गुरुवार, 25 दिसंबर 2008
महकीं हैं ये फ़िज़ाएँ........
अब तक सलीब पर तो, मिलती रही सज़ाएँ !
पर अब सलीब से ही, महकीं हैं ये फ़िज़ाएँ !!
---बवाल
सलीब = सूली
भावार्थ :-
जब तक यीशु सूली पर नहीं चढ़े थे तब तक तो सूली (क्रॉस) , पर क्रूरता पूर्वक सज़ाएँ दी जाती रहीं. मगर उनके बाद, अब वही सूली (क्रॉस), पवित्रता को प्राप्त करके, तमाम आलम को शान्ति और अमन का संदेश देकर पल्लवित कर रही है.
सोमवार, 15 दिसंबर 2008
रोज़ा-ए-खा़मोश... (मौन का उपवास)
इश्क़ पर ईमान, ले आने को वो पुरजोश था
लोग कहते रह गए 'बवाल,' दल्क़पोश था
दस्तरख़्वाँ पे जिसके, सारा आलम, पेशेनोश था
कूच जन्नत कर गया वो, रोज़ा-ए-ख़ामोश था
---बवाल
लुगत :-
ताज़ीम = आदर
पुरजोश = जोश से भरा हुआ
दल्क़पोश = फ़कीर, सूफ़ी
दस्तरख़्वाँ = खाना खाने के लिए बिछी हुई चादर
पेशेनोश = उपलब्ध
रोज़ा-ए-ख़ामोश = मौन का उपवास (मौनव्रत)
गुरुवार, 11 दिसंबर 2008
सोमवार, 8 दिसंबर 2008
आरती बिगबुल जी की (सन्दर्भ :- विश्व व्यापी शेयर मंदी)
स्वामी जय बिगबुल चढ़ता
तुम बिन रो रो कर ये --२, जग गिरता पड़ता !!
--- हुम्म जय बिगबुल चढ़ता ....
१) शेयर बाज़ार के राजा, कहाँ खो गए तुम ?
स्वामी कहाँ खो गए तुम ?
बजा सभी का बाजा --२, और सो गए तुम !!
--- हुम्म जय बिगबुल चढ़ता ....
२) शेयर बाज़ार भी तुम बिन, चलता नहीं सुर में !
स्वामी चलता नहीं सुर में !
सभी पड़े हैं भैया --२, छिर-छिर- दुर-दुर में !!
--- हुम्म जय बिगबुल चढ़ता ....
३) राजा जितने भी थे, रंक बने भैया !
स्वामी रंक बने भैया !
भरी जवानी बूढ़े --२, खंख बने भैया !!
--- हुम्म जय बिगबुल चढ़ता ....
४) मंत्री-संतरी तुमको, खोज खोज हारे !
स्वामी खोज खोज हारे !
दबा के दुम को फिरते --२, अब मारे मारे !!
--- हुम्म जय बिगबुल चढ़ता ....
५) हर धंधे पर तुम्हरी, कृपा-दृष्टि होवे !
स्वामी कृपा-दृष्टि होवे !
सब पर जम जम करके --२, धन-वृष्टि होवे !!
--- हुम्म जय बिगबुल चढ़ता ....
६) मंदड़ियों का फिर से, पत्ता साफ़ करो !
स्वामी पत्ता साफ़ करो !
कहा सुना सब दादा --२, अब तो माफ़ करो !!
--- हुम्म जय बिगबुल चढ़ता ....
७) शेयर बाज़ार की धड़कन, फिर कंट्रोल करो !
स्वामी फिर कंट्रोल करो !
चपटा हुआ रुपैय्या -- २, फिर से गोल करो !!
--- हुम्म जय बिगबुल चढ़ता ....
८) डॉलर औ रुपयों से, सबकी जेब भरो !
स्वामी सबकी जेब भरो !
बड़े बड़े बैंकों में --२, न ये घोटाले करो !!
--- हुम्म जय बिगबुल चढ़ता ....
९) अबके दफ़ा तुम भैया, ग़फ़्लत मत करना !
स्वामी ग़फ़्लत मत करना !
सी बी आई के चँगुल --२, में फिर ना पड़ना !!
--- हुम्म जय बिगबुल चढ़ता ....
