
साक़िया तेरा पिलाना काम है,
बंदिशे-मिक़दार तौरे-खा़म है !
कितनी पीना ? कब न पीना चाहिए ?
ये तो तय करना हमारा काम है।
-पन्नालाल नूर (नौट मी धिस टाइम)
हम पर बवाल कर रही, है सारी कायनात !
पर ऐतबार बाकी़ है, इक तेरी नज़र का !!
(ग़मेयार-महबूब के न मिलने का ग़म), (लालाज़ार- लाल फूलों का बागी़चा), (बेसदा - बेआवाज़), (गुंग-तार -- न बोलने वाला तार), (वज़्ने-वका़र - मान मर्यादा का भार) , (लबकुशा - बोलना )
अब तक सलीब पर तो, मिलती रही सज़ाएँ !
पर अब सलीब से ही, महकीं हैं ये फ़ज़ाएँ !!