गुरुवार, 14 जनवरी 2010

चचा लुक़्मान ज़िंदाबाद : बवाल का सलाम

कुछ ऐसी तसव्वुर की, महफ़िल सजाएँ

जहाँ हों वहीं से, उन्हें खैंच लाएँ 

क़व्वाले-आज़म तहज़ीबिस्तान

चचा लुक़्मान



हमारे उस्ताद की जयंती

१४ जनवरी १९२५ (मकर संक्राति) पर

उन्हें ‍शत् शत् नमन

(महाप्रयाण :- २७ जुलाई २००२)

पद्मश्री पंडित भवानी प्रसाद तिवारी जी की इन पंक्तियों के साथ

मधुर बीन तेरी स्वरित तार मेरे

बहुत जोड़ता हूँ, नहीं जोड़ पाता

और

हमारे श्रद्धासुमन


चोटों पे चोट खाना, खाकर वो भूल जाना

मुझे मुआफ़ करते करते, अल्लाह बन न जाना


एहले ज़बाँ का मुझको, वो इल्म ना हो शायद

तेरी कहन को लेकिन, हूँ जानता निभाना

---बवाल

20 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

चचा लुकमान के जन्म दिवस पर उनकी पुण्य आत्मा को शत शत नमन.

कितना कुछ याद आ रहा है आज!!!

Arvind Mishra ने कहा…

श्रद्धांजली !
और "मुझे मुआफ़ करते करते, अल्लाह बन न जाना"
क्या बात है ?

डॉ. मनोज मिश्र ने कहा…

मेरी तरफ से भी हार्दिक श्रद्धांजली !

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

उस्ताद लुकमान को नमन! उन के हर जन्मदिवस पर उन की कीर्ति और बढे़।

Smart Indian ने कहा…

श्रद्धांजलि!

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

चचा लुकमान को हार्दिन नमन.

रामराम.

Murari Pareek ने कहा…

चचा लुक्मानजी को सा सैट नमन !!!

महेन्द्र मिश्र ने कहा…

आदरणीय लुकमान जी के जन्म दिवस पर शत शत नमन....

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

चचा लुकमान को विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करता हुँ।


माफ़ किजिए टंकण त्रुटि हो गयी थी लिखने मे।
इसलिए टिप्पणी निकाली।

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

हमारा भी प्रणाम.

राज भाटिय़ा ने कहा…

पंडित भवानी प्रसाद तिवारी जी को हमारी तरफ़ से प्रणाम

shikha varshney ने कहा…

चचा लुक्मान को हार्दिक नमन ....
ब्लॉग पर होस्लाफ्जाई का दिल से शुक्रिया.

विजय तिवारी " किसलय " ने कहा…

सबसे पहले भाई बवाल को बहुत बहुत आभार जो इन्होंने जबलपुर के संस्कार के अनुरूप अपने उस्ताद को याद किया .
हमने भी चचा लुकमान को देखा है, उनसे मिले हैं और उन्हें सुना है.
उनकी मिलनसारिता उनका सरल व्यक्तित्व और सबसे बड़ी बात उनकी धर्म निरपेक्षता आज भी हमारे जेहन में स्थाई निवास करती है.
उनकी कव्वालियों का तो बच्चा बच्चा कायल था और आज भी लोग उन्हें याद करते हैं.
उनके द्वारा गाई गयीं भवानी प्रसाद की रचनाएँ सुन कर लोग झूमने लगते थे.
जबलपुर में विलक्षण भाईचारे की मिसाल के रूप में उन्हें सदैव याद किया जाएगा.
हम भी उनका पुण्य स्मरण कर विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं.
- विजय तिवारी 'किसलय'

निर्मला कपिला ने कहा…

चचा लुकमान को विनम्र श्रद्धांजलि । धन्यवाद इस पोस्ट के लिये

Girish Kumar Billore ने कहा…

http://sanskaardhani.blogspot.com/2010/01/blog-post_15.html
श्रद्धांजलि प्रसून भी सादर अर्पित हैं

शहर जबलपुर की शान लुकमान ने कहा…

सच मुच चचा महान थे बवाल

खुला सांड ने कहा…

मुझे मुआफ़ करते करते, अल्लाह बन न जाना

बहुत बारीकियां है आपके लेखन में और मेरी बूद्धि मोटी!! अब किन शब्दों में आपको टिप्पणी दूँ!!! चचा लुक्मानजी श्रद्धा सुमन अर्पित करता हूँ!!

Crazy Codes ने कहा…

meri or se shradhanjali...

बेनामी ने कहा…

भाईजान,
यह शेर तो हम्दे-बारी-त‍आला हुआ के
-मुझे मुआफ़ करते करते अल्लाह बन न जाना।

आप लाजवाब कहते हैं भाईजान। मालिक उम्र-दराज़ करे आपकी। सच ऐसे शेर ग़ालिबो-मीर की याद दिलाते हैं।
--- असद सिद्दिक़ी