बड़े भाई नमस्कार, गज़ब के तेवर है आपके भी ,शुभानाल्लाह ,ऊपर वाले ने गज़ब की शान बक्शी आपके लेखनी में बहोत ही खूब लिखा है आपने.... ढेरो बधाई इस छोटे की तरफ़ से .....
प्यारे बवाल भाई, परसों सुनील शुक्ला जी के यहाँ आपकी आवाज़ सुनकर तो दिल ही धड़धड़ा गया जी। क्या लहजा है आपका ग़ज़्ल कहने का। अहा! आदमी को एकदम पागल कर देने वाला रुतबा है आपकी आवाज़ में। इस ग़ज़ल का तो कहना ही क्या! क्या गा गए आप इसको उस महफ़िल में। आपका हारमोनियम ही मेरे दिमाग में गूँजा पड़ता है। वाह! पर एक ही शेर पढ़ा आज पूरी ग़ज़ल क्यों नहीं ?
बवाल जी बहुत ही अच्छी तरह से पूरा किया है आपने. सही दिशा सही तराना.
यूँ आईने के सामने, टिकते वो कब तलक ? मीज़ान-ए-हुस्न कस रहा था उनपे फब्तियाँ ! फबने का ज़माना भी था, उनका कभी कहीं, पर अब तो सज रही हैं, झुर्रियों की ख़ुश्कियाँ ***************************************** आग़ाज़ को अंजाम पे, आने तो दीजिए दिल में ज़रा बवाल, मचाने तो दीजिए है इश्क़ में अब भी हमारे, वो ही दम-ओ-ख़म नज़रों से नज़र आप, मिलाने तो दीजिए
19 टिप्पणियां:
बज्म और तन्हाई!
तूफान और पुरवाई!
बहुत खूब!
खूब बहुत खूब!
उन्हें नवाजना भी खलल है।
लोग ठिठके, ठहर सोचने ये लगे !
किसने तूफ़ाँ को छेड़ा है पुरवाई में ??
" कमाल है ...."
regards
किसने तूफ़ाँ को छेड़ा है पुरवाई में ??
बहुत खूब ....सुंदर
aapne to blog par hi tufan ko chhod dya bahut badiya badhai
हमेशा की तरह बवाल मचाती चंद पंक्तियाँ वकील साब...
आखिरी के दो मिस्रे तो -उफ़्फ़्फ़्फ़्फ़
kya kahu bawal machati panctian likhi aapne .....
सुन्दर।
कमाल है बवाल भाई.
रामराम.
ना तो परदे मेँ ना तन्हाइ मेँ
ठिठ्का तुफाँ भी था रुसवाइ मेँ
नाम आपने पुकारा होगा
सोचकर मस्त था पुरवाइ मेँ
वाह वाह..क्या कहने!! बहुत बेहतरीन!!
लोग ठिठके, ठहर सोचने ये लगे !
किसने तूफ़ाँ को छेड़ा है पुरवाई में ??
बहुत बेहतरीन,,
कमाल है
सिटीजन: दया और प्रेम की प्रतिमूर्ति स्वामी दयानंद सरस्वती जयंती अवसर : समाज सुधारक ही नही वरन आजादी के भी दीवाने थे ?
बड़े भाई नमस्कार,
गज़ब के तेवर है आपके भी ,शुभानाल्लाह ,ऊपर वाले ने गज़ब की शान बक्शी आपके लेखनी में बहोत ही खूब लिखा है आपने....
ढेरो बधाई इस छोटे की तरफ़ से .....
अर्श
प्यारे बवाल भाई,
परसों सुनील शुक्ला जी के यहाँ आपकी आवाज़ सुनकर तो दिल ही धड़धड़ा गया जी। क्या लहजा है आपका ग़ज़्ल कहने का। अहा! आदमी को एकदम पागल कर देने वाला रुतबा है आपकी आवाज़ में। इस ग़ज़ल का तो कहना ही क्या! क्या गा गए आप इसको उस महफ़िल में। आपका हारमोनियम ही मेरे दिमाग में गूँजा पड़ता है। वाह! पर एक ही शेर पढ़ा आज पूरी ग़ज़ल क्यों नहीं ?
वाह जी वबाल जी अच्छा कमाल किया आप ने , पढ कर दिल का खुश हो गया जी.
धन्यवाद
बहुत खूब बवाल कई बार इसका ज़बाव लिखने की कोशिश के न लिख सका
यानि ला ज़वाब ही कहूंगा और क्या ,,,,?
सुंदर कमाल अद्भुत ब्लॉग पर पधार कर "सुख" की पड़ताल को देखें पढ़ें आपका स्वागत है
http://manoria.blogspot.com
बवाल जी
बहुत ही अच्छी तरह से पूरा किया है आपने. सही दिशा सही तराना.
यूँ आईने के सामने, टिकते वो कब तलक ?
मीज़ान-ए-हुस्न कस रहा था उनपे फब्तियाँ !
फबने का ज़माना भी था, उनका कभी कहीं,
पर अब तो सज रही हैं, झुर्रियों की ख़ुश्कियाँ
*****************************************
आग़ाज़ को अंजाम पे, आने तो दीजिए
दिल में ज़रा बवाल, मचाने तो दीजिए
है इश्क़ में अब भी हमारे, वो ही दम-ओ-ख़म
नज़रों से नज़र आप, मिलाने तो दीजिए
- विजय
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