१०) सत्य बोलने में तुम, पूरे हो पक्के !
स्वामी पूरे हो पक्के !
लाय-डिटेक्टर के भी --२, छुड़वा दो छक्के !!
--- हुम्म जय बिगबुल चढ़ता ....
११) अला-बला-टुटके सब, और जंजाल टले !
स्वामी और जंजाल टले !
तुम्हरी गौरव-गाथा --2, गाता बवाल चले !!
--- हुम्म जय बिगबुल चढ़ता ....
शुक्रवार, 5 दिसंबर 2008
जुड़ाव उनका .....
औ
जब मिलोगे तो देख लेना, है हमसे कितना जुड़ाव उनका !!
--- बवाल
सोमवार, 1 दिसंबर 2008
पैरवी-ऐ-क़त्ल ...........(सन्दर्भ : हाल की दुखद घटनाएँ)
पैरवी वो कर रहे हैं ! फ़िक्र क्यूँ करते हैं जी ??
---बवाल
गुरुवार, 27 नवंबर 2008
बवाल हुआ .....
वफ़ा का ज़िक्र छिड़ा था के बस, बवाल हुआ !!
---बवाल
सोमवार, 24 नवंबर 2008
क़सीदे.....
तालियों के सिलसिले, तड़ तड़ तड़ा तड़ तड़ चले !!
---बवाल
क़सीदे = प्रशंसात्मक -पद्य या गीत
शुक्रवार, 21 नवंबर 2008
सफ़्हए-उल्फ़त ......
वहाँ से लिखने को अब चला हूँ !
नहीं...., शिकन ना पड़ेगी मुझ पर,
सफ़्हए-उल्फ़त का सिलसिला हूँ !!
---बवाल
शिकन = सलवट, मोड़-तोड़, फटना
सफ़्हए-उल्फ़त = प्यार के पन्ने
सोमवार, 17 नवंबर 2008
नाज़िल हुआ यहाँ ........
उनकी ग़ज़ल में जा सजा, कामिल हुआ वहाँ !!
---बवाल
नाज़िल = उतरा
कामिल = सर्वांगपूर्ण, परिपूर्ण, पर्फ़ेक्ट
गुरुवार, 13 नवंबर 2008
बस भरमाते हैं.......................
तबस्सुमों के आशिक़ हैं भई, रुक कर सच फ़रमाते हैं !!
---बवाल
मुगा़लता = धोखा, ग़लतफ़हमी
तबस्सुम = मुस्कान (स्माइल)
सोमवार, 10 नवंबर 2008
सवाले-खु़श्क को ..............
भँवर में ज़िक्र भी तो छेड़िए, किनारों का !!
---बवाल
खु़श्क = रूखा, नकारात्मक
शुक्रवार, 7 नवंबर 2008
जता गए वो......
इधर को आकर जता गए वो,
उधर को रुख़ अब मना है बाबू !
वहीं है आबाद मेरी दुनिया,
तभी तो मुश्किल है दिल पे क़ाबू ?
----बवाल
मंगलवार, 4 नवंबर 2008
नहीं रुकेगा .......
वो उड़ चला है, अजब की जानिब !
ग़ज़ब की रफ़्तार, है पकड़ ली,
औ, राह जाती है, रब की जानिब !!
----बवाल
जानिब = ओर, सम्त, दिशा में
औ = और
रविवार, 2 नवंबर 2008
प्यार करते हैं...........
फ़राख़-दिल वो हैं, पर दिल फ़िगार करते हैं !!
---बवाल
नियाज़मंद = आज्ञाकारी, प्रेमी
फ़राख़-दिल = उदार ह्रदय
फ़िगार = घायल
शनिवार, 1 नवंबर 2008
शुक्रवार, 31 अक्टूबर 2008
उनसे मिलने ........
ख़ामोश सी मोहब्बत, कर ली है जिनसे दिल ने !!
---बवाल
बुधवार, 29 अक्टूबर 2008
ज़रूर है ..............(दीपावली पर शुभकामनाओं सहित)
तक़दीर एक बार, चमकती ज़रूर है !!

शुभ दीपावली
(यह चित्र आदरणीय सीमाजी के ब्लॉग से
चुराया गया है। हा हा ! और शेर ख़ुद चोरी छिपे इस ब्लॉग पर आकर छप गया है। किसी से ना कहना )
रविवार, 26 अक्टूबर 2008
उड़ने का था बहाना ............
