कुछ ऐसी तसव्वुर की, महफ़िल सजाएँ
जहाँ हों वहीं से, उन्हें खैंच लाएँ
क़व्वाले-आज़म तहज़ीबिस्तान
जहाँ हों वहीं से, उन्हें खैंच लाएँ
क़व्वाले-आज़म तहज़ीबिस्तान
चचा लुक़्मान
हमारे उस्ताद की जयंती
१४ जनवरी १९२५ (मकर संक्राति) पर
उन्हें शत् शत् नमन
(महाप्रयाण :- २७ जुलाई २००२)
पद्मश्री पंडित भवानी प्रसाद तिवारी जी की इन पंक्तियों के साथ
मधुर बीन तेरी स्वरित तार मेरे
बहुत जोड़ता हूँ, नहीं जोड़ पाता
और
हमारे श्रद्धासुमन
चोटों पे चोट खाना, खाकर वो भूल जाना
मुझे मुआफ़ करते करते, अल्लाह बन न जाना
एहले ज़बाँ का मुझको, वो इल्म ना हो शायद
तेरी कहन को लेकिन, हूँ जानता निभाना
---बवाल
20 टिप्पणियां:
चचा लुकमान के जन्म दिवस पर उनकी पुण्य आत्मा को शत शत नमन.
कितना कुछ याद आ रहा है आज!!!
श्रद्धांजली !
और "मुझे मुआफ़ करते करते, अल्लाह बन न जाना"
क्या बात है ?
मेरी तरफ से भी हार्दिक श्रद्धांजली !
उस्ताद लुकमान को नमन! उन के हर जन्मदिवस पर उन की कीर्ति और बढे़।
श्रद्धांजलि!
चचा लुकमान को हार्दिन नमन.
रामराम.
चचा लुक्मानजी को सा सैट नमन !!!
आदरणीय लुकमान जी के जन्म दिवस पर शत शत नमन....
चचा लुकमान को विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करता हुँ।
माफ़ किजिए टंकण त्रुटि हो गयी थी लिखने मे।
इसलिए टिप्पणी निकाली।
हमारा भी प्रणाम.
पंडित भवानी प्रसाद तिवारी जी को हमारी तरफ़ से प्रणाम
चचा लुक्मान को हार्दिक नमन ....
ब्लॉग पर होस्लाफ्जाई का दिल से शुक्रिया.
सबसे पहले भाई बवाल को बहुत बहुत आभार जो इन्होंने जबलपुर के संस्कार के अनुरूप अपने उस्ताद को याद किया .
हमने भी चचा लुकमान को देखा है, उनसे मिले हैं और उन्हें सुना है.
उनकी मिलनसारिता उनका सरल व्यक्तित्व और सबसे बड़ी बात उनकी धर्म निरपेक्षता आज भी हमारे जेहन में स्थाई निवास करती है.
उनकी कव्वालियों का तो बच्चा बच्चा कायल था और आज भी लोग उन्हें याद करते हैं.
उनके द्वारा गाई गयीं भवानी प्रसाद की रचनाएँ सुन कर लोग झूमने लगते थे.
जबलपुर में विलक्षण भाईचारे की मिसाल के रूप में उन्हें सदैव याद किया जाएगा.
हम भी उनका पुण्य स्मरण कर विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं.
- विजय तिवारी 'किसलय'
चचा लुकमान को विनम्र श्रद्धांजलि । धन्यवाद इस पोस्ट के लिये
http://sanskaardhani.blogspot.com/2010/01/blog-post_15.html
श्रद्धांजलि प्रसून भी सादर अर्पित हैं
सच मुच चचा महान थे बवाल
मुझे मुआफ़ करते करते, अल्लाह बन न जाना
बहुत बारीकियां है आपके लेखन में और मेरी बूद्धि मोटी!! अब किन शब्दों में आपको टिप्पणी दूँ!!! चचा लुक्मानजी श्रद्धा सुमन अर्पित करता हूँ!!
meri or se shradhanjali...
भाईजान,
यह शेर तो हम्दे-बारी-तआला हुआ के
-मुझे मुआफ़ करते करते अल्लाह बन न जाना।
आप लाजवाब कहते हैं भाईजान। मालिक उम्र-दराज़ करे आपकी। सच ऐसे शेर ग़ालिबो-मीर की याद दिलाते हैं।
--- असद सिद्दिक़ी
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