समझे के मेघ बरसने को है
ये तो क़तरे हैं आग लगाने के लिए, अभी बरसों हैं प्यास बुझाने के लिए
---यहाँ कौन है ये बीड़ा ......
बंद-बंद नज़र, बंद-बंद ज़ुबाँ, बंद गोश (कान) हैं, हर बंदे के यहाँ
वाँ तमाशा ही है, दिखलाने के लिए, याँ बवाल है सुनने-सुनाने के लिए
---यहाँ कौन है ये बीड़ा ......
संग टूट रहे, रंग छूट रहे, अंग अंग की अज़्मत लूट रहे
तंग करता बवाल, शहर छोड़ दे, पर दिल नहीं करता है जाने के लिए
---यहाँ कौन है ? ये बीड़ा उठाने के लिए, इस शहर को शहर बनाने के लिए
--- बवाल

29 टिप्‍पणियां:

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

संस्कारधानी के समस्त ब्ला॓गर बंधुओं को हमारी ओर से नर्मदे हर.

रामराम.

seema gupta ने कहा…

बंद-बंद नज़र, बंद-बंद ज़ुबाँ, बंद गोश (कान) हैं, हर बंदे के यहाँ
वाँ तमाशा ही है, दिखलाने के लिए, याँ बवाल है सुनने-सुनाने के लिए
" इ लेख है..व्यंग है...कटाक्ष है...दिल का गुबार है....इ सब हमका समझ ना आई .....अब इत्ते पढे लिखे नही भये हम हा हा हा हा हा हा हाँ पर इ दुई लाइन हमका समझ भी अई और मन का भी भाय गई...."

Regards

कुश ने कहा…

हम तो कल ही तशरीफ़ लाए जी पता ही नही क्या हो गया...

लेकिन जब लाल और बवाल साथ है तो फिर कोई सवाल ही खड़ा नही होता..

Vinay ने कहा…

बंद-बंद नज़र, बंद-बंद ज़ुबाँ, बंद गोश (कान) हैं, हर बंदे के यहाँ
वाँ तमाशा ही है, दिखलाने के लिए, याँ बवाल है सुनने-सुनाने के लिए

क्या बात है साहब, वाह!

महेन्द्र मिश्र ने कहा…

संस्कारधानी के ब्लॉगर भाइओ की और से सभी ब्लागर भाई बहिनों को नर्मदे हर . माँ नर्मदे सदा सहाय करे.

"अर्श" ने कहा…

बड़े भाई नमस्कार,
क्याबात कही सबसे पहले तो सभी संस्कर्धारानी के ब्लागरों को मेरी तरफ़ से बधाई ... ऊपर से आपकी लिखी ये रचना बेहद उम्दा क्या कहूँ मूक दर्शक बना फ़िर रहा हूँ सतब्ध हूँ .... ढेरो बधाई आपको..

अर्श

Richa Joshi ने कहा…

मां नर्मदे सभी ब्‍लागरों को अपने जैसी निर्मलता और सरलता प्रदान करें; उनकी लेखन गति भी नर्मदा जैसी ही हो।

Anil Pusadkar ने कहा…

नर्मदे हर।

राज भाटिय़ा ने कहा…

नर्मदे हर। नर्मदे हर। भाई हम तो मार काट से, दुर ही रहते है, सुंदर शेरो के लिये धन्यवाद

नीरज गोस्वामी ने कहा…

बहुता ही रोचक पोस्ट...भईय्या....
नीरज

बाल भवन जबलपुर ने कहा…

नर्मदे हर !!

Arvind Mishra ने कहा…

आख़िर ये चक्करवा क्या है ?

बेनामी ने कहा…

अरविन्द जी ये जबलपुरिया तड़का है हा हा हा

बेनामी ने कहा…

चलिए बबाल जी की पोस्ट पे फ़िर चिठ्ठाचर्चा जो जबलपुर के बारे में चार दिनों से चल रही है हा हा हा
नर्मदे हर हर हर महादेव

Udan Tashtari ने कहा…

नर्मदे हर!!

