और तो कुछ न हुआ, पी के बहक जाने से
बात मयख़ाने की, बाहर गई मयख़ाने से
बात मयख़ाने की, बाहर गई मयख़ाने से
शाइर ने यह शेर कहते वक्त कभी भी यह न सोचा होगा के ये इतना अधिक प्रासंगिक बन जाएगा के हर जगह फ़िट बैठेगा। हा हा !
पिछले तीन चार दिनों की ज़ोरदार आल्हा-ऊदली बड़ी ही मज़ेदार रही। क्या कहना ! अहा!
कोई जवाब नहीं है भाई, उन बेहतरीन पोस्टों और चर्चाओं का। बिल्कुल बजा और दुरुस्त। आनन्द भी आया बहुत। न जाने क्या क्या कयास लगाए गए ? हा हा। बच्चे तक ताली वाली पीटने लग गए, पर बात तो बड़ी थी और हाँ बड़ों की भी। लोग कहते पाए गए, लड़े चलो लड़ैयों। हा हा ।
पर लगता है ठीक तरह से WWF की कुश्तियाँ वगैरह नहीं देखते। भई देखना चाहिए वो भी। देखते होते तो यूँ रघुनाथ न होते। हा हा। नूरा कुस्ती का नाम नहीं सुने हैं का ?
अरे भाई ई सब नौटंकी हम सब जबलपुरिया कौनऊ कौनऊ की मौज लए की खातर किए रहे अऊ आप लोग समझत रहे कि आप हम लोगन की मौज लै रहे हो। ऎ बबुआ आल्हा-चिट्ठा तक मार दिए। हाहा। कौनऊ बात नाहीं भाई । जि का दुई बोल मा ही लच गई दुनिया सगरी, ऊ लचकदार की बातन माँ लचक हुईबै करी। द्याखा ई का कहत हैं जबलपुरी झटका (जोल्ट) हा हा ।
मगर हाँ ई तारीफ़ तो आपहू की करै का परी के, लिटरेचरवा बहुत जोरदार जड़ै हौ आप लोगन।
पर ऊ का पीछे ई काहे जड़ बैठे की हम रिस्तेदारी मा, राज ठाकरे के ताऊ मंजे बाऊ मंजे बाल ठाकरे होय गए। ई कौन साजिस है भाई ? औ जब बोल ही दिए थे पार्टनर तो देख लेते। ई का के इत्ता आल्हा सुनाए के बाद भी पोस्ट उठाय लिए औ बाद में रण भी छोड़ कर भाग लिए । चला लौट आब । बहुत बहाय लिहिन टंसुआ । देखो इत्ते प्यार से बुला रहे हैं मान जाब भाई, नहीं तौ फिर हमका मराठी मा समझाय का परी--
"आणि हे काय रे भाऊ, लाज येत नाय का तुमाला ? आपण कोण ? अरे आपण सगड़्या एकच आहे रे पण हे काय सांगीतला तुमि ? राज ठाकरे याँच्या ताऊ मंजे माहिती तुमाला ? शम्भर ट्क्के गाली दिली, जबलपुरी माणूस ला। चल सा॓री मण्ड याच्या बद्दल। ऒके। दिली दिली रे, तू पण आप्ल्या माणूस आणि भाऊ आहेत। पण आज पासून गप्प बसायला पाहिजे। अरे आ॓लरेडी बवाल झालेलाय रे बाबा। हा हा हा।" (बुरा न मानो मौजवा है)
और ब्ला॓गिताँ के प्रिय मित्रों ! माँ नर्मदे के पुत्र और आचार्य विनोबा की संस्कारधानी के लोग क्या ऎसे हो सकते हैं, जैसे समझ लिए गए। ये प्रयोजन तो महज़ परसाई जी के व्यंग की धार और "बात तो चुभेगी" के बीच का अन्तर दर्शाने के लिए था और कुछ भी नहीं। इसे किसी किस्म की साज़िश न समझें और ब्ला॓गिंग का भरपूर आनंद लें। हम सब एक हैं और सब के साथ हैं।
और जबलपुर तो सचमुच डबलपुर है ही, क्योंकि यहाँ का हर बंदा एक नहीं दो के बराबर है। शरीर ही से नहीं दिल से भी हा हा। चलिए जाने दीजिए।
१) साँप का ज़हर और उसका उसके ही ज़हर से उतरना, २) तहज़ीब याने संस्कार ३) आग के क़तरे ४) गाँधी के तीन बन्दर (बुरा मत देखो, बुरा मत सुनो और बुरा मत कहो) से आदमी की तुलना और ५) संग याने साथ और संग याने पत्थर (संगमरमर) याने "जबल" के टूट्ने का दर्द और अपने शहर के लिए जज़्बा । ये सब देखिए आगे नग़्मा-ए-बवाल में।
--- अन्जुमने-ब्ला॓गराने-जबलपूर
(संस्कारधानी के समस्त ब्ला॓गर बंधुओं की ओर से सबको नर्मदे हर)
शहर बनाने के लिए
साज़िश न कहो, ये तो कोशिश है, इक ज़हर का ज़हर झड़ाने के लिए
यहाँ कौन है ? ये बीड़ा उठाने के लिए, इस शहर को शहर बनाने के लिए
तहज़ीब तो है, तरतीब नहीं, जो जहाँ से चला, वो है आज वहीं
है कुदाल तो राह बनाने के लिए, तरक़ीब नहीं है चलाने के लिए
---यहाँ कौन है ये बीड़ा ......