उनकी मोहब्बतों का, यूँ मैं बना निशाना !!
---बवाल
शनिवार, 25 अक्टूबर 2008
जलाओगे रौशनी मिलेगी
बुझाओगे तीरगी मिलेगी, जलाओगे रौशनी मिलेगी !!
उजरत = मेहनताना
तीरगी = अँधेरा
बुधवार, 22 अक्टूबर 2008
सभी तरफ़ तो बवाल है जी .......
मगर यही है वतन भी मेरा, इसी का मुझको मलाल है जी !!
----बवाल
मंगलवार, 21 अक्टूबर 2008
तुम्हारा दामन जला नहीं है ........(राज ठाकरे प्रसंग)
जो आतिशे ग़म भड़क रही है, तो क्या हुआ मुत्मइन रहो तुम !
क्यूँ ? के ये आँच आई है सिर्फ़ हम पर, तुम्हारा दामन जला नहीं है !!
----आम जनता
आतिशे ग़म = ग़म की आग
मुत्मइन = चिंतामुक्त
शुक्रवार, 17 अक्टूबर 2008
जाकर के लौट आना .................. (कम-बैक)
साबित हुआ, के तुझको, उनसे है दिल लगाना !!
---बवाल
अब सब ठीक हो जाएगा ऐसा महसूस हो रहा है।
पूजा जी, नीरज रोहिल्ला जी, मीतजी, महेंद्र मिश्राजी, सीमाजी, समीरलाल जी आदि सभी का तहेदिल से शुक्रिया जो उन्होंने मेरे लिए दुआ की। सबके स्नेह का आभार।
क्रमशः...
रविवार, 12 अक्टूबर 2008
......... मेरा जहाँ से जाना (हाले-बीमारे-बवाल)
या मैंने जल्द कर दी, या तूने देर जाना !
तेरा शमा जलाना, औ मेरा जहाँ से जाना !!
-----बवाल
पता नहीं अब कब सबसे मुलाक़ात होगी ? होगी भी या नहीं ऊपरवाले के हाथ सब है ।
मंगलवार, 7 अक्टूबर 2008
है तो सही !
दर्द कम है या के ज्यादा, हाँ हाँ मगर है तो सही !!
----बवाल
शुक्रवार, 3 अक्टूबर 2008
दर्द उनका, अश्क बनकर.......
ढूँढ़ते तो सब रहे, पर आख़िर हमको याँ मिला !!
-----बवाल
जागने-जगाने (उड़नतश्तरी) पर ......
जाग तुझको दूर जाना ...
-----महादेवी वर्मा
जागते रहिये, ज़माने को जगाते रहिये !
रात क्या, दिन में भी अब गश्त लगाते रहिये !!
----नीरज
और आख़िर में --
हमको तो जागना है तेरे, इंतज़ार में !
आई हो जिसको नींद वो सोये (बहार) में !!
----हाँ मालूम
और नीरजजी की ग़जल के मक्ते से ससम्मान ......
इसलिए बेखौफ़ करता हूँ मैं तेरी बन्दगी !!
----नीरज
----......
सोमवार, 29 सितंबर 2008
मीतजी के शानदार शेर पर ये शेर देखिये
निगाह वो के जो पैबस्त दिल में हो जाए,
जो चोट खा के पलट आए वो निगाह नहीं !
---नामालूम
रविवार, 28 सितंबर 2008
आदरणीय नीरज गोस्वामी जी की फ़रमाइश और यौमेदिल (ह्रदय दिवस) के मौके पर :
मेरे हमनफ़स मेरे हमनवा,
मुझे दोस्त बनके दगा़ ना दे !
मैं हूँ सोज़े-इश्क़ से जाँ-ब-लब,
मुझे जिंदगी की दुआ ना दे !!
-----शकील बदायुनी
हमनफ़स, हमनवा = मित्र , सखा
सोज़े-इश्क़ = मोहब्बत की आग
जाँ-ब-लब = मरणासन्न
यौमे-दिल (ह्रदय-दिवस) के अवसर पर :
अज़ल से गिरिफ़्तारपैदा हुआ है !
