मिश्रा जी की लेटेस्ट पोस्ट देशप्रेम पर की गई एक बहुत सुंदर विवेचना है। 
इस पर इस से ज्यादा क्या कहा जाए ?
प्यासी ज़मीन थी लहू, सारा पिला दिया !
मुझपे वतन का क़र्ज़ था,  लो मैंने चुका दिया !! 
-क्यामालूम 
नाग-पञ्चमी (चन्दन चाचा के बाड़े में)
3 महीने पहले


4 टिप्पणियां:
अच्छा शेर पेश किया है.
प्यासी ज़मीन थी लहू, सारा पिला दिया !
मुझपे वतन का क़र्ज़ था, लो मैंने चुका दिया
" beautiful sher, so touching to read"
Regards
शेर सुंदर है।
bahut hi joradaar sher hai .vah babaal sab apke kye kahane . dil mast mast ho gaya . dhanyawad
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