मंगलवार, 16 सितंबर 2008

पंडित महेंद्र मिश्रा जी १६ सितम्बर की पोस्ट पर टिप्पणी

मिश्रा जी की लेटेस्ट पोस्ट देशप्रेम पर की गई एक बहुत सुंदर विवेचना है।
इस पर इस से ज्यादा क्या कहा जाए ?

प्यासी ज़मीन थी लहू, सारा पिला दिया !
मुझपे वतन का क़र्ज़ था, लो मैंने चुका दिया !!
-क्यामालूम

4 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

अच्छा शेर पेश किया है.

seema gupta ने कहा…

प्यासी ज़मीन थी लहू, सारा पिला दिया !
मुझपे वतन का क़र्ज़ था, लो मैंने चुका दिया
" beautiful sher, so touching to read"

Regards

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

शेर सुंदर है।

महेन्द्र मिश्र ने कहा…

bahut hi joradaar sher hai .vah babaal sab apke kye kahane . dil mast mast ho gaya . dhanyawad