है कुदाल तो राह बनाने के लिए, तरक़ीब नहीं है चलाने के लिए
---यहाँ कौन है ये बीड़ा ......
क़िस्मत में ही जिनके, तरसने को है, वो ये समझे के मेघ बरसने को है
ये तो क़तरे हैं आग लगाने के लिए, अभी बरसों हैं प्यास बुझाने के लिए
---यहाँ कौन है ये बीड़ा ......
ये तो क़तरे हैं आग लगाने के लिए, अभी बरसों हैं प्यास बुझाने के लिए
---यहाँ कौन है ये बीड़ा ......
बंद-बंद नज़र, बंद-बंद ज़ुबाँ, बंद गोश (कान) हैं, हर बंदे के यहाँ
वाँ तमाशा ही है, दिखलाने के लिए, याँ बवाल है सुनने-सुनाने के लिए
---यहाँ कौन है ये बीड़ा ......
वाँ तमाशा ही है, दिखलाने के लिए, याँ बवाल है सुनने-सुनाने के लिए
---यहाँ कौन है ये बीड़ा ......
संग टूट रहे, रंग छूट रहे, अंग अंग की अज़्मत लूट रहे
तंग करता बवाल, शहर छोड़ दे, पर दिल नहीं करता है जाने के लिए
---यहाँ कौन है ? ये बीड़ा उठाने के लिए, इस शहर को शहर बनाने के लिए
--- बवाल
तंग करता बवाल, शहर छोड़ दे, पर दिल नहीं करता है जाने के लिए
---यहाँ कौन है ? ये बीड़ा उठाने के लिए, इस शहर को शहर बनाने के लिए
--- बवाल
29 टिप्पणियां:
संस्कारधानी के समस्त ब्ला॓गर बंधुओं को हमारी ओर से नर्मदे हर.
रामराम.
बंद-बंद नज़र, बंद-बंद ज़ुबाँ, बंद गोश (कान) हैं, हर बंदे के यहाँ
वाँ तमाशा ही है, दिखलाने के लिए, याँ बवाल है सुनने-सुनाने के लिए
" इ लेख है..व्यंग है...कटाक्ष है...दिल का गुबार है....इ सब हमका समझ ना आई .....अब इत्ते पढे लिखे नही भये हम हा हा हा हा हा हा हाँ पर इ दुई लाइन हमका समझ भी अई और मन का भी भाय गई...."
Regards
हम तो कल ही तशरीफ़ लाए जी पता ही नही क्या हो गया...
लेकिन जब लाल और बवाल साथ है तो फिर कोई सवाल ही खड़ा नही होता..
बंद-बंद नज़र, बंद-बंद ज़ुबाँ, बंद गोश (कान) हैं, हर बंदे के यहाँ
वाँ तमाशा ही है, दिखलाने के लिए, याँ बवाल है सुनने-सुनाने के लिए
क्या बात है साहब, वाह!
संस्कारधानी के ब्लॉगर भाइओ की और से सभी ब्लागर भाई बहिनों को नर्मदे हर . माँ नर्मदे सदा सहाय करे.
बड़े भाई नमस्कार,
क्याबात कही सबसे पहले तो सभी संस्कर्धारानी के ब्लागरों को मेरी तरफ़ से बधाई ... ऊपर से आपकी लिखी ये रचना बेहद उम्दा क्या कहूँ मूक दर्शक बना फ़िर रहा हूँ सतब्ध हूँ .... ढेरो बधाई आपको..