ये दिल क्या मज़ेदार पैदा हुआ है !!
---जुरअत
अज़ल = अनादिकाल
तो फिर --
दिलगिरिफ़्ता ही सही, बज़्म सजा ली जाए !
यादे-जाना से कोई, शाम न खाली जाए !!
---अहमद फ़राज़
दिल गिरिफ़्ता = उदास
यादे-जाना = प्रियतम की याद
शुक्रवार, 26 सितंबर 2008
गुरुवार, 25 सितंबर 2008
समीरलाल, कपिल देव और सीमा गुप्ता की शान में ......
समीरलालजी (उड़नतश्तरी), लेफ्टिनेंट कर्नल कपिल देव और सीमाजी (मेरिभावनाएं) । इन तीनो विभूतियों के सम्मान में सीमाब साहेब का ये शेर पेशेखि़दमत है -----
छू ना पाती है परे- जिब्रील की हवा !
ये किन बुलंदियों पे उड़ा जा रहा हूँ में ???
बुधवार, 24 सितंबर 2008
नामा-ए-आमाल
हुक्म होता है, ख़ुद अपना नामा-ए-आमाल देख !!
------क्या मालूम
नामा-ए-आमाल = कर्मों का लेखा जोखा
सोमवार, 22 सितंबर 2008
इंसान बनाम भगवान् (लाल विथ बवाल)
विगत कुछ दिनों से देश और विदेश में आने वाली बाढ़, तूफ़ान, आतंकवादी गतिविधियों से त्रस्त एवं आक्रोशित जनता ने समीर लाल जी के पास उड़नतश्तरी में भगवान से पूछने के लिए जबरदस्त सवाल भेजे। लाल साहेब उस समय पोएट्री मोड में थे और थोड़े बिज़ी भी, फिर भी जनता का दबाव देखते हुए उन्होंने वहीं से उसे कुछ ऐसे फॉरवर्ड कर दिया - (पढ़िए)
ऐसा क्या कर डाला था इतने सब नादानों ने ?
फिर तुमने क्यों बदल दिया है शहरों को शमशानों में ?
माना भूल किया करता है, तभी तो है इंसानों में !
वरना वो भी बसता होता, तुम संग ही भगवानों में !!
वैसे ही क्या कम दुःख हैं, आज के इन ज़मानों में !
कुछ तो भेद किया होता जी, बूढ़ों और जवानों में !!
------समीर लाल (फॉर जनता बेहाल)
और भगवान ने इंसान को जो जवाब दिया वो लाल-एन-बवाल के ईमेल पर रिसीव हो गया। कंप्यूटर फूटते फूटते बचा भैया। लीजिए भगवान का प्रलय कारी किस्म का जवाब भी पढ़ते जाइए।
बड्डे इसकर बदल रहा हूँ , शहरों को शमशानों में !
(के) नादानों ने मेरी गिनती, कर ली है नादानों में !!
ये तो माना भूल, हुआ करती है तुम इंसानों में !
पर मत भूलो, भोले का है काम यही भगवानों में !!
दुख और सुख तो साथ,चले आए हैं सभी ज़मानों में !
मैं ना करता भेद कभी भी, बूढ़े और जवानों में !!
भेद तुम्हीं करते क़ुरान में, बाइबिल और पुराणो में !
भगवानों को खड़ा किया है, तुमने ही दीवानों में !!
मेरी खिल्ली उड़ा रहा है, इंसान खुली ज़बानों में !
वरना वो भी बस सकता है, हम संग ही भगवानों में !!
------ (भगवान लाजवाल ) द्बारा बवाल
रविवार, 21 सितंबर 2008
इस्लामाबाद की आग का दर्द
वो आग से जला जो नदी के क़रीब था ।
-----मलिक ज़ादा मंज़ूर
बुधवार, 17 सितंबर 2008
आलसी काया .......(उड़नतश्तरी की पोस्ट पर सप्लीमेंट यहाँ से ..)
हाथ पाँव के आलसी और मुँह में मूँछें जाएँ
और मूँछ बिचारी का करै जब हाथ न फेरे जाएँ
-----क्या मालूम ?
