हाय,
ये भी कोई बात है मैथिली जी, कि दुनिया भर को अपनी बात कहने का मंच देने वाले होकर भी विजय पर्व पर हार मान बैठे। वो भी इसीलिए माननी पड़ी कि आपकी ब्लॉगवाणी ब्लॉग मंच से हटकर एक युद्ध क मैदान बन पड़ी थी। आज सबसे अधिक पसंद प्राप्त, आज सबसे ज्यादा पढ़े गए, आज सबसे ज्यादा टिप्पणी प्राप्त आदि आदि। मगर आज का सबसे बेहतर चिट्ठा ? वो कहाँ ? चाहे उस पर कोई पसंद, कोई टीप, कोई पठन ना हो। इस चक्कर में कुछ स्तरीय बातें नज़र से छूट जाती थीं। खै़र अब तो मट्की फूट गई। मगर ये मट्की क्यूँ फूटी ?
काश के कोई ऐसा एग्रीगेटर होता के-
१) जो अल्फ़ाबेटिकली अरेंज्ड होता।
२) दिन भर में २४० पोस्टों से ऊपर प्रदर्शित ही ना करता।
३) एक ब्लॉगर को हफ़्ते में एक ही दिन पोस्ट करने देता।
४) ब्लॉग को जिसने भी पढ़ा उसे टिप्पणी कार मानता।
५) पसंद नापसंद के लिए अलग से विशिष्ट टीप की व्यवस्था रहती।
६) सबसे ज़्यादा और सबसे कम का दिल छोटा करने वाला कोई पैमाना ही ना होता।
७) ब्लॉग महज़ ब्लॉग रहता, कोई प्रतियोगिता, पसंद, श्रेष्ठता और पहेली की वस्तु ना रहता।
काश के ऐसा होता ।
काश के ऐसा के ही हो।
आज ब्लॉगवाणी भी शोले के धरम प्राजी जैसे टंकी पर चढ़ चुकी है। लेकिन ये भी सच है के जब गुस्सा उतर जाएगा तब ये भी उतर आएगी। और आप कोई हिन्दी ब्लॉगिंग पर एहसान नहीं कर रहे थे मैथिली जी या सिरिल जी, बल्कि अपना कर्तव्य निभा रहे थे। तो क्या इस यज्ञ में हम आपके साथ नहीं थे। अब भी हैं। कम बैक जी।
फ़ोन बंद कर देने से क्या बात बंद हो जाएगी। ये वो निकली है जो अब दूर तलक जाएगी। दीवार फ़िल्म के उस डायलॉग को याद कीजिए के "जिसने तेरे हाथ पर यह लिख दिया के मेरा बाप चोर है" वो तेरा कौन था ?
पसंद नापसंद के चट्कों से दुनिया नहीं चलती । वो तो चलती है मोहब्बती उसूलों से ।
चलते चलते नीरज के उस गीत को चलिए फिर याद कर लें--
ऎसी क्या बात है चलता हूँ अभी चलता हूँ गीत इक और ज़रा झूम के गा लूँ तो चलूँ ।
मंगलवार, 29 सितंबर 2009
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20 टिप्पणियां:
ब्लॉगवाणी!... बवाल को सुनो...और इस बवाल पर विराम लगाओ...वैसे मेरी ताजा पोस्ट पर भी पांच सुझाव हैं...सपनों के एग्रीगेटर के लिए...लाल जी (गुरुदेव)...टेलीपेथी कुछ ज़्यादा ही असरदार होती जा रही है...
आप की बात का सौ फीसदी समर्थन!
बस उम्मीद करता हूँ कि आपकी बात सच हो..अपनी दुआ मे हमारी भी दुआ मिला लें..
बवाल
अव्वल तो तुम्हारी पोस्ट की भाषा से यह स्पष्ट नहीं हो रहा है कि ब्लॉगवाणी से वापस आने का निवेदन कर रहे हो या हड़का कर बुला रहे हो.
दूसरे यह भी स्पष्ट नहीं हुआ कि खेद जता रहे हो, दुख प्रकट कर रहे हो या खुशी मना रहे हो.
तीसरे, क्या इस तरह के कोई सुझाव तुमने मैथली जी/ सिरिल को दिये थे, जब ब्लॉगवाणी चल रहा था या इस हेतु कोई पोस्ट उस समय लिखी थी.
-यदि नहीं तो क्या तुम्हारा ब्लॉग ब्लॉगवाणी के बंद होने के बाद खुला या उनका ईमेल पता तुम्हें बंद होन के बाद मिला या उनका फोन नम्बर तुम्हारे पास अब आ रहा है.
फोन को बंद या चालू रखना निश्चित रुप से उन्हीं का अधिकार है. संभव है उनकी तबीयत नासाज हो या इतने सारे कॉल इसी विषय पर उन्हें डिस्टर्ब कर रहे हों, यह लिखना तो एक प्रकार से उनके व्यक्तिगत मामलों में दखल देने जैसा हो गया.
ब्लॉगवाणी ने तो कभी मैथली जी का या सिरिल का फोन नम्बर उपलब्ध नहीं कराया फिर ब्लॉगवाणी विषयक चर्चा के लिए फोन क्यूँ?
व्यग्तिगत चर्चा हो तो बात समझ में आती है अन्यथा तो फोन करने की भी वजह मेरी समझ से बाहर है, जब तक की आपका व्यक्तिगत संपर्क दोनों मे से किसी एक से न रहा हो.
एक आदर्श एग्रीगेटर में आप क्या देखना पसंद करेंगे, क्या नहीं-यह एक जनरल टॉपिक होना चाहिये. ब्लॉगवाणी क्या करता है और क्या नहीं, यह सुझाव या छिद्रांवेषण का समय उसी वक्त खत्म हो गया, जब उन्होंने इसे बंद करने का फैसला लिया.
