गुरुवार, 19 फ़रवरी 2009

पुरवाई में ??.............(बवाल)

नाम उनका पुकारा गया बज़्म में,
थे जो मसरूफ़ अपनी ही तन्हाई में !
लोग ठिठके, ठहर सोचने ये लगे !
किसने तूफ़ाँ को छेड़ा है पुरवाई में ??

19 टिप्‍पणियां:

Alpana Verma ने कहा…

बज्म और तन्हाई!
तूफान और पुरवाई!

बहुत खूब!

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

खूब बहुत खूब!
उन्हें नवाजना भी खलल है।

seema gupta ने कहा…

लोग ठिठके, ठहर सोचने ये लगे !
किसने तूफ़ाँ को छेड़ा है पुरवाई में ??
" कमाल है ...."

regards

रंजू भाटिया ने कहा…

किसने तूफ़ाँ को छेड़ा है पुरवाई में ??

बहुत खूब ....सुंदर

निर्मला कपिला ने कहा…

aapne to blog par hi tufan ko chhod dya bahut badiya badhai

गौतम राजऋषि ने कहा…

हमेशा की तरह बवाल मचाती चंद पंक्तियाँ वकील साब...
आखिरी के दो मिस्‍रे तो -उफ़्फ़्फ़्फ़्फ़

mark rai ने कहा…

kya kahu bawal machati panctian likhi aapne .....

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

सुन्दर।

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

कमाल है बवाल भाई.

रामराम.

अनुपम अग्रवाल ने कहा…

ना तो परदे मेँ ना तन्हाइ मेँ
ठिठ्का तुफाँ भी था रुसवाइ मेँ
नाम आपने पुकारा होगा
सोचकर मस्त था पुरवाइ मेँ

Udan Tashtari ने कहा…

वाह वाह..क्या कहने!! बहुत बेहतरीन!!

समय चक्र ने कहा…

लोग ठिठके, ठहर सोचने ये लगे !
किसने तूफ़ाँ को छेड़ा है पुरवाई में ??

बहुत बेहतरीन,,

सिटीजन ने कहा…

कमाल है
सिटीजन: दया और प्रेम की प्रतिमूर्ति स्वामी दयानंद सरस्वती जयंती अवसर : समाज सुधारक ही नही वरन आजादी के भी दीवाने थे ?

"अर्श" ने कहा…

बड़े भाई नमस्कार,
गज़ब के तेवर है आपके भी ,शुभानाल्लाह ,ऊपर वाले ने गज़ब की शान बक्शी आपके लेखनी में बहोत ही खूब लिखा है आपने....
ढेरो बधाई इस छोटे की तरफ़ से .....

अर्श

शशिकान्त ओझा ने कहा…

प्यारे बवाल भाई,
परसों सुनील शुक्ला जी के यहाँ आपकी आवाज़ सुनकर तो दिल ही धड़धड़ा गया जी। क्या लहजा है आपका ग़ज़्ल कहने का। अहा! आदमी को एकदम पागल कर देने वाला रुतबा है आपकी आवाज़ में। इस ग़ज़ल का तो कहना ही क्या! क्या गा गए आप इसको उस महफ़िल में। आपका हारमोनियम ही मेरे दिमाग में गूँजा पड़ता है। वाह! पर एक ही शेर पढ़ा आज पूरी ग़ज़ल क्यों नहीं ?

राज भाटिय़ा ने कहा…

वाह जी वबाल जी अच्छा कमाल किया आप ने , पढ कर दिल का खुश हो गया जी.
धन्यवाद

Girish Kumar Billore ने कहा…

बहुत खूब बवाल कई बार इसका ज़बाव लिखने की कोशिश के न लिख सका
यानि ला ज़वाब ही कहूंगा और क्या ,,,,?

प्रदीप मानोरिया ने कहा…

सुंदर कमाल अद्भुत ब्लॉग पर पधार कर "सुख" की पड़ताल को देखें पढ़ें आपका स्वागत है
http://manoria.blogspot.com

विजय तिवारी " किसलय " ने कहा…

बवाल जी
बहुत ही अच्छी तरह से पूरा किया है आपने. सही दिशा सही तराना.

यूँ आईने के सामने, टिकते वो कब तलक ?
मीज़ान-ए-हुस्न कस रहा था उनपे फब्तियाँ !
फबने का ज़माना भी था, उनका कभी कहीं,
पर अब तो सज रही हैं, झुर्रियों की ख़ुश्कियाँ
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आग़ाज़ को अंजाम पे, आने तो दीजिए
दिल में ज़रा बवाल, मचाने तो दीजिए
है इश्क़ में अब भी हमारे, वो ही दम-ओ-ख़म
नज़रों से नज़र आप, मिलाने तो दीजिए


- विजय