मंगलवार, 16 सितंबर 2008
पंडित महेंद्र मिश्रा जी १६ सितम्बर की पोस्ट पर टिप्पणी
इस पर इस से ज्यादा क्या कहा जाए ?
प्यासी ज़मीन थी लहू, सारा पिला दिया !
मुझपे वतन का क़र्ज़ था, लो मैंने चुका दिया !!
-क्यामालूम
कौन कहता है के .........
उनकी शंका समाधान के लिए किसी शायर के ये शेर शायद पसंद आयें -
कौन कहता के, मौत आई तो मर जाऊंगा ?
मैं तो दरिया हूँ, समंदर में उतर जाऊंगा !!
ख़ुद पुकारेगी जो मंज़िल, तो ठहर जाऊंगा !
वरना खु़द्दार मुसाफ़िर हूँ, गुज़र जाऊँगा !!
गुरुवार, 11 सितंबर 2008
सीमाजी (सीमा गुप्ता की बात निराली)
देखिये न ४.९.०८ को हिज्र ऐ यार , ५.९.०८ को मंज़िल, ६.९.०८ को सज़ा, ८.९.०८ को कैसे भूल जाए, ९.९.०८ को फ़र्जे इश्क, १०.९.०८ को दरिया की कहानी, ११.९.०८ को आशनाई । कया बात है ! कया कहना ! बहुत खूब ! फ़िल ख़ूब !
बहुत अदब से सीमाजी आपसे बुरा मानने का इख़तियार हम छीनते हैं और आपकी बेखटके, बेरोकटोक, बगै़र किल्लतो-कसरत, बेतहाशा तारीफ़ करने का इख़तियार हम बिना आपकी इजाज़त हासिल करते हैं। आप हमें मुआफ़ रखें।
ज़माने में उसने बड़ी बात कर ली,
ख़ुद अपने से जिसने मुलाक़ात कर ली।
कानी ला भाऊ नई कानी बिना राहू नई (रजिया का बाप मरा .....)
लोग परेशान हो गए के भैये कहाँ गए ? और हम उस वक्त शोले पिक्चर देख रहे थे जहाँ अमित जी जो के उन दिनों अमिताभ कहलाते थे डायलोग मार रहे थे --- हाँ देखा कुछ नहीं होगा जब फ़लानी चीज़ उतरेगी तो ये भी उतर आएगा । देखा ! उतर आई ना । अरे भाई क्लासिक चीज़ों और हरदिल अज़ीज़ों में यही तो ख़ूबी है । चाहने वालों से दूर रह ही नहीं सकते। छतीसगढ़ में कहावत ही है के कानी ला भाव नई औ कानी बिना रहू नई । याने अब हटाइए । मीठी नींद फ़रमाइए ।
रविवार, 7 सितंबर 2008
जल जाते हैं
जिनको जलना है वो, शबनम से भी जल जाते हैं !
---नामालूम
शनिवार, 6 सितंबर 2008
इंडिया देट इज़ भारत विच इस नॉट हिन्दुस्तान
----क्या कहें दीदावरी किस दर्जा हैरानी में है ?
आजकल खुर्शीद इक जुगनू की दरबानी में है !
खुर्शीद = सूरज
गुरुवार, 4 सितंबर 2008
किस बनाम चुम्बन (सन्दर्भ : समीरलाल जी की पोस्ट २६ अगस्त)
किस किस को किस किया कहाँ कैसे क्या कहें कहानी !
----बवाल
एक चुम्बन ही तुम्हारा, वो असर कर जायेगा !
या तो बन्दा जी उठेगा, या के बस मर जायेगा !!
----बवाल
शुक्रवार, 29 अगस्त 2008
और और नूर (उड़नतश्तरी की फ़रमाइश पर)
या बन के क़तरा तुम्हारी पलकों पे जगमगाता तो ग़म न होता ।
कोई मोहब्बत की शम्मा ले कर, इधर से गुज़रा था, सोचता हूँ,
ये ज़िन्दगी रोशनी में उसकी, गुज़ार पाता तो ग़म न होता ।
----पन्नालाल 'नूर'
गुरुवार, 28 अगस्त 2008
नूर फिर नूर
मगर न आने से क्या तुम्हारे, ये जिंदगी ही बसर न होगी ?
जो ग़म ही देने थे, ऐसे देता, के डूब जाता वुजूद मेरा !