अब यदि वो वापस आता है और आपके सुझाव आमंत्रित करता है तो निश्चित ही आपके सुझावों का स्वागत होगा किन्तु तब ही, जब वो वापस आयें.
इस वक्त तो हम सब मिलकर बस निवेदन ही कर सकते हैं कि वो वापस आयें.
यही कमी बेसी निकालते निकालते हमने ही उन्हें मजबूर किया, हमने ही उनका जीना दूभर कर दिया और उन्हें यह अप्रिय कदम उठाना पड़ा.
सिवाय छिद्रांवषेण के कोई भी यह कहता नहीं दिख रहा कि इस काम हेतु जो समय, अर्थ और उर्जा आप लोग लगाते थे, उसमें हम क्या योगदान कर सकते हैं या योगदान की बात करने में हिचकिचाहट महसूस हो तो कम से कम इस उत्कृष्ट कार्य के साधुवाद तो दे ही सकते हैं.
कल की ही तरह एक बार फिर दुखी मन से कहता हूँ इस घटना के लिए:
बेहद अफसोसजनक, दुखद...चन्द विघ्नसंतोषियों का प्रयास सफल रहा. उन्हें बधाई और उनकी ओर से मेरी ब्लॉगवाणी से क्षमाप्रार्थना. मैथिली जी/ सिरिल कृप्या अपने फैसले पर हिन्दी चिट्ठों के हित में पुनर्विचार करें.
समीरलाल
thik hai.
Un bloggeron ke khatir jinhe aap par bharosa raha wapis aaeye.
mujhe blogvani dobara dikh rahi hai...ye bhram hai kya?
समीर जी से सहमत -बवाल भाई उनकी बातों पर गौर करें ! और आज फिर फोन मिलाएँ !
बड़े भाई समीर लाल जी,
हमारे फ़ोन का मतलब टैली पैथी के फ़ोन से है न कि भौतिक फ़ोन से और मैथिली जी से और सिरिल जी से हड़कार भरी मनुहार करने का हक़ क्या हमारा इतना भी नहीं ? ये हमारे सुझाव नहीं हमारे सपनों के एग्रीगेटर के पद हैं। सबके अपने अपने होते हैं। उन्हें पहले हमने किसी से शेयर नहीं किया तो अब कर लिया। क्या फ़र्क़ पड़ा ? सब जस का तस है जी। और अब तो हमारा प्यारा ब्लॉगवाणी लौट भी आया है। आदरणीय मैथिली जी और सिरिल जी ने सबकी बात रख ली। वो हम सबका उनके प्रति प्रेम और स्नेह समझते हैं तभी तो हम सबकी मनुहार उन्हें लौटा लाई और आप हैं के बस .......... (विम का विज्ञापन पुराने ज़माने का) हा हा ।
हम आपसे, मैथिली जी से, सिरिल जी से और ब्लॉगवाणी परिवार और सभी चाहने वालों से मुआफ़ी माँगते हैं, यदि उन्हें हमारी कोई भी बात चुभ गई हो ! जब कोई बहुत अपना इस तरह छोड़ कर जाता है ना तो वह बिछोह हताशात्मक क्रोध का रूप ले लेता है, ये वही था। और हाँ जी, आज के बाद हम ख़ुद होकर कभी टेस्ट करने को भी पसंद का चट्का नहीं लगाएंगे। चाहे हम बाज़ू से दिखें या ना दिखें, बस। हाँ नहीं तो। हा हा ।
जय हिन्द । जय हिन्दी।
बेहद अफसोसजनक, दुखद...चन्द विघ्नसंतोषियों का प्रयास सफल रहा. उन्हें बधाई और उनकी ओर से मेरी ब्लॉगवाणी से क्षमाप्रार्थना. मैथिली जी/ सिरिल कृप्या अपने फैसले पर हिन्दी चिट्ठों के हित में पुनर्विचार करें.
अपनी अभिव्यक्ति मैं समीरजी के उपरोक्त शब्दों मे ज्यादा बेहतर तरीके से होती महसूस कर रहा हूं.
रामराम.
http://sanskaardhani.blogspot.com/2009/09/blog-post_27.html
aapakaa vivaad kuch bhee ho magar ham bahut khush haiM ki blaagavaanee fir se shuroo ho gayaa aabhaar aur sab ko badhaaI
अरे बाबा ब्लांगबाणी फ़िर से आ गई है, लेकिन आप की अदा सब से निराली है बहुत सुंदर, गुस्से भरा इजहार कर रहे है आप, मना भी रहे है ओर नारजगी भी जता रहे है... सद के जाऊ आप की इस अदा पै.यानि हम सब का प्यार का हक है ब्लांग बाणी पर
धन्यवाद
कौन टाईप के हो यार!
आपके कमाल ने कर दिया धमाल
और जब मचा बबाल का कोहराम
आआ गईईईई ब्लागवाणी
बहुत बढ़िया धाँसू पोस्ट पढ़ने वालो के
तोते भी सरक गए होंगे
इसीलिए वाह्ह आ अ गा ईईईईईईई.
आभार
नहीं जी बवाल जी आपकी बातों से गुस्से के साथ प्रेम झलकता है जो अपनों को अधिकार से कहा जता है !
गुस्से के साथ प्रेम!
अच्छा आवाहन !
यार आपके खुद के सहित आपको कोई लाख बवाली कहे , ये बात फुल टू फुल , मेरे भी मन की है .
आपकी शालीनता और साहस दोनों ही बेजोड़ हैं .
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