गुरुवार, 11 सितंबर 2008

कानी ला भाऊ नई कानी बिना राहू नई (रजिया का बाप मरा .....)

उड़नतश्तरी पिछले दो दिन के लिए गा़यब हुई क्षुब्ध वुब्ध वाली स्टाइल में ।
लोग परेशान हो गए के भैये कहाँ गए ? और हम उस वक्त शोले पिक्चर देख रहे थे जहाँ अमित जी जो के उन दिनों अमिताभ कहलाते थे डायलोग मार रहे थे --- हाँ देखा कुछ नहीं होगा जब फ़लानी चीज़ उतरेगी तो ये भी उतर आएगा । देखा ! उतर आई ना । अरे भाई क्लासिक चीज़ों और हरदिल अज़ीज़ों में यही तो ख़ूबी है । चाहने वालों से दूर रह ही नहीं सकते। छतीसगढ़ में कहावत ही है के कानी ला भाव नई औ कानी बिना रहू नई । याने अब हटाइए । मीठी नींद फ़रमाइए ।

5 टिप्‍पणियां:

विवेक सिंह ने कहा…

आपने एकदम द पोइण्ट लिखा है .

Udan Tashtari ने कहा…

अरे वाह, मेरे बवाल!! गजब चीज हो.इस वीक एण्ड पर नजर डालते हैं यहाँ. :)

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

और इस बीच दुनियाँ ब्लेक होल में हो कर वापस आ गई।

कामोद Kaamod ने कहा…

:)
समीर जी ने तो 'बवाल' कर दिया.
समीर जी अभी उतरी नहीं कि अगली की बात करने लगे. :)

सही पकड़ा आपने बवाल जी

seema gupta ने कहा…

" bhut shee kha aapne, ab jake raahet aaye"

Regards