ये चार आँसू दिए हैं इनसे, तो आँख भी नूर तर न होगी !!
----पन्नालाल 'नूर
शनिवार, 2 अगस्त 2008
समीरलाल जिंदाबाद
मायूस ना हूजिये हिन्दी ब्लॉगर बाबू ।
वो ये के आपके हरदिल अज़ीज़ समीर लाल साहेब और उनकी उड़न तश्तरी की तारीफ़ों के पुल यहाँ के एकमात्र हिन्दी दैनिक - आज का आनंद ने अपनी संपादकीय में बांधे हैं जी । वो भी आज ही । मैंने पेपर सहेज कर रख लिया है।
बा आवाज़े बुलंद है परचमे-हिंद !
है ना बोलो बोलो ।
मी बवाल बोलतोय
भाड़ में गेली तुमची हिन्दी आणि त्याचा हिन्दी ब्लॉग जगत । कारण मी राज भाऊ च्या मराठी माणूस मध्ये कन्वर्ट झाला । (राज ठाकरे जो कर रहे हैं ठीक ही कर रहे होंगे)
बाबा ऐ.......... इकड़े या ! नांव काय तुझा ? ऐ सांग रे ताबड़तोड़ । चटाक !!
बोला जय महाराष्ट्र ।
मी सांगीतला जय हिंद ।
तो बोल्या- हे आफ्टर वर्ड्स रे ।
फस्ट जय महारास्ट्र बोला । त्याचे उपरांत हिंद पिन्द।
आगे सब बवाल था और दिल में बस उबाल था ।
मेरे दर्द को समझने वालों, ख़ुद समझ लो जी । कहने की ज़रूरत है क्या ?
रविवार, 13 जुलाई 2008
मोम के बाजू
उसे कह दो के ये ऊँचाइयाँ मुश्किल से मिलती हैं,
वो सूरज के सफ़र में मोम के बाज़ू लगाता है !
-राहत इन्दौरी
शनिवार, 12 जुलाई 2008
ख़ुदा का नाम चलता है ...............
नई दुनिया के रिन्दों में, ख़ुदा का नाम चलता है !!
-शकील बदायूनी
बुधवार, 9 जुलाई 2008
सुनिये बवाल कव्वाल को: उड़न तश्तरी की महफिल में
इस भारत यात्रा के दौरान मेरे द्वारा आयोजित एक प्राईवेट मेहफिल का आप भी आनन्द लें. कुछ तो आप मेरे ब्लॉग पर ले चुके हैं, कुछ यहाँ भी लें और इनका उत्साह बढ़ाये..निश्चित ही भविष्य में यह आपका मनोरंजन करते रहेंगे::
बताईयेगा जरुर, कैसा लगी यह पेशकश.
मंगलवार, 8 जुलाई 2008
शाम के बाद जाम :- (उड़नतश्तरी) की फ़रमाइश पर
क़त्ल हो बैठा, नज़र का जाम हो जाने के बाद !!
और क्या क्या हो गया, क्या कीजियेगा पूछकर ?
आम हो जाता है जल्वा, काम हो जाने के बाद !!
-बवाल
आज फिर है ख़स्ता मगर ख़ुद ख़स्ता
अपनी तौबा भी कभी, शाम से आगे न बढ़ी !!
-विनोद "ख़स्ता"
सुब्हे-वाइज़ = उपदेशक (पंडित, मुल्ला, पादरी, गुरु) का सवेरा
पैगा़म = संदेश
तौबा = न पीने की क़सम
सोमवार, 7 जुलाई 2008
खा़म-ख़याली
इस ख़ाम-ख़याली में, उनसे बड़ी ग़फ़्लत हुई !
नफ़रत का इरादा था, पर हमसे मुहब्बत हुई !!
-बवाल
ख़ाम-ख़याली = ग़लत योजना
रविवार, 6 जुलाई 2008
गलबहियाँ
देखिये -
मोहब्बतों में दिखावे की दोस्ती न मिला,
अगर गले नहीं मिलता, तो हाथ भी न मिला !!
शुक्रवार, 4 जुलाई 2008
उड़नतश्तरी वाले समीर लाल जी की लेटेस्ट पोस्ट पर टिप्पणि
खेल-खेल में बड़ी-बड़ी बातें, कर जाने आता है !