नर्मदा जयंति की सभी को शुभकामनाऐं.

संजय तिवारी ने कहा…

बहुत अच्छा लिखा है. मजा आया.
माँ नर्मदा की जय.
नर्मदे हर.

Unknown ने कहा…

भाई नमस्कार,
ब्लॉग पर आए और स्नेह भरी टिप्पणी की...ऐसा लगा कोई बिछडा हुआ बरसों बाद मिला हो . आपका बहुत-२ धन्यवाद् ,मिलते रहिये .

Akanksha Yadav ने कहा…

संग टूट रहे, रंग छूट रहे, अंग अंग की अज़्मत लूट रहे
तंग करता बवाल, शहर छोड़ दे, पर दिल नहीं करता है जाने के लिए
---यहाँ कौन है ? ये बीड़ा उठाने के लिए, इस शहर को शहर बनाने के लिए
बहुत खूब लिखा आपने, बधाई.
_______________________________
कभी मेरे ब्लॉग शब्द-शिखर पर भी आयें !!

Harshvardhan ने कहा…

very nice post

shelley ने कहा…

narmde har

KK Yadav ने कहा…

Sundar Bhavabhivyakti....!!

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

acchi lagi aapki post....!

Anil ने कहा…

bahut achhi lagi aapki post....!
ek taaji taaji post meri bhi hai dekhen
http://www.aajkapahad.blogspot.com/

कडुवासच ने कहा…

बंद-बंद नज़र, बंद-बंद ज़ुबाँ, बंद गोश (कान) हैं, हर बंदे के यहाँ
वाँ तमाशा ही है, दिखलाने के लिए, याँ बवाल है सुनने-सुनाने के लिए
... प्रभावशाली अभिव्यक्ति।

अभिषेक मिश्र ने कहा…

तंग करता बवाल, शहर छोड़ दे, पर दिल नहीं करता है जाने के लिए
---यहाँ कौन है ? ये बीड़ा उठाने के लिए, इस शहर को शहर बनाने के लिए

Acchi post aur behtarin jugalbandi bhi.

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

acchi lagi aapki post....!

amitabhpriyadarshi ने कहा…

shriman bawal main blog varta men thodo sust hoon par talash jari rahti hai . isi kram me aaj lal-n- bawaal mil gaya. upar se niche tak dekhata, padhata, aur gunta chalaa gayaa. sif kisi rachanaa par pratikriyaa dekar aupcharikata pura nahee karana chahta tha is liye thodi lambee baten (udgaar)likha gayaa. sach bhoot achha lagaa.
khas kar

gazal na geet hai pyare
aapsi batchit hai pyare.

योगेन्द्र मौदगिल ने कहा…

जै बवाल जै बवाल जै बवाल देवा
मात् तेरी नर्मदा पिता जबल देवा

RAJ SINH ने कहा…

' BAWAL ' BANDHU '

JAB TAK HAM PAHUNCHE KE PAHUNCHE BHAYEE LOG SABHEE TAREEF UNDEL JAATE HAIN.VAISE BHEE AAPKE BAWAL PAR KOYEE CHOTEE MOTEE TIPPANEE KA MATLAB ? ISLIYE HAMNE EK POST HEE ( KADIYON ME ) AAPKO SAMARPIT KEE HAI.AB AAP KE MUKABLE TO KYA PAR MAIN AAP KO HEE HANSANA CHAHTA HOON.

AAP TO PARSAYEE JEE KE SHAHAR HEE NAHEEN BUNIYAD KE HAIN.ISEE POST ME MAINE PARSAYEE JI KEE KAHANEE QUOTE KEE HAI JISME PREMEE PREMIKA AATM HATYA KAR SWARG PAHUNCHTE HAIN .LEKIN USKAA SHEERSHAK YAAD NAHEEN AAYA. PATHKON KO AUR MUJHE BHEE BATAYENGE.

BAKEE CHAYE RAHO YAR 'TARANG'KA SA AANAND AA JATA HAI !