गुरुवार, 11 दिसंबर 2008

वसीयत-ऐ-गुल.......

अबके बहार आना,
कोई ऐसा गुल खिलाना !

मिरे नाम पर वसीयत,
कर दे उसे ज़माना !!


--- बवाल

12 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत उम्दा...जमाना करे न करे..हम तो किए ही देते हैं भई इस उम्दा शेर पर. :)

नीरज गोस्वामी ने कहा…

बेहतरीन...बवाल साहेब...और ये छोटे मियां कौन हैं? आप के साहिब जादे? जुग जुग जियें....माशाल्लाह बहुत खूब हैं...
नीरज

seema gupta ने कहा…

मिरे नाम पर वसीयत,
कर दे उसे ज़माना
"subhanallah" ye chote se pyare se sahabjade kaun hai je???

regards

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

बहुत पेच है जी इस में।

महेंद्र मिश्र.... ने कहा…

bahut hi joradaar panktiyan . chote ustaaj foto me chote babaal ji dikh rahe hai .

विवेक सिंह ने कहा…

गाते रहें तराना , सच होगा ये फसाना .
लो मान गए हम तो, मानेगा ये जमाना ..

"अर्श" ने कहा…

बहोत खूब बवाल साहब बहोत खूब लिखा आपने ढेरो बधाई स्वीकारें...
आभार

अर्श

BrijmohanShrivastava ने कहा…

बचपन में और अब में कोई अंतर नहीं आया

prakharhindutva ने कहा…

www.prakharhindu.blogspot.com
ख़ैर 13 दिसम्बर पर विशेष में पढ़िए

.......जिस सत्ता को जनसाधारण के लिए विकासशील नीतियाँ बनाने का साधन होना चाहिए था, भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने के लिए एक माध्यम होना चाहिए था वह सत्ता स्वयम् ही साध्य हो गई।

इसके बाद तो भारतवर्ष के स्वार्थी नेता सत्ता रूपी वारंगना की सुगन्ध पाकर ही एक व्यभिचारी समान आचरण करने लग गए। कइयों के लिए संसद गन्तव्य हो गई तो कुछ ने विधान सभा को ही अपने जीवन का अन्तिम लक्ष्य मान लिया.....

www.prakharhindu.blogspot.com

PREETI BARTHWAL ने कहा…

बेहतरीन बहुत खूब

अनुपम अग्रवाल ने कहा…

गुल सारे खिल जायेंगे ,कुछ बहार आने तो दो
वसीयत बाद में तेरे नाम ,पहले ज़माने तो दो

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

जै जै आप की,
बहुत दिनों बाद दिखाई दिए,
खुशी हुई कि दिखे तो ...