हाँ बतलाने, हाँ गिनवाने, हाँ मिलवाने आता है !
हिक़मत, हिम्मत, हैरत से हँस-रंग सजाने आता है !!
और इनकी आँखों के वास्ते "जोश" से --
ये बात, ये तबस्सुम, ये नाज़, ये निगाहें !
आख़िर तुम्हीं बताओ, क्यूँकर न तुमको चाहें ?
गुरुवार, 3 जुलाई 2008
ख़स्ता ख़स्ता
ख़स्तादिल औ ख़स्ताहाल !
जिसको दुनिया कह रही है,
ये ही करता है - बवाल
शनिवार, 21 जून 2008
नूर तुम कहाँ हो ?

साक़िया तेरा पिलाना काम है,
बंदिशे-मिक़दार तौरे-खा़म है !
कितनी पीना ? कब न पीना चाहिए ?
ये तो तय करना हमारा काम है।
-पन्नालाल नूर (नौट मी धिस टाइम)
शुक्रवार, 20 जून 2008
गुरुवार, 12 जून 2008
उड़ने वाली चीजों को.......
क्यूँकर नष्ट किया करते हम, इतने प्यारे बीजों को !!
नैतिकता बस छोड़ पढ़ाते, घुड़दौड़न-लड़ना-तरना !
कम्प्यूटर-इंग्लिश-मोबाइल, ड्राइविंग और सर्फिंग करना !!
बचपन में बचपन मुरझाये, ऐसी जुगत लगाते हम !
अदब-क़ाएदा ताक पे रखकर, ज़िन्दा इन्हें बनाते बम !!
इंतिका़म तहज़ीब भी लेगी, देखना इक दिन नस्लों से !
धोना होगा हाथ हमें भी, खड़ी हुई इन फ़स्लों से !!
लाल करें बव्वाल कभी ना, इतना मर्म तो जाने हम !
बहुत हो चुका, चलो चल पड़ें, पालक-धर्म निभाने हम !!
इक तेरी नज़र का (समीर लालजी की पोस्ट पर टिप्पणी)
गौ़र कीजियेगा :
वाँ ग़मेयार बाकी़ है, इक तेरी नज़र का !
याँ लालाज़ार बाकी़ है, इक तेरी नज़र का !!
साज़ों पे वार हो चुका पर, बेसदा हैं सब !
वो गुंग-तार बाकी़ है, इक तेरी नज़र का !!
मसला मेरी ग़ज़ल का अभी, पुर-असर नहीं !
अभी अश'आर बाक़ी है, इक तेरी नज़र का !!
बेवज़्न बेहवा हो वफ़ा, उड़ती फ़िर रही !
वज़्ने-वका़र बाक़ी है, इक तेरी नज़र का !!
सब शेर सज चुके हैं ग़ज़ल, लबकुशा हुई !
हाँ इश्तिहार बाकी़ है, इक तेरी नज़र का !!
हम पर बवाल कर रही, है सारी कायनात !
पर ऐतबार बाकी़ है, इक तेरी नज़र का !!
(ग़मेयार-महबूब के न मिलने का ग़म), (लालाज़ार- लाल फूलों का बागी़चा), (बेसदा - बेआवाज़), (गुंग-तार -- न बोलने वाला तार), (वज़्ने-वका़र - मान मर्यादा का भार) , (लबकुशा - बोलना )
मंगलवार, 10 जून 2008
मर्ज़ दर्द-ए-दिल...
महकीं हैं ये फ़ज़ाएँ...
अब तक सलीब पर तो, मिलती रही सज़ाएँ !
पर अब सलीब से ही, महकीं हैं ये फ़ज़ाएँ !!
इंसानियत का परचम...
इंसानियत का परचम, फ़हरा के तो दिखाएँ !!
माँझा ही माँझा...
माँझा ही माँझा करलें, लेकर के कुछ दुआएँ !!
रग रग में लाल होगा...
बवाल ना मचाएँ, मिल कर ग़ज़ल बनाएँ !!
बवाल मच रहा है....
बवाल मच रहा है, भड़की हैं सब दिशाएँ !
मुक्काबला है इस पे, के कितना लहू बहाएं ?