अर्श
मां नर्मदे सभी ब्लागरों को अपने जैसी निर्मलता और सरलता प्रदान करें; उनकी लेखन गति भी नर्मदा जैसी ही हो।
नर्मदे हर।
नर्मदे हर। नर्मदे हर। भाई हम तो मार काट से, दुर ही रहते है, सुंदर शेरो के लिये धन्यवाद
बहुता ही रोचक पोस्ट...भईय्या....
नीरज
नर्मदे हर !!
आख़िर ये चक्करवा क्या है ?
अरविन्द जी ये जबलपुरिया तड़का है हा हा हा
चलिए बबाल जी की पोस्ट पे फ़िर चिठ्ठाचर्चा जो जबलपुर के बारे में चार दिनों से चल रही है हा हा हा
नर्मदे हर हर हर महादेव
नर्मदे हर!!
नर्मदा जयंति की सभी को शुभकामनाऐं.
बहुत अच्छा लिखा है. मजा आया.
माँ नर्मदा की जय.
नर्मदे हर.
भाई नमस्कार,
ब्लॉग पर आए और स्नेह भरी टिप्पणी की...ऐसा लगा कोई बिछडा हुआ बरसों बाद मिला हो . आपका बहुत-२ धन्यवाद् ,मिलते रहिये .
संग टूट रहे, रंग छूट रहे, अंग अंग की अज़्मत लूट रहे
तंग करता बवाल, शहर छोड़ दे, पर दिल नहीं करता है जाने के लिए
---यहाँ कौन है ? ये बीड़ा उठाने के लिए, इस शहर को शहर बनाने के लिए
बहुत खूब लिखा आपने, बधाई.
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कभी मेरे ब्लॉग शब्द-शिखर पर भी आयें !!
very nice post
narmde har
Sundar Bhavabhivyakti....!!
acchi lagi aapki post....!
bahut achhi lagi aapki post....!
ek taaji taaji post meri bhi hai dekhen
http://www.aajkapahad.blogspot.com/
बंद-बंद नज़र, बंद-बंद ज़ुबाँ, बंद गोश (कान) हैं, हर बंदे के यहाँ
वाँ तमाशा ही है, दिखलाने के लिए, याँ बवाल है सुनने-सुनाने के लिए
... प्रभावशाली अभिव्यक्ति।
तंग करता बवाल, शहर छोड़ दे, पर दिल नहीं करता है जाने के लिए
---यहाँ कौन है ? ये बीड़ा उठाने के लिए, इस शहर को शहर बनाने के लिए
Acchi post aur behtarin jugalbandi bhi.
acchi lagi aapki post....!
shriman bawal main blog varta men thodo sust hoon par talash jari rahti hai . isi kram me aaj lal-n- bawaal mil gaya. upar se niche tak dekhata, padhata, aur gunta chalaa gayaa. sif kisi rachanaa par pratikriyaa dekar aupcharikata pura nahee karana chahta tha is liye thodi lambee baten (udgaar)likha gayaa. sach bhoot achha lagaa.
khas kar
gazal na geet hai pyare
aapsi batchit hai pyare.
जै बवाल जै बवाल जै बवाल देवा
मात् तेरी नर्मदा पिता जबल देवा
' BAWAL ' BANDHU '
JAB TAK HAM PAHUNCHE KE PAHUNCHE BHAYEE LOG SABHEE TAREEF UNDEL JAATE HAIN.VAISE BHEE AAPKE BAWAL PAR KOYEE CHOTEE MOTEE TIPPANEE KA MATLAB ? ISLIYE HAMNE EK POST HEE ( KADIYON ME ) AAPKO SAMARPIT KEE HAI.AB AAP KE MUKABLE TO KYA PAR MAIN AAP KO HEE HANSANA CHAHTA HOON.
AAP TO PARSAYEE JEE KE SHAHAR HEE NAHEEN BUNIYAD KE HAIN.ISEE POST ME MAINE PARSAYEE JI KEE KAHANEE QUOTE KEE HAI JISME PREMEE PREMIKA AATM HATYA KAR SWARG PAHUNCHTE HAIN .LEKIN USKAA SHEERSHAK YAAD NAHEEN AAYA. PATHKON KO AUR MUJHE BHEE BATAYENGE.
BAKEE CHAYE RAHO YAR 'TARANG'KA SA AANAND AA JATA HAI !
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